बीसीसीआई अध्यक्ष जगमोहन डालमिया की फाइल फोटो
कोलकाता:
कोलकाता के बनिया परिवार में हुआ जन्म
डालमिया का जन्म कोलकाता के एक मारवाड़ी बनिया परिवार में हुआ था। उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से पढ़ाई की और फिर अपनी कॉलेज टीम और कई क्लबों में बतौर विकेटकीपर खेलते हुए अपने क्रिकेटिंग करियर की शुरुआत की। हालांकि इसके बाद वह अपने पिता की कंपनी एमएल डालमिया एंड को के साथ जुड़ गए और इसे भारत की शीर्ष कंस्ट्रक्शन कंपनियों में से एक बनाया। उनकी ही कपंनी ने साल 1963 में कोलकाता की एमबी बिड़ला प्लैनेटोरियम का निर्माण किया था।
अच्छा-बुरा हर तरह का दौर देखा
जगमोहन डालमिया ने अपने लंबे प्रशासनिक करियर के दौरान अच्छा, बुरा और बदतर हर तरह का दौर देखा। कैरी पैकर के विश्व सीरीज क्रिकेट ने अगर ऑस्ट्रेलिया के पारंपरिक क्रिकेट जगत को झटका दिया, तो वो कोलकाता के चतुर व्यवसायी डालमिया ही थे, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने भारत के वैश्विक क्रिकेट में व्यावसायिक दबदबा बनाने की क्षमता को समझा।
भारतीय क्रिकेट को उनका सबसे बड़ा तोहफा 1990 के दशक की शुरुआत में वर्ल्ड टेल के साथ लाखों डॉलर का टेलीविजन करार था, जिसने बीसीसीआई को दुनिया में सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बनाने में बड़ी भूमिका निभाई।
वर्ल्ड कप में निभाई अहम भूमिका
कुशल रणनीतिकार माने जाने वाले डालमिया ने 1987 में भारत की सह-मेजबानी में रिलायंस वर्ल्ड कप और 1996 में विल्स वर्ल्ड कप के आयोजन में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने 35 साल के अपने प्रशासनिक करियर की शुरुआत राजस्थान क्लब से बंगाल क्रिकेट संघ की कार्यकारी समिति का सदस्य बनकर की, जबकि इसके बाद वह कैब के कोषाध्यक्ष और सचिव भी बने।
बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष बीएन दत्त के शागिर्द डालमिया 1980 के दशक में कोषाध्यक्ष बने और उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने एनकेपी साल्वे को मनाया कि रिलायंस कप के फाइनल का आयोजन वानखेड़े स्टेडियम की जगह कोलकाता के ईडन गार्डन्स में कराया जाएा। उन्होंने एक समय अपने दोस्त रहे इंदरजीत सिंह बिंद्रा के साथ मिलकर इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया को पछाड़कर भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका को 1996 विश्व कप की सह मेजबानी दिलाई।
वर्ष 1997 में उन्हें सर्वसम्मति से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद का अध्यक्ष चुना गया। वर्ष 2001 में वह एसी मुथया को हराकर बीसीसीआई अध्यक्ष बने। इसके बाद उन्होंने अपने उम्मीदवार रणबीर सिंह महेंद्रा को अपना निर्णायक मत देकर सिर्फ एक मत से बीसीसीआई अध्यक्ष पद चुनाव में एनसीपी के दिग्गज नेता शरद पवार की हार सुनिश्चित की।
हालांकि पवार, एन श्रीनिवासन, शशांक मनोहर और ललित मोदी की चौकड़ी ने बिंद्रा के समर्थन से अगले साल ना सिर्फ महेंद्रा को हराया, बल्कि उनके खिलाफ मामले भी खोल दिए। उन्हें 2006 में बीसीसीआई से निलंबित किया गया और उनके घरेलू संघ से भी बाहर कर दिया गया। डालमिया ने इसके बाद लंबी कानूनी लड़ाई लड़कर राज्य संघ में अपना स्थान वापस हासिल किया।
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग प्रकरण सामने आने के बाद वह अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पहले सर्वसम्मत उम्मीदवार थे और इस साल की शुरुआत में वह एक बार फिर सर्वसम्मति से बीसीसीआई अध्यक्ष बने। (एजेंसी इनपुट के साथ)
बीसीसीआई चीफ जगमोहन डालमिया रहे एक मजबूत शख्सियत
