
बीसीसीआई और अनुराग ठाकुर लोढा पैनल की सभी सिफारिशें मानने को तैयार नहीं थे (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई में सुधारों पर लंबे समय से चल रही सुनवाई पर सोमवार को फैसला सुनाया और बोर्ड अध्यक्ष अनुराग ठाकुर व सचिव अजय शिर्के को पद से हटा दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि बोर्ड के वह सभी पदाधिकारी जो लोढा पैनल की सिफारिशें मानने से मना करते हैं, उन्हें भी जाना होगा. भारतीय क्रिकेट में यह फैसला आमूलचूल बदलाव ला सकता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई है. जानिए किन वजहों से अनुराग और शिर्के हुए बीसीसीआई से बेदखल और क्या है पूरा मामला... (अनुराग ठाकुर और सचिव शिर्के को बर्खास्त किए जाने पर शरद पवार सहित इन दिग्गजों ने दी राय...)
बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को हटाए जाने के पीछे मुख्य वजह उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट की लगातार की जा रही अवमानना रही, वहीं सचिव अजय शिर्के ने भी कुछ ऐसा ही रुख अपनाया था. दरअसल इन दोनों पर ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बीसीसीआई में सुधार को लेकर लोढा पैनल की सिफारिशों के लागू कराने की जिम्मेदारी थी, लेकिन इन्होंने राज्य क्रिकेट संघों का हवाला देकर सुधारों का लागू नहीं किया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए कई बार फटकार भी लगाई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कहा था कि सुधर जाओं नहीं तो हम अपने आदेश से सुधार देंगे. फिर भी ठाकुर और शिर्के ने इसे सीरियसली नहीं लिया और बहाने बनाते रहे. इस पर लोढा पैनल ने सुप्रीम कोर्ट में बोर्ड के शीर्ष पदाधिकारियों को हटाए जाने की मांग रख दी और कई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जब देखा कि बीसीसीआई लगातार उसके निर्देशों की अवहेलना कर रहा है, तो उसने अनुराग ठाकुर और अजय शिर्के को हटाने का फैसला सुना दिया. यहां तक कि अनुराग ठाकुर को कोर्ट की अवमानना का नोटिस भी जारी किया गया है.
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग से हुई थी शुरुआत...
दरअसल बीसीसीआई के लिए मुश्किलों का दौर साल 2013 में शुरू हुआ था, जब आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग और मैच फिक्सिंग के मामले ने जोर पकड़ा. दिल्ली पुलिस ने आईपीएल टीम राजस्थान रॉयल के तीन खिलाड़ियों को गिरफ्तार किया. इन पर मैच के दौरान स्पॉट फ़िक्सिंग में लिप्त होने का आरोप था. इसके कुछ ही दिन बाद उस समय के बीसीसीआई प्रमुख एन श्रीनिवासन के दामाद और उनकी आईपीएल टीम चेन्नई सुपर किंग्स के सीईओ गुरुनाथ मयप्पन और अभिनेता बिंदु दारा सिंह भी हिरासत में ले लिए गए. इस मामले ने तूल पकड़ा और वह सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इसकी जांच के लिए जस्टिस मुकुल मुद्गल के अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी, जिसने साल 2014 में अपनी रिपोर्ट सौंपी.
मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई में सुधारों की जरूरत महसूस करते हुए कुछ सख्त निर्देश दिए और इसके लिए जनवरी, 2015 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस आरएम लोढा के नेतृत्व में तीन सदस्यों की कमेटी गठित कर दी. फिर जस्टिस लोढ़ा कमेटी ने 4 जनवरी, 2016 को बीसीसीआई में सुधारों के लिए कई् अहम सिफारिशें रखीं. बीसीसीआई ने इनमें से कई सिफारिशों पर तो हां कह दिया, लेकिन कुछ को लेकर अड़ियल रुख अपना लिया. बस तब से इस पर कई दौर की सुनवाई हो चुकी थी और बीसीसीआई अपने रुख से डिगने को तैयार नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने उसे कई बार चेतावनी भी दी, उसका फंड भी रोका, लेकिन बोर्ड अपनी समस्याओं का रोना रोता रहा.
बोर्ड को इन सुझावों पर है आपत्ति
बीसीसीआई ने लोढा पैनल की अधिकारियों की उम्र और कार्यकाल के मुद्दे, अधिकारियों के कूलिंग ऑफ़ पीरियड और एक राज्य, एक वोट की सिफ़ारिश पर बेरुखी दिखाई थी और इन्हें लागू करने में असमर्थता जताई थी. हालांकि कोर्ट ने उसके तर्कों को नकार दिया.
लोढा पैनल की कुछ मुख्य सिफारिशें
बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को हटाए जाने के पीछे मुख्य वजह उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट की लगातार की जा रही अवमानना रही, वहीं सचिव अजय शिर्के ने भी कुछ ऐसा ही रुख अपनाया था. दरअसल इन दोनों पर ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बीसीसीआई में सुधार को लेकर लोढा पैनल की सिफारिशों के लागू कराने की जिम्मेदारी थी, लेकिन इन्होंने राज्य क्रिकेट संघों का हवाला देकर सुधारों का लागू नहीं किया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए कई बार फटकार भी लगाई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कहा था कि सुधर जाओं नहीं तो हम अपने आदेश से सुधार देंगे. फिर भी ठाकुर और शिर्के ने इसे सीरियसली नहीं लिया और बहाने बनाते रहे. इस पर लोढा पैनल ने सुप्रीम कोर्ट में बोर्ड के शीर्ष पदाधिकारियों को हटाए जाने की मांग रख दी और कई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जब देखा कि बीसीसीआई लगातार उसके निर्देशों की अवहेलना कर रहा है, तो उसने अनुराग ठाकुर और अजय शिर्के को हटाने का फैसला सुना दिया. यहां तक कि अनुराग ठाकुर को कोर्ट की अवमानना का नोटिस भी जारी किया गया है.
