सचिन तेंदुलकर ने कहा - क्रोन्ये को देखकर डर लगता था और सहवाग को देखकर मज़ा आता था

सचिन तेंदुलकर ने कहा - क्रोन्ये को देखकर डर लगता था और सहवाग को देखकर मज़ा आता था

नई दिल्ली:

सचिन तेंदुलकर को मैदान पर गुस्सा क्यों नहीं आता था. आमतौर पर आक्रामक खेल से दुनिया की नज़रों में आने वाले खिलाड़ियों के बीच सचिन ऐसे थे जो अपने शांत रवैये से सबको हैरान कर जाते थे.

हिंदुस्तान टाइम्स के लीडरशिप समिट में सचिन ने इस पहलू पर बात करते हुए कहा कि 'मेरा मैदान पर गुस्सा नहीं होना एक सोची समझी रणनीति होती थी.' एनडीटीवी के निखिल नाज़ से बात करते हुए सचिन ने कहा 'आक्रामक कब होना है यह फैसला मेरे हाथ में है, लेकिन कभी बदला लेने के लिए मैं आक्रामक नहीं हुआ.'

ग्लेन मैकग्रा के खिलाफ अपने आक्रामक रवैये पर सचिन ने कहा कि वो सोची समझी रणनीति थी. 'मैकग्रा के बारे में मैंने 'दादी' से बात की. मैं बता दूं कि दादा (सौरव गांगुली) को मैं कभी कभी दादी भी बोलता था. तो मैंने उनसे बात की और हमने तय किया कि उन्हें ज़रा मानसिक रूप से परेशान करना होगा ताकि वह अलग गेंद फेंकें. इसलिए मैंने उस वक्त ग्लेन से ऐसी बातें कहीं जो मैं यहां बता भी नहीं सकता.' बता दें कि साल 2000 की चैंपियन्स ट्रॉफी के दौरान ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाज़ मैकग्रा और सचिन के बीच मैदान पर ज़रा गरमा गरमी देखी गई थी. इसी से जुड़े सवाल पर सचिन ने यह राज उजागर किया.

जब सचिन से पूछा गया कि किस गेंदबाज़ को देखकर वह ज़रा डर जाते थे, तो उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के हैंसी क्रोन्ये का नाम लिया. वहीं इसी टीम के जैक कालिस के लिए उन्होंने कहा कि उनका गेंद फेंकने से पहले लगातार घास को देखते रहना उन्हें काफी दिलचस्प लगता था. सचिन ने बताया 'कालिस जब घास को देखता था तो हम लोग बोलते थे कि जिस दिन कालिस को पता चल गया कि घास की ब्लेड किस तरफ जा रही है, हम मैदान में दिन भर खड़े रहेंगे.'

वहीं नॉन स्ट्राइकर एंड पर खड़े होकर कौन से खिलाड़ी की बल्लेबाज़ी देखने में उन्हें मज़ा आता था, इस पर सचिन ने वीरेंद्र सहवाग का नाम लिया. उन्होंने कहा - सहवाग को बैटिंग करते रहना एक रोलर कोस्टर राइड की तरह है. आप यही सोचते रह जाते हैं कि पता नहीं आगे क्या आने वाला है. अपने मनपसंद नॉन क्रिकेट खिलाड़ी के बारे में सचिन ने सवाल पूरा होने भी नहीं दिया और तपाक से टेनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर का नाम ले दिया.

क्या टेस्ट क्रिकेट फॉर्मेट अब खत्म होता जा रहा है, इस पर सचिन ने कहा कि टेस्ट क्रिकेट नहीं मर रहा है, लोगों की सोच बदल रही है. टी-20 और तकनीक के आने से लोगों की रुचि बदली है. तेंदुलकर ने कहा 'मैं टेस्ट क्रिकेट देखते हुए बड़ा हुआ हूं. आज की पीढ़ी टी-20 देखती है, लेकिन अब टीमों के बीच उतनी प्रतिद्वंद्विता ही नहीं बची.' टेस्ट में लोगों की रुचि पर सचिन ने कहा कि दर्शकों को बांधे रखने के लिए जरूरी है कि टेस्ट क्रिकेट में गेंद और बल्ले के बीच बराबरी की टक्कर हो.

सचिन ने इस मौके पर फिटनेस की बात भी की और माना कि भारत में सेहत को लेकर गंभीरता काफी कम है. उन्होंने कहा 'एक देश होने के नाते हमें और ज्यादा भागीदारी दिखानी होगी. हमारे देश में हम बस टीवी के सामने बैठकर बॉलिंग और बैटिंग पर कमेंट करते हैं. डायनिंग टेबल पर और पराठें मंगाते हैं, लेकिन जिम में 25 मिनट गुज़रने के बाद घड़ी देखने लगते हैं.' तेंदुलकर ने साफ कहा कि 'अगर आपको लगता है कि हम यंग नेशन हैं, फिट नेशन हैं तो यह गलत है. सच तो यह है कि हम दुनिया की डायबिटीज़ राजधानी हैं जहां 6 करोड़ से ज्यादा डायबिटीज़ के मरीज़ हैं.'

क्या इतने साल मैदान पर जादू बिखेरने के बाद सचिन तेंदुलकर क्रिकेट को मिस करते हैं. इसका जवाब मास्टर ब्लास्टर ने ना में दिया. सचिन ने कहा कि बतौर सांसद अब वह ऐसे कई काम कर पा रहे हैं जो क्रिकेट खेलने के दौरान वह नहीं कर पा रहे थे. उन्होंने कहा कि वह दूर-दराज के लोगों से मिल रहे हैं, देश के कोनों कोनों में जाकर लोगों से मुलाकात कर रहे हैं.


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