जामिया मिल्लिया वाइस चांसलर प्रोफेसर तलत अहमद
नई दिल्ली:
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम बदलने के चर्चा के बीच हमने जाने-माने विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ाई के माहौल से लेकर छात्र राजनीति के बारे में जानने की कोशिश की. इस संबंध में हमने इस विश्वविद्यालय के वीसी से कई अहम मुद्दे पर बात की. वाइस चांसलर प्रोफेसर तलत अहमद से एनडीटीवी के संवाददाता ने बातचीत की. हमारे संवाददाता ने उनसे पूछा कि जामिया मिल्लिया क्यों प्रतिष्ठा की दौड़ में जेएनयू या डीयू जैसे विश्वविद्यालय से पीछे है? इसके जवाब में वाइस चांसलर प्रोफेसर तलत अहमद ने बताया कि पिछले साल भी रैंकिंग के लिहाज से विश्वविद्यालय 83वें नंबर पर था. लेकिन इस बार अब रैंकिंग में काफी उछाल आया और विश्वविद्यालय की मौजूदा रैंकिंग 10 है. प्रोफेसर तलत अहमद ने यह भी बताया कि पिछले साल की खराब रैंकिंग भी विश्वविद्यालय की कमियों के कारण नहीं, बल्कि रैंकिंग सिस्टम की खामियों के कारण था. डेटा को इकट्ठा करने के तरीके में बड़ी खराबी है, जिसके कारण हमारी रैंकिंग खराब हो गई है. इस बार उस कमी को दूर किया गया और नतीजा आप सबके सामने हैं और हम आठ सौ विश्वविद्यालयों में 12वें नंबर पर हैं.
यह भी पढ़ें: भारतीय सेना को शिक्षा देने वाला जामिया मिल्लिया इस्लामिया बना अनूठा विश्वविद्यालय
जामिया मिल्लिया देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है और वर्षों से है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश के विश्वविद्यालय - जिसमें जामिया मिलिया भी शामिल है- इतने पीछे क्यों हैं? टाइम्स हायर एजुकेशन की ताज़ा यूनिवर्सिटी की रैंकिंग में भी हम शुरू के सौ यूनिवर्सिटीज में कहीं नहीं हैं. इसका कारण बताते हुए वीसी कहते हैं कि विश्विद्यालय की जितनी श्रेणी है, उसमें बहुत सारी श्रेणियों में भारत के विश्विद्यालयों की कई व्यावहारिक मुश्किलें हैं. इसमें एक बड़ा कारण है विदेश में फैकल्टी का मामला. लेकिन हमारे देश में इसका प्रावधान बहुत कम है और पर्याप्त बजट का नहीं है. जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और कई विकसित देशों में आप देख सकते हैं कि कोई भी आकर पढ़ सकता है, हमारे देश में अब यह बात नहीं है. यह देश अपने यहां पढ़ने आने वाले छात्रों से मोटी फीस वसूल सकते हैं और उसे महंगे से महंगे फैकल्टी को बुलाने में खर्च कर सकते हैं. हमारे यहां खुद ही इतने बड़ी जनसंख्या हैं कि उन्हें केवल पढ़ने का मौका देना ही मुश्किल होगा. हम लोगों के पास एडमिशन देने के दायरे सीमित हैं. हमारे पास विदेशी शिक्षक नहीं हैं और ना ही विदेशी छात्र यह एक बड़ा कारण हैं. हम लोग बहुत पीछे हैं. इसके अलावा और भी कई मुद्दे हैं.
यह भी पढ़ें: डिजिटल इंडिया की तरफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की बड़ी पहल, पूरी परीक्षा प्रक्रिया हुई ऑनलाइन
राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) के आंकड़ों को देखकर लगता है कि जामिया मिल्लिया में विजिटिंग फैकल्टी के तौर पर आमतौर पर लोग नहीं बुलाए जाते हैं, लेकिन वीसी कहते हैं कि इस मामले में जामिया सिर्फ आईआईटी और जेएनयू से ही पीछे है. वीसी ने यह भी बताया कि देश के वैज्ञानिक जो विदेश में काम तो कर रहे हैं, लेकिन वापस देश आना चाहते हैं उनके लिए हमने एक रिसर्च सेंटर खोला है. यहां वे रिसर्च करें और अपनी रिसर्च प्रकाशित करें, इसके लिए हम उन्हें सारी सुविधाएं देते हैं. वर्तमान समय की जरुरतों को ध्यान में रखते हुए हमने बहुत सारे कोर्स की शुरुआत की है. इनमें से अधिकांश रोजगार दिलाने वाले पाठ्यक्रम हैं और हमारा प्रयास है कि कोर्स सीधे रोजी-रोटी से जुड़ें. हमारे यहां लोकसेवा आयोग की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए भी बहुत ही अच्छे क्लास चलाए जा रहे हैं और इसका रिकॉर्ड काफी अच्छा है. मुसलमान, एससी-एसटी और लड़कियों के लिए कायम किया और इस बार यूपीएससी में 29 बच्चे चयनित हैं. मुझे उम्मीद है कि और तेजी से ये नंबर से बढ़ेगा. इस केंद्र में ऐसे बच्चों को रहने के लिए भोजन के साथ 24 घंटे पुस्तकालय की सुविधा दी जाती है.
