
दिल्ली सरकार ने राजधानी में 10 साल पुरानी डीजल और 15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ियों को ईंधन नहीं देने के फैसले को महज दो दिन में वापस ले लिया है. 1 जुलाई से लागू हुई इस नीति पर अब पुनर्विचार किया जा रहा है. दिल्ली सरकार ने कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) को पत्र लिखकर इस आदेश पर पुनः विचार करने को कहा है.
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने माना कि पॉलिसी लागू करने में तकनीकी खामियां सामने आईं. ANPR कैमरे और सेंसर ठीक से काम नहीं कर रहे थे. इस फैसले के तहत दो दिनों में केवल 87 गाड़ियां ही सीज की गईं, जबकि दावा है कि दिल्ली में 60 लाख पुरानी गाड़ियां चल रही हैं. इन दो दिनों में देखा जाए तो 0.002 प्रतिशत ही पुरानी गाड़ियां पकड़ी गई.
नीति लागू करने से पहले क्यों नहीं की गई तैयारी?
पेट्रोल पंप मालिकों ने इस नीति पर पहले ही आपत्ति जताई थी, लेकिन सरकार ने उन्हें नजरअंदाज किया. दिल्ली पेट्रोल पंप ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष निश्चल सिंघानिया ने कहा कि दिल्ली में यह व्यवस्था लागू करने से पहले कोई ट्रायल नहीं किया गया. साथ ही इस योजना में बहुत सी तकनीकी खामियां थी. इन सभी बातों का जिक्र मंत्री ने भी CAQM को लिखे पत्र में किया है.
इस फैसले का विरोध आम जनता में भी था. बीजेपी पार्टी सूत्रों के अनुसार, दिल्ली में कैबिनेट की असहमति के बाद ही यह फैसला वापस लिया गया. साथ ही विधायकों से भी इस पर बातचीत की गई थी.
इतना ही नहीं बीजेपी सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रीय नेतृत्व भी सरकार के इस फैसले के वापस लेने का कारण है. इस फैसले को लेकर बढ़ते विरोध के कारण नेतृत्व ने दिल्ली सरकार से बात की, जिसके बाद दिल्ली सरकार के मंत्री ने आनन-फानन में इसे वापस लेने के बात की.
AAP का हमला, “बीजेपी अपने जाल में फंस गई”
आप नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि बीजेपी सरकार ने बिना सोच-विचार के यह नीति लागू की और अब खुद ही उसे वापस लेना पड़ा.
उन्होंने कहा, आज बीजेपी जिस सीएक्यूएम के आदेश का सहारा ले रही है, वह आदेश तो मंत्री के एलान के काफी दिनों बाद 27 अप्रैल को आया था. इससे स्पष्ट है कि बीजेपी ने पहले ही ऑटोमोबाइल कंपनियों से सांठगांठ कर ली थी और उनको करोड़ों रुपए का फायदा पहुंचाने के लिए यह तुगलकी फरमान जारी किया, जिससे दिल्ली के 61 लाख लोग नई गाड़ी खरीदने के लिए मजबूर हो जाएं.
भारद्वाज ने कहा कि यह तुगलकी फरमान पहली बार नहीं जारी हुआ है. इससे पहले बीजेपी ने सरकार बनते ही थ्री व्हीलर के लिए तुगलकी फरमान जारी किया था. उस फरमान में कहा गया था कि अब जो भी नया थ्री व्हीलर आएगा, इलेक्ट्रिक व्हीकल आएगा. साथ ही सरकार ने थ्री व्हीलर की कुछ उम्र भी तय कर दी. सरकार का उद्देश्य उस उम्र को पूरी करने वाले थ्री व्हीलरों को खत्म करके इलेक्ट्रिक थ्री व्हीलर खरीदने के लिए मजबूर करना था. हालांकि ऑटो चालकों ने इस तुगलकी फरमान का विरोध किया और सरकार को इसे वापस लेना पड़ा. अब दिल्ली की जनता ने विरोध किया तो बीजेपी सरकार ने यू-टर्न लेते हुए पुरानी गाड़ियों को ईंधन न देने का तुगलकी फरमान वापस लिया.
बीजेपी सरकार के लगातार यू-टर्न
यह पहला मौका नहीं है जब बीजेपी सरकार ने कोई बड़ा फैसला वापस लिया हो. इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं.
- कृत्रिम बारिश का प्रस्ताव टाल दिया गया. पहले कहा गया कि मई और जून के महीने में ट्रायल पूरा कर लिया जाएगा और फिर जुलाई के पहले सप्ताह में कृत्रिम बारिश कराई जाएगी, लेकिन सरकार से उसे टाल दिया और कहा कि अब यह बारिश 30 अगस्त से 10 सितंबर के बीच कराई जाएगी.
- पुरानी एक्साइज पॉलिसी को जारी रखा गया. दिल्ली में बीजेपी ने आप सरकार पर आरोप लगाया था कि एक्साइज पॉलिसी में बदलाव करने से सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ था. जिसके कारण आप सरकार ने नई नीति को वापस ले लिया और पुरानी नीति को वापस लागू कर दिया. पिछले एक साल से सरकार एक दूसरी नई आबकारी नीति बना चुकी है, लेकिन बीजेपी सरकार बनने के बाद से उसे एक्सटेंशन मिल रहा है. पुरानी नीति को अब सरकार ने अगले साल तक के लिए बढ़ा दिया है.
- बहुप्रतीक्षित ईवी पॉलिसी भी फिलहाल टाल दी गई. दिल्ली में सरकार बनने के बाद ईवी को लेकर काफी चर्चा थी. कहा गया कि सरकार दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक व्हीकल की पॉलिसी को लागू करने वाली थी, लेकिन उसमें कुछ ऐसे प्रावधान थे कि उस योजना को भी टाल दिया गया है.
सरकार का दावा: प्रदूषण से लड़ाई जारी रहेगी
मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा है कि फिलहाल यह फैसला वापस लिया जा रहा है, लेकिन सरकार दिल्ली की हवा को साफ करने और जनता को राहत देने के लिए प्रतिबद्ध है.
मनजिंदर सिंह सिरसा ने मीडिया से बातचीत कर कहा कि उन्होंने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को पत्र लिखकर दिल्ली में एंड-ऑफ-लाइफ (ईओएल) वाहनों को ईंधन न देने के निर्देश पर रोक लगाने को कहा है.
उन्होंने कहा कि हमने उन्हें बताया है कि जो ऑटोमेटिक नंबर प्लेट रिकॉग्निशन (एएनपीआर) कैमरे लगाए गए हैं, वे मजबूत सिस्टम नहीं हैं और उनमें अभी भी कई खामियां हैं. तकनीकी गड़बड़ियां, सेंसर का काम न करना और स्पीकर का खराब होना, ये सभी कमियां हैं. इसे अभी तक एनसीआर डेटा के साथ एकीकृत नहीं किया गया है. यह हाई-सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेटों (एचएसआरपी) की पहचान करने में सक्षम नहीं है. हमने यह भी कहा कि गुरुग्राम, फरीदाबाद और गाजियाबाद और बाकी एनसीआर में अभी तक ऐसा कानून लागू नहीं किया गया है.
बता दें कि 26 साल बाद दिल्ली में बीजेपी सरकार बनी है. सरकार बनने के बाद से लगातार प्रदूषण के मुद्दे पर कदम उठा रही है, लेकिन बिना तैयारी के लिए गए सख्त फैसले अब सवालों के घेरे में हैं.
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