
ऑस्ट्रेलियाई सरज़मीन पर लगातार छह टेस्ट में मिली हार ने टीम इंडिया की कलई खोल दी है। खेल के हर डिपार्टमेंट में टीम के खिलाड़ी फिसड्डी साबित हो रहे हैं। ख़ासकर बल्लेबाज़ी में तो टेस्ट टीम कहीं भी दुनिया की बेस्ट टीमों के आसपास भी दिखाई नहीं देती।
एडिलेड के बाद ब्रिसबेन
पहले एडिलेड फिर ब्रिसबेन में टीम इंडिया के बल्लेबाज़ों का निराशाजनक प्रदर्शन कई सवाल छोड़ गया। विदेशी ज़मीन पर टीम इंडिया के बल्लेबाज़ों का घुटने टेकना कोई नई बात नही है।
टीम कई बार मज़बूत स्थिती में होते हुए भी मौक़े का फ़ायदा नहीं उठा सकी। ब्रिसबेन टेस्ट के चौथे दिन टीम ने 41 रन के अंदर पांच महत्वपूर्ण विकेट गवांए और टेस्ट हार गई।
इसी टेस्ट की पहली पारी में भी टीम इंडिया ने 321 रन पर सिर्फ़ दो विकेट गंवाए थे, लेकिन पूरी टीम 408 रन पर ऑल आउट हो गई। मैच में टीम के छह विकेट 87 रन के अंदर गिरे और टीम बैकफ़ुट पर आ गई।
ऐसा नहीं कि एडिलेड में भारतीय बल्लेबाज़ों ने बाज़ी मार ली हो, टेस्ट के आंकड़ों पर नज़र डाले तो साफ़ हो जाता है कि टीम के बल्लेबाज़ जीती हुई बाज़ी गंवाने में भी माहिर है। 367 रन पर 4 विकेट का स्कोर रहते हुए भी टीम 444 रन पर ऑल आउट हो गई, यानि 77 रन के अंदर 6 विकेट गिर गए।
इसी टेस्ट की दूसरी पारी में 242/2 का स्कोर होते हुए टीम 315 रन पर आउट हो गई, यानि 73 रन के अंदर टीम के 8 खिलाड़ी पवैलियन लौट गए।
कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने मैच के बाद माना कि पारी लड़खड़ा गई, लेकिन ये मानने को तैयार नहीं कि ये बड़ी समस्या है। कप्तान का कहना है कि बल्लेबाज़ों को गेंद की काबलियत देखकर खेलना चाहिए नाकि स्कोरबोर्ड को देख कर।
ग़लतियों से सबक नहीं
टीम का ऐसा हाल पहले भी हो चुका है। थोड़ा पीछे जाए तो इसी साल न्यूज़ीलैंड और इंग्लैंड में भी कुछ ऐसी ही तस्वीर फ़ैन्स देख चुके हैं।
न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ ऑकलैंड टेस्ट में टीम इंडिया ने 64 रन के अंदर 6 विकेट गंवाए दिए तो इंग्लैंड दौरे पर नॉटिंघम टेस्ट में 44 रन के अंदर पांच विकेट। वहीं लॉर्ड्स टेस्ट में जीत ज़रूर मिली लेकिन 59 रन के भीतर 5 विकेट गिरे।
इंग्लैंड के साथ सॉउथैम्पटन टेस्ट में 98 रन के भीतर टीम के 8 विकेट गिरे, जबकि मैनचेस्टर टेस्ट की एक पारी में 13 रन के भीतर पांच विकेट का नुकसान हुआ। ओवल के भी आंकड़े कुछ जुदा नहीं रहे। यहां 80 रन के अंतर पर आठ विकेट टीम ने खो दिए।
अनुभव की कमी
मौजूदा ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर टीम के बल्लेबाज़ों का शॉट सेलेक्शन देखते हुए साफ़ है कि उनमें अनुभव की कितनी कमी है।
सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण जैसे खिलाड़ी विकेट पर जाते ही शॉट नहीं खेलते थे ये सभी जानते है, शायद ये बात युवा ब्रिगेड भूल गई है।
टीम के खिलाड़ियों को ये भी याद करना होगा कि सुनील गावस्कर और मोहिंदर अमरनाथ जैसे खिलाड़ी विकेट पर टिक कर कैसे वेस्ट इंडीज़ के तेज़ गेंदबाज़ों का सामना करते थे।
नेट्स में खिलाड़ी चाहे कितना भी पसीना बहा लें, लेकिन मैदान पर जीत तभी मिलेगी जब टीम के बल्लेबाज़ विकेट पर टिक कर खेलने का हुनर सीख लेंगे।
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