जंतर मंतर पर प्रदर्शन करते फ्लैट खरीदार
नई दिल्ली:
जंतर-मंतर पर रविवार को सैकड़ों लोग अपने गुस्से का इजहार करने के लिए जुटे। ये वो लोग हैं, जो पिछले कई साल से द्वारका एक्सप्रेसवे के आसपास रहने का सपना देख रहे हैं। इनमें से कई लोगों के फ्लैट बनकर तैयार भी हो गए हैं, लेकिन ये वहां रह नहीं सकते, क्योंकि द्वारका एक्सप्रेसवे के अब तक पूरा न हो पाने की वजह से वहां रास्ता नहीं है।
यहां फ्लैट लेने वाले महेश शर्मा ने बताया कि हमने 2010 में फ्लैट बुक कराया था, लोन भी लिया और ईएमआई भी भर रहे हैं... अब फ्लैट भी तैयार हैं लेकिन हम वहां रह नहीं सकते क्योंकि वहां जाने का रास्ता नहीं है। यही नहीं वहां न ही बिजली है और बाकी सुविधाओं का भी अभाव है।
लोगों के मुताबिक 18 किलोमीटर लंबे द्वारका एक्सप्रेसवे को 2010 में बनकर तैयार होना था। इसी उम्मीद में हज़ारों लोगों ने वहां फ्लैट खरीद लिए। घर के लिए लोन भी लिया और उनकी ईएमआई शुरू हो गई। लेकिन सड़क न बनने से वहां रहना मुश्किल है। एनआरआई कोमल आहूजा ने फ्लैट लेने में बीते साल डेढ़ करोड़ रुपये खर्च कर दिए। उनका कहना है कि वहां जाने पर एक शहर नहीं, बल्कि किसी दूरदराज के गांव का अहसास होता है... न सड़क है और न ही आधारभूत सुविधाएं।
द्वारका एक्सप्रेसवे के रास्ते में हाइटेंशन वायर, कारखाने और कुछ गांव हैं, जो अभी तक हटाये नहीं जा सके हैं। इसके चलते सड़क को पूरा करने की डेडलाइन कई बार मिस हो चुकी है। हरियाणा सरकार ने भले ही द्वारका एक्सप्रेसवे की नई डेडलाइन अब जून 2017 तय कर दी हो, लेकिन करीब 70 हजार लोगों की गाढ़ी कमाई तब तक दांव पर लगी रहेगी, जब तक उनके आसपास का इलाका रहने लायक नहीं हो जाता।
यहां फ्लैट लेने वाले महेश शर्मा ने बताया कि हमने 2010 में फ्लैट बुक कराया था, लोन भी लिया और ईएमआई भी भर रहे हैं... अब फ्लैट भी तैयार हैं लेकिन हम वहां रह नहीं सकते क्योंकि वहां जाने का रास्ता नहीं है। यही नहीं वहां न ही बिजली है और बाकी सुविधाओं का भी अभाव है।
लोगों के मुताबिक 18 किलोमीटर लंबे द्वारका एक्सप्रेसवे को 2010 में बनकर तैयार होना था। इसी उम्मीद में हज़ारों लोगों ने वहां फ्लैट खरीद लिए। घर के लिए लोन भी लिया और उनकी ईएमआई शुरू हो गई। लेकिन सड़क न बनने से वहां रहना मुश्किल है। एनआरआई कोमल आहूजा ने फ्लैट लेने में बीते साल डेढ़ करोड़ रुपये खर्च कर दिए। उनका कहना है कि वहां जाने पर एक शहर नहीं, बल्कि किसी दूरदराज के गांव का अहसास होता है... न सड़क है और न ही आधारभूत सुविधाएं।
द्वारका एक्सप्रेसवे के रास्ते में हाइटेंशन वायर, कारखाने और कुछ गांव हैं, जो अभी तक हटाये नहीं जा सके हैं। इसके चलते सड़क को पूरा करने की डेडलाइन कई बार मिस हो चुकी है। हरियाणा सरकार ने भले ही द्वारका एक्सप्रेसवे की नई डेडलाइन अब जून 2017 तय कर दी हो, लेकिन करीब 70 हजार लोगों की गाढ़ी कमाई तब तक दांव पर लगी रहेगी, जब तक उनके आसपास का इलाका रहने लायक नहीं हो जाता।
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