मुंबई:
शाहरुख खान के वानखेड़े स्टेडियम में घुसने पर बैन लगाने के एमसीए के फैसले के खिलाफ भले ही बीसीसीआई ने अपनी राय दी है लेकिन नियमों के अनुसार देखा जाए तो बीसीसीआई के करने के लिए ज्यादा कुछ है नहीं।
इस लड़ाई में एक और सवाल उठ गया है। वानखेड़े पर बीसीसीआई बनाम एमसीए की लड़ाई में किसका पलड़ा भारी है। बता दें कि बीसीसीआई का अपना संविधान है। पू्र्णकालिक सदस्यों का अपना नियम है। एमसीए, बीसीसीआई की फुल मेंबर है।
बीसीसीआई अपने सदस्यों के फैसले को सिर्फ उसी सूरत में पलट सकती है जब फैसला बोर्ड या उसके अधिकारियों के ख़िलाफ हो और शाहरुख बीसीसीआई के सदस्य नहीं है। इसलिए बीसीसीआई एमसीए के फैसले को पलट नहीं सकता है।
बीसीसीआई के अधिकारी एमसीए के फैसले को भले ही प्रस्ताव बताएं लेकिन सच्चाई यही है कि नियमों के तहत मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के शाहरुख पर बैन के फैसले को पलटना उनके लिए आसान नहीं है।
इस लड़ाई में एक और सवाल उठ गया है। वानखेड़े पर बीसीसीआई बनाम एमसीए की लड़ाई में किसका पलड़ा भारी है। बता दें कि बीसीसीआई का अपना संविधान है। पू्र्णकालिक सदस्यों का अपना नियम है। एमसीए, बीसीसीआई की फुल मेंबर है।
बीसीसीआई अपने सदस्यों के फैसले को सिर्फ उसी सूरत में पलट सकती है जब फैसला बोर्ड या उसके अधिकारियों के ख़िलाफ हो और शाहरुख बीसीसीआई के सदस्य नहीं है। इसलिए बीसीसीआई एमसीए के फैसले को पलट नहीं सकता है।
बीसीसीआई के अधिकारी एमसीए के फैसले को भले ही प्रस्ताव बताएं लेकिन सच्चाई यही है कि नियमों के तहत मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के शाहरुख पर बैन के फैसले को पलटना उनके लिए आसान नहीं है।
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