बीसीसीआई अध्यक्ष जगमोहन डालमिया को हमेशा ऐसे व्यक्ति के तौर पर याद किया जाएगा, जिसने भारतीय क्रिकेट को आत्मनिर्भर संस्था बनाया और विश्व क्रिकेट में गोरों की ताकत को खत्म कर क्रिकेट को लॉर्ड्स से कोलकाता के ईडन गार्डंस तक पहुंचाया। डालमिया का 75 बरस की उम्र में निधन हो गया।कोलकाता के बनिया परिवार में हुआ जन्म
डालमिया का जन्म कोलकाता के एक मारवाड़ी बनिया परिवार में हुआ था। उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से पढ़ाई की और फिर अपनी कॉलेज टीम और कई क्लबों में बतौर विकेटकीपर खेलते हुए अपने क्रिकेटिंग करियर की शुरुआत की। हालांकि इसके बाद वह अपने पिता की कंपनी एमएल डालमिया एंड को के साथ जुड़ गए और इसे भारत की शीर्ष कंस्ट्रक्शन कंपनियों में से एक बनाया। उनकी ही कपंनी ने साल 1963 में कोलकाता की एमबी बिड़ला प्लैनेटोरियम का निर्माण किया था।
अच्छा-बुरा हर तरह का दौर देखा
जगमोहन डालमिया ने अपने लंबे प्रशासनिक करियर के दौरान अच्छा, बुरा और बदतर हर तरह का दौर देखा। कैरी पैकर के विश्व सीरीज क्रिकेट ने अगर ऑस्ट्रेलिया के पारंपरिक क्रिकेट जगत को झटका दिया, तो वो कोलकाता के चतुर व्यवसायी डालमिया ही थे, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने भारत के वैश्विक क्रिकेट में व्यावसायिक दबदबा बनाने की क्षमता को समझा।
भारतीय क्रिकेट को उनका सबसे बड़ा तोहफा 1990 के दशक की शुरुआत में वर्ल्ड टेल के साथ लाखों डॉलर का टेलीविजन करार था, जिसने बीसीसीआई को दुनिया में सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बनाने में बड़ी भूमिका निभाई।
वर्ल्ड कप में निभाई अहम भूमिका
कुशल रणनीतिकार माने जाने वाले डालमिया ने 1987 में भारत की सह-मेजबानी में रिलायंस वर्ल्ड कप और 1996 में विल्स वर्ल्ड कप के आयोजन में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने 35 साल के अपने प्रशासनिक करियर की शुरुआत राजस्थान क्लब से बंगाल क्रिकेट संघ की कार्यकारी समिति का सदस्य बनकर की, जबकि इसके बाद वह कैब के कोषाध्यक्ष और सचिव भी बने।
बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष बीएन दत्त के शागिर्द डालमिया 1980 के दशक में कोषाध्यक्ष बने और उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने एनकेपी साल्वे को मनाया कि रिलायंस कप के फाइनल का आयोजन वानखेड़े स्टेडियम की जगह कोलकाता के ईडन गार्डन्स में कराया जाएा। उन्होंने एक समय अपने दोस्त रहे इंदरजीत सिंह बिंद्रा के साथ मिलकर इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया को पछाड़कर भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका को 1996 विश्व कप की सह मेजबानी दिलाई।
वर्ष 1997 में उन्हें सर्वसम्मति से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद का अध्यक्ष चुना गया। वर्ष 2001 में वह एसी मुथया को हराकर बीसीसीआई अध्यक्ष बने। इसके बाद उन्होंने अपने उम्मीदवार रणबीर सिंह महेंद्रा को अपना निर्णायक मत देकर सिर्फ एक मत से बीसीसीआई अध्यक्ष पद चुनाव में एनसीपी के दिग्गज नेता शरद पवार की हार सुनिश्चित की।
हालांकि पवार, एन श्रीनिवासन, शशांक मनोहर और ललित मोदी की चौकड़ी ने बिंद्रा के समर्थन से अगले साल ना सिर्फ महेंद्रा को हराया, बल्कि उनके खिलाफ मामले भी खोल दिए। उन्हें 2006 में बीसीसीआई से निलंबित किया गया और उनके घरेलू संघ से भी बाहर कर दिया गया। डालमिया ने इसके बाद लंबी कानूनी लड़ाई लड़कर राज्य संघ में अपना स्थान वापस हासिल किया।
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग प्रकरण सामने आने के बाद वह अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पहले सर्वसम्मत उम्मीदवार थे और इस साल की शुरुआत में वह एक बार फिर सर्वसम्मति से बीसीसीआई अध्यक्ष बने। (एजेंसी इनपुट के साथ)
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