सचिन तेंदुलकर ने खिलाड़ियों के पक्ष में आवाज उठाई है (फाइल फोटो)
मुंबई:
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने भले ही क्रिकेट से संन्यास ले लिया है, लेकिन खिलाड़ियों के लिये 'बल्लेबाज़ी' करना नहीं छोड़ा है. वे चाहते हैं कि रोज़ी की फिक्र किसी खिलाड़ी का हुनर न छीनें. खिलाड़ियों की नौकरी को लेकर भारत रत्न सचिन तेंदुलकर भी फिक्रमंद हैं और उन्होंने खिलाड़ियों की नौकरी की सुरक्षा को लेकर आवाज उठाई है. सचिन ने मांग की है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां खिलाड़ियों को नौकरी देना शुरू करें.
मौका था मुंबई पुलिस जिमखाना के 69वें पुलिस आमंत्रण शील्ड के फाइनल का, जिसे कर्नाटक स्पोर्टिंग एसोसिएशन ने एमआईजी क्रिकेट क्लब को हराकर जीता. इस मौके पर सचिन ने कहा, 'पहले अनुबंधित खिलाड़ी कम थे, खिलाड़ियों के पास नौकरी की सुरक्षा थी जो आज नहीं है. पहले खिलाड़ियों को दूसरी चीज़ों के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं थी. वे पूरा ध्यान खेल पर लगाते थे. नौकरी की चिंता खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर असर डालती है . इसलिये मैं सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से अपील करूंगा कि वे खिलाड़ियों को नौकरी देना शुरू करें, उनका समर्थन करें उन्हें सुरक्षा दें.'
मुंबई में स्कूल लीग में अब 14 खिलाड़ी खेल रहे हैं. यह आइडिया भी 'मास्टर ब्लास्टर का था. इसके पीछे का मकसद खिलाड़ियों को अधिक मौके देना था. उन्होंने कहा, 'ये थोड़ा देर से आया, लेकिन न आने से ठीक है ... मेरे ख्याल से इंटर स्कूल में करियर 48 महीने का होता है ... जिसमें पिच कंडीशंस अहम होती हैं. इसलिये मैं चाहता था कि ज्यादा खिलाड़ियों को मौका मिले.'
गौरतलब है कि पहले खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी भी मिल जाती थी, लेकिन बढ़ती आबादी और घटती नौकरियों के बीच ये आंकड़ा घटता गया. अब आसरा निजी कंपनियों से है. वैसे खेल मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया है कि ओलिंपिक, एशियाई खेलों या वर्ल्ड चैंपियनशिप में तमगा जीतने वालों को सीधे क्लास 'ए' और 'बी' की नौकरी भी मिले, पहले स्पोर्ट्स कोटा के तहत ये नौकरियां नहीं मिलती थीं. सचिन की गुजारिश निजी कंपनियों से है लेकिन उनके कद को देखते हुए हो सकता है खिलाड़ियों की नौकरी को लेकर सकारात्मक रूख सब रखें.
मौका था मुंबई पुलिस जिमखाना के 69वें पुलिस आमंत्रण शील्ड के फाइनल का, जिसे कर्नाटक स्पोर्टिंग एसोसिएशन ने एमआईजी क्रिकेट क्लब को हराकर जीता. इस मौके पर सचिन ने कहा, 'पहले अनुबंधित खिलाड़ी कम थे, खिलाड़ियों के पास नौकरी की सुरक्षा थी जो आज नहीं है. पहले खिलाड़ियों को दूसरी चीज़ों के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं थी. वे पूरा ध्यान खेल पर लगाते थे. नौकरी की चिंता खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर असर डालती है . इसलिये मैं सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से अपील करूंगा कि वे खिलाड़ियों को नौकरी देना शुरू करें, उनका समर्थन करें उन्हें सुरक्षा दें.'
मुंबई में स्कूल लीग में अब 14 खिलाड़ी खेल रहे हैं. यह आइडिया भी 'मास्टर ब्लास्टर का था. इसके पीछे का मकसद खिलाड़ियों को अधिक मौके देना था. उन्होंने कहा, 'ये थोड़ा देर से आया, लेकिन न आने से ठीक है ... मेरे ख्याल से इंटर स्कूल में करियर 48 महीने का होता है ... जिसमें पिच कंडीशंस अहम होती हैं. इसलिये मैं चाहता था कि ज्यादा खिलाड़ियों को मौका मिले.'
गौरतलब है कि पहले खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी भी मिल जाती थी, लेकिन बढ़ती आबादी और घटती नौकरियों के बीच ये आंकड़ा घटता गया. अब आसरा निजी कंपनियों से है. वैसे खेल मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया है कि ओलिंपिक, एशियाई खेलों या वर्ल्ड चैंपियनशिप में तमगा जीतने वालों को सीधे क्लास 'ए' और 'बी' की नौकरी भी मिले, पहले स्पोर्ट्स कोटा के तहत ये नौकरियां नहीं मिलती थीं. सचिन की गुजारिश निजी कंपनियों से है लेकिन उनके कद को देखते हुए हो सकता है खिलाड़ियों की नौकरी को लेकर सकारात्मक रूख सब रखें.
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