टीम इंडिया को डीआरएस सिस्टम का इस्तेमाल भी चतुराई से करना साीखना होगा (फाइल फोटो)
क्रिकेट का खेल अब हाईटेक हो गया है. क्रिकेट के खेल में तकनीक का प्रयोग बढ़ने से अब इसमें मानवीय गलतियां बेहद कम हो गई हैं. अम्पायर के फैसले से सहमत न होने की स्थिति में अब कप्तान के पास निर्णय समीक्षा प्रणाली (डीआरएस) का विकल्प उपलब्ध होता है. इसकी मदद से अम्पायर की ओर से गलत फैसला होने की स्थिति में टीम फैसले को बदलवा पाने की स्थिति में होती है. लेकिन डीआरएस प्रणाली के लिहाज से बात करें तो भारतीय टीम इसमें अनाड़ी ही साबित हो रही है. भारतीय टीम पिछले सात टेस्ट मैचों से इस सिस्टम के साथ तालमेल बैठाने का प्रयास कर रही है, लेकिन इंग्लैंड के खिलाफ पांच टेस्ट के अलावा बांग्लादेश के खिलाफ एक टेस्ट की सीरीज में भी डीआरएस को लेकर उसके फैसले सटीक नहीं बैठे.
यदि यह पूछा जाए कि क्या टीम इंडिया डीआरएस का सही उपयोग करने में नाकाम रही है, तो अब तक के टीम के अनुभव को देखते हुए इसका जवाब 'हां' में ही होगा. कोहली की टीम को विशेषकर क्षेत्ररक्षण करते समय अक्सर ‘तीसरी आंख’ की पैनी निगाह से बोल्ड होना पड़ा. भारत लंबे समय डीआरएस का विरोध करता रहा, लेकिन पिछले साल इंग्लैंड के खिलाफ पांच टेस्ट मैचों की सीरीज से वह ट्रायल के तौर पर इसे आजमाने के लिए तैयार हो गया और तब से सभी टेस्ट मैचों में यह प्रणाली अपनाई गई. भारतीय खिलाड़ियों की इस प्रणाली को लेकर अनुभवहीनता हालांकि खुलकर सामने आई है. DRS अपनाने के बाद भारत ने अब तक जो सात टेस्ट मैच खेले हैं उनमें बल्लेबाजी करते हुए कुल 13 बार मैदानी अंपायर के फैसले को चुनौती दी लेकिन इनमें से केवल चार बार वह फैसला पलटने में कामयाब हो पाया.
क्षेत्ररक्षण करते समय भारतीय टीम ने कुल 42 बार DRS का सहारा लिया लेकिन इनमें से सिर्फ 10 अवसरों पर ही टीम को सफलता मिली. हर मैच में पहले 80 ओवर तक प्रत्येक टीम को DRS के दो अवसर मिलते हैं. अगर वह इनमें सफल रहती है तो उसका अवसर कम नहीं होता लेकिन नाकाम रहने पर उसके अवसरों की संख्या घट जाती है. अकसर देखा जाता है कि टीमें 70 से 80 ओवर के बीच इस प्रणाली का अधिक इस्तेमाल करती हैं क्योंकि बचे हुए मौके इसके बाद खत्म हो जाएंगे और दो नए अवसर इसमें जुड़ जाएंगे.
पुणे के पहले टेस्ट में भी रही यही कहानी
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफचार टेस्ट मैचों के पुणे में खेले गए शुरुआती टेस्ट मैच में हालांकि भारतीय टीम को DRS में नाकामी ही हाथ लगी. क्षेत्ररक्षण करते हुए उसने चार अवसरों पर रिव्यू लिया लेकिन सभी मौकों पर वह गलत साबित हुई. दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया ने केवल एक बार रिव्यू लिया और उसमें भी वह सफल रहा. बल्लेबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने छह बार रिव्यू लिया जिसमें दो बार वे सफल रहे जबकि भारतीय बल्लेबाज तीन में से केवल एक बार (पहली पारी में रवींद्र जडेजा) ही सफल रहे. यहां तक कि भारत की दूसरी पारी में सलामी बल्लेबाज मुरली विजय और केएल राहुल ने छठे ओवर तक भारत के दोनों रिव्यू समाप्त कर दिए.
