
नई दिल्ली:
सचिन तेंदुलकर के संन्यास को लेकर चल रही चर्चा के बीच पूर्व भारतीय कप्तान अनिल कुंबले ने टीम में इस स्टार बल्लेबाज की जगह पर सवाल उठा रहे लोगों की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि तेंदुलकर की भावनाओं की कद्र की जानी चाहिए।
तेंदुलकर लंबे समय से खराब फॉर्म में चल रहे हैं और कई लोगों ने भारतीय टीम में उनके स्थान पर सवाल खड़े किए हैं, लेकिन कुंबले ने कहा कि यह समय उन पर अंगुली उठाने का नहीं, बल्कि समर्थन करने का है।
कुंबले ने 'वीक' पत्रिका में अपने कॉलम में लिखा, कई ऐसे मौके थे, जबकि उन्होंने अकेले भारत को जीत दिलाई, लेकिन वह भारत की हार के एकमात्र कारण कभी नहीं रहे। बेहतर यही होगा कि उनके सामने जो है, उससे उन्हें खुद निबटने दें, क्योंकि कोई उनकी जगह नहीं ले सकता। किसी ने अब तक 192 टेस्ट मैच नहीं खेले हैं, 34 हजार रन नहीं बनाए हैं या 100 शतक नहीं लगाए हैं। उन्हें वह सम्मान दें, जिसके वह हकदार हैं।
उन्होंने लिखा है, पिछले 23 साल में उन्होंने लोगों के सपने साकार करने में मदद की। उन्हें भावनात्मक रूप से बेहतर महसूस कराया। अब हमें उनकी भावनाओं की भी कद्र करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि केवल तेंदुलकर ही नहीं, बल्कि पूरी टीम बुरे दौर से गुजर रही है तथा यह कहना पूरी तरह गलत होगा कि यह टीम तेंदुलकर की खराब फॉर्म के कारण बुरा प्रदर्शन कर रही है।
कुंबले ने कहा, पहली बार लोग टीम में उनके स्थान पर सवाल उठा रहे हैं। कहा जा रहा है कि उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए, क्योंकि पिछले साल या हाल में उनका प्रदर्शन वैसा नहीं रहा जैसा कि उससे पहले के 22 वर्षों में था। हां हमने इस दौर में सचिन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं देखा, लेकिन केवल वह अकेले ऐसे नहीं रहे। यदि आप संपूर्ण तस्वीर पर गौर करो, तो टीम टेस्ट क्रिकेट में संघर्ष करती रही है। तो क्या हम यह मानते हैं कि भारत अब भी 'वन मैन आर्मी' है और पूरी तरह से सचिन पर निर्भर है। मैं मानता हूं कि ऐसा नहीं है।
तेंदुलकर लंबे समय से खराब फॉर्म में चल रहे हैं और कई लोगों ने भारतीय टीम में उनके स्थान पर सवाल खड़े किए हैं, लेकिन कुंबले ने कहा कि यह समय उन पर अंगुली उठाने का नहीं, बल्कि समर्थन करने का है।
कुंबले ने 'वीक' पत्रिका में अपने कॉलम में लिखा, कई ऐसे मौके थे, जबकि उन्होंने अकेले भारत को जीत दिलाई, लेकिन वह भारत की हार के एकमात्र कारण कभी नहीं रहे। बेहतर यही होगा कि उनके सामने जो है, उससे उन्हें खुद निबटने दें, क्योंकि कोई उनकी जगह नहीं ले सकता। किसी ने अब तक 192 टेस्ट मैच नहीं खेले हैं, 34 हजार रन नहीं बनाए हैं या 100 शतक नहीं लगाए हैं। उन्हें वह सम्मान दें, जिसके वह हकदार हैं।
उन्होंने लिखा है, पिछले 23 साल में उन्होंने लोगों के सपने साकार करने में मदद की। उन्हें भावनात्मक रूप से बेहतर महसूस कराया। अब हमें उनकी भावनाओं की भी कद्र करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि केवल तेंदुलकर ही नहीं, बल्कि पूरी टीम बुरे दौर से गुजर रही है तथा यह कहना पूरी तरह गलत होगा कि यह टीम तेंदुलकर की खराब फॉर्म के कारण बुरा प्रदर्शन कर रही है।
कुंबले ने कहा, पहली बार लोग टीम में उनके स्थान पर सवाल उठा रहे हैं। कहा जा रहा है कि उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए, क्योंकि पिछले साल या हाल में उनका प्रदर्शन वैसा नहीं रहा जैसा कि उससे पहले के 22 वर्षों में था। हां हमने इस दौर में सचिन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं देखा, लेकिन केवल वह अकेले ऐसे नहीं रहे। यदि आप संपूर्ण तस्वीर पर गौर करो, तो टीम टेस्ट क्रिकेट में संघर्ष करती रही है। तो क्या हम यह मानते हैं कि भारत अब भी 'वन मैन आर्मी' है और पूरी तरह से सचिन पर निर्भर है। मैं मानता हूं कि ऐसा नहीं है।
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