यह भी पढ़ें: लेखकों, कवियों की पहचान को संजोता जामिया का प्रेमचंद अभिलेखागार
अल्पसंख्यक दर्जे पर तलत अहमद कहते हैं कि जामिया को अभी भी अलपसंख्यक दर्जा बहाल है. बीच-बीच में यह खबर आ रही है कि सरकार ऐसे किसी एफिडेविट को देना चाहती है, लेकिन अभी इस प्रकार का कुछ नहीं आया है और कुछ नहीं हुआ है, मामला विचाराधीन है. जामिया विद्यालय पर अलपसंख्यक दायरे में रहने से नुकसान या लाभ होने के सवाल पर वो कहते हैं कि जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने यह फैसला किया है कि अल्पसंख्यकों को ज्यादा से ज्यादा होने का मौका देना है. किसी भी समाज को शिक्षा में आगे बढ़ना के लिए उनकी शिक्षा बेहतर हो तो उनको आगे बढ़ने में मदद मिलती है. इसके इसी दायरे के तहत अल्पसंख्यकों को आरक्षण देना पड़ता है, जिससे उनका फायदे हो रहा है.
VIDEO: नोटबंदी पर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों की राय
छात्र संघ चुनाव के बारे में उनका कहना है कि वो चुनाव कराना चाहते है, लेकिन इस मामले पर अदालत में विचार किया जा रहा है. जब तक अदालत से कोई आदेश नहीं मिल जाए, तब तक मैं चुनाव नहीं कराउंगा. उन्होंने कहा कि वह छात्रों के आवाज को बुलंद रखना चाहते हैं. देश की सेना और जामिया विश्वविद्यालय के बीच अनोखे समझौते पर खुशी इजहार करते हुए वो कहते हैं कि सेना, नेवी और एयर फोर्स के साथ हमने एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं. तीनों सेना के जवान से लेकर अधिकारी तक उम्र से पहले रिटार्ड कर जाते हैं. बहुत सारे जवान स्कूल शिक्षा के बाद ही बहुत कम उम्र में सेना का हिस्सा भी बनता है उनको आगे पढ़ने के लिए मौका नहीं मिलेगा. हमने यह कोशिश की है कि उनकी ट्रेनिंग को रखते हुए चोवोईस बेस क्रेडिट के अंदर करेंगे और वो कोर्स हम कराएंगे. कोर्स पूरा होने पर हम उनको डिग्री देंगे, जिससे खासतौर बाद में उनको नौकरी में फायदा मिलेगा. तलत अहमद कहते हैं कि विश्विद्यालय के सोशल वर्क, मास मीडिया, गणित, कॉमर्स जैसे विषय नौकरी से संबंधित पाठ्यक्रम हैं, इसलिए यहां पर बहुत सारे लोग रहते हैं. यहां पढ़ाई के बाद नौकरी मिलने की संभावना रहती है.
यह भी पढ़ें: भारतीय सेना को शिक्षा देने वाला जामिया मिल्लिया इस्लामिया बना अनूठा विश्वविद्यालय
जामिया मिल्लिया देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है और वर्षों से है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश के विश्वविद्यालय - जिसमें जामिया मिलिया भी शामिल है- इतने पीछे क्यों हैं? टाइम्स हायर एजुकेशन की ताज़ा यूनिवर्सिटी की रैंकिंग में भी हम शुरू के सौ यूनिवर्सिटीज में कहीं नहीं हैं. इसका कारण बताते हुए वीसी कहते हैं कि विश्विद्यालय की जितनी श्रेणी है, उसमें बहुत सारी श्रेणियों में भारत के विश्विद्यालयों की कई व्यावहारिक मुश्किलें हैं. इसमें एक बड़ा कारण है विदेश में फैकल्टी का मामला. लेकिन हमारे देश में इसका प्रावधान बहुत कम है और पर्याप्त बजट का नहीं है. जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और कई विकसित देशों में आप देख सकते हैं कि कोई भी आकर पढ़ सकता है, हमारे देश में अब यह बात नहीं है. यह देश अपने यहां पढ़ने आने वाले छात्रों से मोटी फीस वसूल सकते हैं और उसे महंगे से महंगे फैकल्टी को बुलाने में खर्च कर सकते हैं. हमारे यहां खुद ही इतने बड़ी जनसंख्या हैं कि उन्हें केवल पढ़ने का मौका देना ही मुश्किल होगा. हम लोगों के पास एडमिशन देने के दायरे सीमित हैं. हमारे पास विदेशी शिक्षक नहीं हैं और ना ही विदेशी छात्र यह एक बड़ा कारण हैं. हम लोग बहुत पीछे हैं. इसके अलावा और भी कई मुद्दे हैं.