इन मौकों पर टीम इंडिया को रिव्यू लेने का हुआ फायदा
वैसे इससे पहले भारतीय बल्लेबाजों को कुछ अवसरों पर रिव्यू का फायदा मिला. इंग्लैंड के खिलाफ राजकोट में चेतेश्वर पुजारा जब 87 रन पर खेल रहे थे तब उन्हें पगबाधा आउट दे दिया गया था लेकिन उन्होंने डीआरएस का सहारा लिया और अंपायर क्रिस गफाने को अपना फैसला बदलना पड़ा. पुजारा ने इस पारी में शतक (124 रन) जड़ा. रिव्यू से पता चला कि गेंद लेग स्टंप को छोड़कर बाहर जा रही थी. इसी तरह अंपायर ने अपना फैसला बदला और कोहली ने इसके बाद 204 रन बनाए और लगातार चार टेस्ट सीरीज में दोहरा शतक जड़ने वाले दुनिया के पहले बल्लेबाज बने. साहा ने बाद में कहा था, ‘मैंने उससे (कोहली से) कहा कि वह गेंद खेलने के लिये आगे निकला था और गेंद टर्न हो रही थी. इसलिए उसने रिव्यू लिया और अंपायर ने अपना फैसला बदला. दूसरी बार जब उसे आउट दिया गया तो मैंने उससे कहा कि गेंद आफ स्टंप से बाहर जा सकती है. हालांकि वह भी इसको लेकर सुनिश्चित नहीं था. इसलिए वह पवेलियन लौट गया और इस तरह से उसने टीम के लिये एक रिव्यू बचाने का फैसला किया. ’ (भाषा से इनपुट)
यदि यह पूछा जाए कि क्या टीम इंडिया डीआरएस का सही उपयोग करने में नाकाम रही है, तो अब तक के टीम के अनुभव को देखते हुए इसका जवाब 'हां' में ही होगा. कोहली की टीम को विशेषकर क्षेत्ररक्षण करते समय अक्सर ‘तीसरी आंख’ की पैनी निगाह से बोल्ड होना पड़ा. भारत लंबे समय डीआरएस का विरोध करता रहा, लेकिन पिछले साल इंग्लैंड के खिलाफ पांच टेस्ट मैचों की सीरीज से वह ट्रायल के तौर पर इसे आजमाने के लिए तैयार हो गया और तब से सभी टेस्ट मैचों में यह प्रणाली अपनाई गई. भारतीय खिलाड़ियों की इस प्रणाली को लेकर अनुभवहीनता हालांकि खुलकर सामने आई है. DRS अपनाने के बाद भारत ने अब तक जो सात टेस्ट मैच खेले हैं उनमें बल्लेबाजी करते हुए कुल 13 बार मैदानी अंपायर के फैसले को चुनौती दी लेकिन इनमें से केवल चार बार वह फैसला पलटने में कामयाब हो पाया.
क्षेत्ररक्षण करते समय भारतीय टीम ने कुल 42 बार DRS का सहारा लिया लेकिन इनमें से सिर्फ 10 अवसरों पर ही टीम को सफलता मिली. हर मैच में पहले 80 ओवर तक प्रत्येक टीम को DRS के दो अवसर मिलते हैं. अगर वह इनमें सफल रहती है तो उसका अवसर कम नहीं होता लेकिन नाकाम रहने पर उसके अवसरों की संख्या घट जाती है. अकसर देखा जाता है कि टीमें 70 से 80 ओवर के बीच इस प्रणाली का अधिक इस्तेमाल करती हैं क्योंकि बचे हुए मौके इसके बाद खत्म हो जाएंगे और दो नए अवसर इसमें जुड़ जाएंगे.
पुणे के पहले टेस्ट में भी रही यही कहानी
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफचार टेस्ट मैचों के पुणे में खेले गए शुरुआती टेस्ट मैच में हालांकि भारतीय टीम को DRS में नाकामी ही हाथ लगी. क्षेत्ररक्षण करते हुए उसने चार अवसरों पर रिव्यू लिया लेकिन सभी मौकों पर वह गलत साबित हुई. दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया ने केवल एक बार रिव्यू लिया और उसमें भी वह सफल रहा. बल्लेबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने छह बार रिव्यू लिया जिसमें दो बार वे सफल रहे जबकि भारतीय बल्लेबाज तीन में से केवल एक बार (पहली पारी में रवींद्र जडेजा) ही सफल रहे. यहां तक कि भारत की दूसरी पारी में सलामी बल्लेबाज मुरली विजय और केएल राहुल ने छठे ओवर तक भारत के दोनों रिव्यू समाप्त कर दिए.
इन मौकों पर टीम इंडिया को रिव्यू लेने का हुआ फायदा
वैसे इससे पहले भारतीय बल्लेबाजों को कुछ अवसरों पर रिव्यू का फायदा मिला. इंग्लैंड के खिलाफ राजकोट में चेतेश्वर पुजारा जब 87 रन पर खेल रहे थे तब उन्हें पगबाधा आउट दे दिया गया था लेकिन उन्होंने डीआरएस का सहारा लिया और अंपायर क्रिस गफाने को अपना फैसला बदलना पड़ा. पुजारा ने इस पारी में शतक (124 रन) जड़ा. रिव्यू से पता चला कि गेंद लेग स्टंप को छोड़कर बाहर जा रही थी. इसी तरह अंपायर ने अपना फैसला बदला और कोहली ने इसके बाद 204 रन बनाए और लगातार चार टेस्ट सीरीज में दोहरा शतक जड़ने वाले दुनिया के पहले बल्लेबाज बने. साहा ने बाद में कहा था, ‘मैंने उससे (कोहली से) कहा कि वह गेंद खेलने के लिये आगे निकला था और गेंद टर्न हो रही थी. इसलिए उसने रिव्यू लिया और अंपायर ने अपना फैसला बदला. दूसरी बार जब उसे आउट दिया गया तो मैंने उससे कहा कि गेंद आफ स्टंप से बाहर जा सकती है. हालांकि वह भी इसको लेकर सुनिश्चित नहीं था. इसलिए वह पवेलियन लौट गया और इस तरह से उसने टीम के लिये एक रिव्यू बचाने का फैसला किया. ’ (भाषा से इनपुट)
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