नई दिल्ली:
बुरे दौरे से गुज़र रही है टीम इंडिया, और भारतीय क्रिकेट में यह ट्रांज़िशन का वक्त है... यह बात हर कोई कह भी रहा है और मान भी रहा है, लेकिन इसके बावजूद क्रिकेट एक्सपर्ट्स, पूर्व क्रिकेटरों और फैन्स को यह भी उम्मीद है कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा... सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यह तय है कि मौजूदा कोच डंकन फ्लेचर की छुट्टी होना लगभग तय है, और बोर्ड के अधिकारी अब विदेशी नहीं, देसी कोच चाहते हैं, जो टीम इंडिया की ज़रूरतों को समझे, खिलाड़ियों की मानसिकता से वाकिफ हो और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का भार कुछ कम कर सके...
लेकिन क्या सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा, या फिर कुछ कड़े फैसले लेने होंगे... इतिहास गवाह है कि कोई भी टीम सिर्फ धैर्य रखकर मुसीबत से नहीं उबरी है... किसी भी टीम को पटरी पर लाने के लिए बोर्ड से लेकर खिलाड़ियों और स्पोर्ट स्टाफ का सही चुनाव ही काम आ सकता है... अब भारतीय क्रिकेट में भी ऐसे ही बदलाव की कवायद शुरू हो गई है और 15 जनवरी को होने जा रही वर्किंग कमेटी की बैठक में इस मुद्दे पर बात होनी भी तय है...
सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार चयनकर्ताओं को प्रदर्शन के आधार पर टीम का चयन करने की इजाज़त देने के बाद बोर्ड के आला अधिकारी अब सपोर्ट स्टाफ को बदलने की फिराक में हैं... वर्किंग कमेटी में भारतीय टीम के मौजूदा कोच डंकन फ्लेचर की भूमिका पर शर्तिया बात होगी, क्योंकि आंकड़ों को देखते हुए अधिकारी कोच के काम से खुश नहीं हैं, और उनके कॉन्ट्रेक्ट को वे आगे नहीं बढ़ाना चाहते, सो, मार्च, 2013 में मौजूदा कॉन्ट्रेक्ट खत्म होने के बाद कोच फ्लेचर एंड कंपनी की छुट्टी लगभग तय है...
यह तथ्य सबके सामने है कि जब से हेड कोच डंकन फ्लेचर, गेंदबाज़ी कोच जॉन डॉस और फील्डिंग कोच ट्रेवर पेन्नी ने टीम इंडिया की देखभाल करनी शुरू की है, टीम का ग्राफ नीचे ही गिरा है... फ्लेचर के काल में टीम इंडिया ने 20 टेस्ट मैच खेले हैं, जिनमें से उन्हें सिर्फ छह में जीत मिली... इन छह जीतों में से भी पांच अपनी ही धरती पर हासिल हुईं... इसके अलावा इस दौरान टीम इंडिया ने 44 वन-डे मैच खेले, जिनमें से 22 जीते, और इनमें से 10 भारत ने अपनी ज़मीन पर जीते... इसके अलावा भी कभी कोच फ्लेचर छुट्टियां मनाने अपने घर चले जाते थे, और कभी ऐसी बातें बाहर निकलकर आती रहीं कि वह खिलाड़ियों के साथ मैदान के बाहर वक्त नहीं बिताते, उन्हें प्रेरित नहीं कर पाते, उन्हें समझ नहीं पाते...
इन सब बातों के मद्देनज़र, कोच की छुट्टी होना लगभग तय है, लेकिन ख़बर सिर्फ इतनी ही नहीं है... ख़बर यह भी है कि बोर्ड के कई अधिकारी टीम इंडिया के इस मुश्किल वक्त में विदेशी नहीं, पूर्व देसी खिलाड़ियों को ही कोच की भूमिका में देखना चाहते हैं, जो टीम इंडिया की ज़रूरतों को समझे, खिलाड़ियों की मानसिकता से वाकिफ हो, और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का भार कुछ कम कर सके... ऐसी स्थिति में चार ऐसे नाम हैं, जिन पर आज नहीं तो कल विचार होना तय है...
सौरव गांगुली
टीम इंडिया के सफलतम कप्तान सौरव गांगुली इस फेहरिस्त में सबसे आगे हैं... गांगुली ने कभी कोच बनने से इन्कार भी नहीं किया है... वह टीम के ज़्यादातर खिलाड़ियों की ताकत और कमज़ोरियों से भी भली प्रकार वाकिफ हैं... सौरव गांगुली को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से रिटायर हुए भी करीब चार साल हो गए हैं... और उनके पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि वह मौजूदा कोच फ्लेचर के उलट, खिलाड़ियों से बात करके उन्हें प्रोत्साहित करने का काम बखूबी कर सकते हैं... गांगुली के आ जाने से माही को कम से कम मैदान के बाहर खिलाड़ियों की चिंता करने की ज़रूरत नहीं रहेगी...
कपिल देव
टीम इंडिया में ज़हीर खान के आउट ऑफ फॉर्म होने के बाद से तेज़ गेंदबाज़ी का मोर्चा अचानक बहुत हल्का नज़र आने लगा है... नए तेज़ गेंदबाज़ मैदान पर मूलभूत गलतियां करते दिखाई देते हैं... कपिल देव जैसा दिग्गज नए तेज़ गेंदबाज़ों की खेप तैयार करने में मदद कर सकता है... हेड कोच नहीं तो गेंदबाज़ी कन्सल्टेन्ट के तौर पर कपिल को टीम से जोड़ना एक अच्छा फैसला होगा... कपिल के पास टीम इंडिया को कोचिंग देने का भी थोड़ा-बहुत अनुभव है...
अनिल कुंबले
टीम इंडिया के सबसे सफल लेग-स्पिनर अनिल कुंबले की काबिलियत से हर कोई वाकिफ है... खिलाड़ी, कप्तान और अधिकारी के तौर पर वह अपने आप को साबित कर चुके हैं... कुंबले खेल को अच्छी तरह समझते हैं, ज़्यादा मीडिया-सैवी भी नहीं हैं और भारत में कमज़ोर पड़ती स्पिन गेंदबाज़ी की कला में वह जान फूंक सकते हैं...
राहुल द्रविड़
टेस्ट मैचों में लम्बे समय तक बल्लेबाज़ी करने, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में बल्लेबाज़ी करते हुए क्या तकनीक आज़मानी चाहिए, और स्लिप में फील्डिंग करने की कला को राहुल द्रविड़ से बेहतर शायद ही कोई जानता हो... कोच के रोल में शायद चुप रहने वाले द्रविड़ उतने सफल न हो पाएं, लेकिन बल्लेबाज़ी कन्सल्टेन्ट के तौर पर राहुल द्रविड़ की सेवाएं लेना बोर्ड की तरफ से एक अच्छा आइडिया होगा...
लेकिन क्या सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा, या फिर कुछ कड़े फैसले लेने होंगे... इतिहास गवाह है कि कोई भी टीम सिर्फ धैर्य रखकर मुसीबत से नहीं उबरी है... किसी भी टीम को पटरी पर लाने के लिए बोर्ड से लेकर खिलाड़ियों और स्पोर्ट स्टाफ का सही चुनाव ही काम आ सकता है... अब भारतीय क्रिकेट में भी ऐसे ही बदलाव की कवायद शुरू हो गई है और 15 जनवरी को होने जा रही वर्किंग कमेटी की बैठक में इस मुद्दे पर बात होनी भी तय है...
सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार चयनकर्ताओं को प्रदर्शन के आधार पर टीम का चयन करने की इजाज़त देने के बाद बोर्ड के आला अधिकारी अब सपोर्ट स्टाफ को बदलने की फिराक में हैं... वर्किंग कमेटी में भारतीय टीम के मौजूदा कोच डंकन फ्लेचर की भूमिका पर शर्तिया बात होगी, क्योंकि आंकड़ों को देखते हुए अधिकारी कोच के काम से खुश नहीं हैं, और उनके कॉन्ट्रेक्ट को वे आगे नहीं बढ़ाना चाहते, सो, मार्च, 2013 में मौजूदा कॉन्ट्रेक्ट खत्म होने के बाद कोच फ्लेचर एंड कंपनी की छुट्टी लगभग तय है...