यह भी पढ़ें: डिजिटल इंडिया की तरफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की बड़ी पहल, पूरी परीक्षा प्रक्रिया हुई ऑनलाइन
राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) के आंकड़ों को देखकर लगता है कि जामिया मिल्लिया में विजिटिंग फैकल्टी के तौर पर आमतौर पर लोग नहीं बुलाए जाते हैं, लेकिन वीसी कहते हैं कि इस मामले में जामिया सिर्फ आईआईटी और जेएनयू से ही पीछे है. वीसी ने यह भी बताया कि देश के वैज्ञानिक जो विदेश में काम तो कर रहे हैं, लेकिन वापस देश आना चाहते हैं उनके लिए हमने एक रिसर्च सेंटर खोला है. यहां वे रिसर्च करें और अपनी रिसर्च प्रकाशित करें, इसके लिए हम उन्हें सारी सुविधाएं देते हैं. वर्तमान समय की जरुरतों को ध्यान में रखते हुए हमने बहुत सारे कोर्स की शुरुआत की है. इनमें से अधिकांश रोजगार दिलाने वाले पाठ्यक्रम हैं और हमारा प्रयास है कि कोर्स सीधे रोजी-रोटी से जुड़ें. हमारे यहां लोकसेवा आयोग की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए भी बहुत ही अच्छे क्लास चलाए जा रहे हैं और इसका रिकॉर्ड काफी अच्छा है. मुसलमान, एससी-एसटी और लड़कियों के लिए कायम किया और इस बार यूपीएससी में 29 बच्चे चयनित हैं. मुझे उम्मीद है कि और तेजी से ये नंबर से बढ़ेगा. इस केंद्र में ऐसे बच्चों को रहने के लिए भोजन के साथ 24 घंटे पुस्तकालय की सुविधा दी जाती है.
यह भी पढ़ें: लेखकों, कवियों की पहचान को संजोता जामिया का प्रेमचंद अभिलेखागार
अल्पसंख्यक दर्जे पर तलत अहमद कहते हैं कि जामिया को अभी भी अलपसंख्यक दर्जा बहाल है. बीच-बीच में यह खबर आ रही है कि सरकार ऐसे किसी एफिडेविट को देना चाहती है, लेकिन अभी इस प्रकार का कुछ नहीं आया है और कुछ नहीं हुआ है, मामला विचाराधीन है. जामिया विद्यालय पर अलपसंख्यक दायरे में रहने से नुकसान या लाभ होने के सवाल पर वो कहते हैं कि जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने यह फैसला किया है कि अल्पसंख्यकों को ज्यादा से ज्यादा होने का मौका देना है. किसी भी समाज को शिक्षा में आगे बढ़ना के लिए उनकी शिक्षा बेहतर हो तो उनको आगे बढ़ने में मदद मिलती है. इसके इसी दायरे के तहत अल्पसंख्यकों को आरक्षण देना पड़ता है, जिससे उनका फायदे हो रहा है.
VIDEO: नोटबंदी पर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों की राय
छात्र संघ चुनाव के बारे में उनका कहना है कि वो चुनाव कराना चाहते है, लेकिन इस मामले पर अदालत में विचार किया जा रहा है. जब तक अदालत से कोई आदेश नहीं मिल जाए, तब तक मैं चुनाव नहीं कराउंगा. उन्होंने कहा कि वह छात्रों के आवाज को बुलंद रखना चाहते हैं. देश की सेना और जामिया विश्वविद्यालय के बीच अनोखे समझौते पर खुशी इजहार करते हुए वो कहते हैं कि सेना, नेवी और एयर फोर्स के साथ हमने एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं. तीनों सेना के जवान से लेकर अधिकारी तक उम्र से पहले रिटार्ड कर जाते हैं. बहुत सारे जवान स्कूल शिक्षा के बाद ही बहुत कम उम्र में सेना का हिस्सा भी बनता है उनको आगे पढ़ने के लिए मौका नहीं मिलेगा. हमने यह कोशिश की है कि उनकी ट्रेनिंग को रखते हुए चोवोईस बेस क्रेडिट के अंदर करेंगे और वो कोर्स हम कराएंगे. कोर्स पूरा होने पर हम उनको डिग्री देंगे, जिससे खासतौर बाद में उनको नौकरी में फायदा मिलेगा. तलत अहमद कहते हैं कि विश्विद्यालय के सोशल वर्क, मास मीडिया, गणित, कॉमर्स जैसे विषय नौकरी से संबंधित पाठ्यक्रम हैं, इसलिए यहां पर बहुत सारे लोग रहते हैं. यहां पढ़ाई के बाद नौकरी मिलने की संभावना रहती है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं