सौरव गांगुली (फाइल फोटो)- फोटो साभार- AFP
नई दिल्ली:
जुलाई महीने की 7 और 8 तारीख भारतीय क्रिकेट के दो सबसे सफल कप्तानों के लिए बेहद खास दिन है। 7 तारीख को एमएस धोनी तो 8 को सौरव गांगुली का जन्मदिन है। दादा आज अपना 44वां जन्मदिन मना रहे हैं। गांगुली ने अपने क्रिकेट की शुरुआत तो 1992 में की थी, लेकिन 1996 के इंग्लैंड दौरे पर अपने पहली ही टेस्ट मैच में शतक लगाने से ही गांगुली सुर्खियों में आए थे। न केवल अपनी पहली बल्कि अपनी दूसरी पारी में भी उन्होंने शतक जमाया था।
टीम इंडिया की काया पलट दी
एक वक्त मैच फिक्सिंग के भूत ने टीम इंडिया पर कई सवाल ख़डे कर दिए थे, जब टीम के कई खिलाड़ियों का नाम खुलकर फिक्सिंग में आया था। तब लगा कि भारतीय क्रिकेट इस बड़े भूंचाल में नहीं बच पाएगा, लेकिन तभी चयनकर्ता ने गांगुली को कप्तान बनाया और दादा ने अपनी जांबाज़ कप्तानी से टीम इंडिया का काया पलट दी थी।
ईंट का जवाब पत्थर से...
इससे पहले टीम इंडिया को अक्सर विदेशी टीमें जमकर स्लेज करती थीं। मैदान पर भारतीय टीम कभी भी पलट कर जवाब नहीं देती थी, लेकिन सौरन गांगुली ने इस रवैये को पूरी तरह बदल दिया। दादा ने टीम को सिखाया की ईंट का जवाब पत्थर से देना है और विदेशी टीम को उसी भाषा में जवाब देना है जिस भाषा में वो टीम इंडिया को स्लेज करती है। लॉर्ड्स के मैदान पर टी-शर्ट उतारकर लहराना हो, या फिर ऑस्ट्रेलिया के कप्तान स्टीव वॉ को टॉस के लिए इंतजार करवाना हो। गांगुली ने अपने रवैये से भारतीय कप्तान की परिभाषा को ही बदल दिया।
खिलाड़ियों को जमकर किया बैक...
गांगुली को जो खिलाड़ी पसंद आ जाता उसे वो खुलकर बैक करते थे। 19 साल के हरभजन सिंह को एनसीए से अनुशासनहीनता के चलते बाहर कर दिया गया था, लेकिन गांगुली जानते थे कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ 2000-2001 की सीरीज़ में वो असरदार होंगे। दादा ने सभी के खिलाफ़ जाते हुए भज्जी को टीम में लिया और 3 टेस्ट मैचों की सीरीज़ में 32 विकेट लेकर भज्जी ने इतिहास रच दिया। सहवाग की बल्लेबाज़ से प्रभावित होते हुए गांगुली ने उनसे पारी की शुरुआत करने को कहा और उसके बाद वीरू ने पीछे मुड के नहीं देखा। युवराज सिंह हों या फिर ज़हीर खान, दादा ने जिसे पसंद किया उसको खुल कर बैक किया।
रिटायरमेंट के बाद भी बरकरार दादा की दादागिरी
जगमोहन डालमिया की मौत के बाद सौरव गांगुली कोलकाता क्रिकेट की टॉप पोस्च पर काबिज़ हुए। सचिन, लक्ष्मण के साथ वह बीसीसीआई की सलाहकार समिति के सदस्य हैं। टीम इंडिया में अनिल कुंबले को मुख्य कोच बनाने के पीछे उन्हीं का दिमाग माना जा रहा है। यहां तक कि जब रवि शास्त्री ने उन पर सवाल उठाए तो दादा ने अपने ही अंदाज़ में उन्हें करारा जवाब दे दिया।
टीम इंडिया की काया पलट दी
एक वक्त मैच फिक्सिंग के भूत ने टीम इंडिया पर कई सवाल ख़डे कर दिए थे, जब टीम के कई खिलाड़ियों का नाम खुलकर फिक्सिंग में आया था। तब लगा कि भारतीय क्रिकेट इस बड़े भूंचाल में नहीं बच पाएगा, लेकिन तभी चयनकर्ता ने गांगुली को कप्तान बनाया और दादा ने अपनी जांबाज़ कप्तानी से टीम इंडिया का काया पलट दी थी।
ईंट का जवाब पत्थर से...
इससे पहले टीम इंडिया को अक्सर विदेशी टीमें जमकर स्लेज करती थीं। मैदान पर भारतीय टीम कभी भी पलट कर जवाब नहीं देती थी, लेकिन सौरन गांगुली ने इस रवैये को पूरी तरह बदल दिया। दादा ने टीम को सिखाया की ईंट का जवाब पत्थर से देना है और विदेशी टीम को उसी भाषा में जवाब देना है जिस भाषा में वो टीम इंडिया को स्लेज करती है। लॉर्ड्स के मैदान पर टी-शर्ट उतारकर लहराना हो, या फिर ऑस्ट्रेलिया के कप्तान स्टीव वॉ को टॉस के लिए इंतजार करवाना हो। गांगुली ने अपने रवैये से भारतीय कप्तान की परिभाषा को ही बदल दिया।
खिलाड़ियों को जमकर किया बैक...
गांगुली को जो खिलाड़ी पसंद आ जाता उसे वो खुलकर बैक करते थे। 19 साल के हरभजन सिंह को एनसीए से अनुशासनहीनता के चलते बाहर कर दिया गया था, लेकिन गांगुली जानते थे कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ 2000-2001 की सीरीज़ में वो असरदार होंगे। दादा ने सभी के खिलाफ़ जाते हुए भज्जी को टीम में लिया और 3 टेस्ट मैचों की सीरीज़ में 32 विकेट लेकर भज्जी ने इतिहास रच दिया। सहवाग की बल्लेबाज़ से प्रभावित होते हुए गांगुली ने उनसे पारी की शुरुआत करने को कहा और उसके बाद वीरू ने पीछे मुड के नहीं देखा। युवराज सिंह हों या फिर ज़हीर खान, दादा ने जिसे पसंद किया उसको खुल कर बैक किया।
रिटायरमेंट के बाद भी बरकरार दादा की दादागिरी
जगमोहन डालमिया की मौत के बाद सौरव गांगुली कोलकाता क्रिकेट की टॉप पोस्च पर काबिज़ हुए। सचिन, लक्ष्मण के साथ वह बीसीसीआई की सलाहकार समिति के सदस्य हैं। टीम इंडिया में अनिल कुंबले को मुख्य कोच बनाने के पीछे उन्हीं का दिमाग माना जा रहा है। यहां तक कि जब रवि शास्त्री ने उन पर सवाल उठाए तो दादा ने अपने ही अंदाज़ में उन्हें करारा जवाब दे दिया।
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