यह तथ्य सबके सामने है कि जब से हेड कोच डंकन फ्लेचर, गेंदबाज़ी कोच जॉन डॉस और फील्डिंग कोच ट्रेवर पेन्नी ने टीम इंडिया की देखभाल करनी शुरू की है, टीम का ग्राफ नीचे ही गिरा है... फ्लेचर के काल में टीम इंडिया ने 20 टेस्ट मैच खेले हैं, जिनमें से उन्हें सिर्फ छह में जीत मिली... इन छह जीतों में से भी पांच अपनी ही धरती पर हासिल हुईं... इसके अलावा इस दौरान टीम इंडिया ने 44 वन-डे मैच खेले, जिनमें से 22 जीते, और इनमें से 10 भारत ने अपनी ज़मीन पर जीते... इसके अलावा भी कभी कोच फ्लेचर छुट्टियां मनाने अपने घर चले जाते थे, और कभी ऐसी बातें बाहर निकलकर आती रहीं कि वह खिलाड़ियों के साथ मैदान के बाहर वक्त नहीं बिताते, उन्हें प्रेरित नहीं कर पाते, उन्हें समझ नहीं पाते...
इन सब बातों के मद्देनज़र, कोच की छुट्टी होना लगभग तय है, लेकिन ख़बर सिर्फ इतनी ही नहीं है... ख़बर यह भी है कि बोर्ड के कई अधिकारी टीम इंडिया के इस मुश्किल वक्त में विदेशी नहीं, पूर्व देसी खिलाड़ियों को ही कोच की भूमिका में देखना चाहते हैं, जो टीम इंडिया की ज़रूरतों को समझे, खिलाड़ियों की मानसिकता से वाकिफ हो, और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का भार कुछ कम कर सके... ऐसी स्थिति में चार ऐसे नाम हैं, जिन पर आज नहीं तो कल विचार होना तय है...
सौरव गांगुली
टीम इंडिया के सफलतम कप्तान सौरव गांगुली इस फेहरिस्त में सबसे आगे हैं... गांगुली ने कभी कोच बनने से इन्कार भी नहीं किया है... वह टीम के ज़्यादातर खिलाड़ियों की ताकत और कमज़ोरियों से भी भली प्रकार वाकिफ हैं... सौरव गांगुली को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से रिटायर हुए भी करीब चार साल हो गए हैं... और उनके पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि वह मौजूदा कोच फ्लेचर के उलट, खिलाड़ियों से बात करके उन्हें प्रोत्साहित करने का काम बखूबी कर सकते हैं... गांगुली के आ जाने से माही को कम से कम मैदान के बाहर खिलाड़ियों की चिंता करने की ज़रूरत नहीं रहेगी...
कपिल देव
टीम इंडिया में ज़हीर खान के आउट ऑफ फॉर्म होने के बाद से तेज़ गेंदबाज़ी का मोर्चा अचानक बहुत हल्का नज़र आने लगा है... नए तेज़ गेंदबाज़ मैदान पर मूलभूत गलतियां करते दिखाई देते हैं... कपिल देव जैसा दिग्गज नए तेज़ गेंदबाज़ों की खेप तैयार करने में मदद कर सकता है... हेड कोच नहीं तो गेंदबाज़ी कन्सल्टेन्ट के तौर पर कपिल को टीम से जोड़ना एक अच्छा फैसला होगा... कपिल के पास टीम इंडिया को कोचिंग देने का भी थोड़ा-बहुत अनुभव है...
अनिल कुंबले
टीम इंडिया के सबसे सफल लेग-स्पिनर अनिल कुंबले की काबिलियत से हर कोई वाकिफ है... खिलाड़ी, कप्तान और अधिकारी के तौर पर वह अपने आप को साबित कर चुके हैं... कुंबले खेल को अच्छी तरह समझते हैं, ज़्यादा मीडिया-सैवी भी नहीं हैं और भारत में कमज़ोर पड़ती स्पिन गेंदबाज़ी की कला में वह जान फूंक सकते हैं...
राहुल द्रविड़
टेस्ट मैचों में लम्बे समय तक बल्लेबाज़ी करने, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में बल्लेबाज़ी करते हुए क्या तकनीक आज़मानी चाहिए, और स्लिप में फील्डिंग करने की कला को राहुल द्रविड़ से बेहतर शायद ही कोई जानता हो... कोच के रोल में शायद चुप रहने वाले द्रविड़ उतने सफल न हो पाएं, लेकिन बल्लेबाज़ी कन्सल्टेन्ट के तौर पर राहुल द्रविड़ की सेवाएं लेना बोर्ड की तरफ से एक अच्छा आइडिया होगा...
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