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग से हुई थी शुरुआत...
दरअसल बीसीसीआई के लिए मुश्किलों का दौर साल 2013 में शुरू हुआ था, जब आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग और मैच फिक्सिंग के मामले ने जोर पकड़ा. दिल्ली पुलिस ने आईपीएल टीम राजस्थान रॉयल के तीन खिलाड़ियों को गिरफ्तार किया. इन पर मैच के दौरान स्पॉट फ़िक्सिंग में लिप्त होने का आरोप था. इसके कुछ ही दिन बाद उस समय के बीसीसीआई प्रमुख एन श्रीनिवासन के दामाद और उनकी आईपीएल टीम चेन्नई सुपर किंग्स के सीईओ गुरुनाथ मयप्पन और अभिनेता बिंदु दारा सिंह भी हिरासत में ले लिए गए. इस मामले ने तूल पकड़ा और वह सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इसकी जांच के लिए जस्टिस मुकुल मुद्गल के अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी, जिसने साल 2014 में अपनी रिपोर्ट सौंपी.
मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई में सुधारों की जरूरत महसूस करते हुए कुछ सख्त निर्देश दिए और इसके लिए जनवरी, 2015 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस आरएम लोढा के नेतृत्व में तीन सदस्यों की कमेटी गठित कर दी. फिर जस्टिस लोढ़ा कमेटी ने 4 जनवरी, 2016 को बीसीसीआई में सुधारों के लिए कई् अहम सिफारिशें रखीं. बीसीसीआई ने इनमें से कई सिफारिशों पर तो हां कह दिया, लेकिन कुछ को लेकर अड़ियल रुख अपना लिया. बस तब से इस पर कई दौर की सुनवाई हो चुकी थी और बीसीसीआई अपने रुख से डिगने को तैयार नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने उसे कई बार चेतावनी भी दी, उसका फंड भी रोका, लेकिन बोर्ड अपनी समस्याओं का रोना रोता रहा.
बोर्ड को इन सुझावों पर है आपत्ति
बीसीसीआई ने लोढा पैनल की अधिकारियों की उम्र और कार्यकाल के मुद्दे, अधिकारियों के कूलिंग ऑफ़ पीरियड और एक राज्य, एक वोट की सिफ़ारिश पर बेरुखी दिखाई थी और इन्हें लागू करने में असमर्थता जताई थी. हालांकि कोर्ट ने उसके तर्कों को नकार दिया.
लोढा पैनल की कुछ मुख्य सिफारिशें
- 9 सदस्यों वाली परिषद! लोढा पैनल ने यह सिफारिश की थी कि बीसीसीआई की 14 सदस्यों वाली कार्यकारिणी कमेटी की जगह 9 सदस्यों वाली शीर्ष परिषद बनाई जाए.
- 70 साल से अधिक वाले पद छोड़े! एक अहम सिफारिश यह थी कि 70 साल से अधिक की उम्र का कोई भी व्यक्ति बीसीसीआई या राज्य बोर्ड की किसी भी कमेटी का सदस्य न बने.
- एक राज्य-एक संघ! पैनल ने कहा था कि किसी भी राज्य में सिर्फ एक ही संघ होना चाहिए और एक राज्य सिर्फ एक वोट कर सकता है. अगर एक राज्य में एक से ज्यादा क्रिकेट संघ है तो वह रोटेशन के तहत वोट दें.
- 3 सदस्यों वाली चयन समिति! बीसीसीआई की कार्यकारिणी कमेटी में कोई भी मंत्री या सरकारी अधिकारी न हो. टीम चयन के लिए पांच सदस्यों की जगह तीन सदस्य वाली चयन समिति बने.
- 3 साल का कार्यकाल! पैनल ने कहा कि एक पदाधिकारी एक बार में केवल तीन साल के लिए ही बीसीसीआई की कार्यकारिणी का सदस्य रहे और ज्यादा से ज्यादा तीन बार बीसीसीआई का चुनाव लड़े. लगातार दो बार कोई भी पदाधिकारी किसी भी पद पर नहीं रह सकता.
- अलग-अलग संचालन! आईपीएल और बीसीसीआई की अलग-अलग संचालन संस्था हो. आईपीएल और राष्ट्रीय कैलेंडर के बीच 15 दिन का अंतर होना चाहिए यानी आईपीएल ख़त्म होने के 15 दिन के बाद खिलाड़ी कोई भी अंतरराष्ट्रीय मैच खेल सकता है.
- सट्टेबाजी को वैधता! लोढा पैनल ने सट्टेबाज़ी को वैध करने की सिफारिश की थी, लेकिन यह भी कहा था कि कोई खिलाड़ी, प्रबंधक और पदाधिकारी सट्टेबाज़ी का हिस्सा न हो. पैनल ने यह भी सिफारिश की कि मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग को अपराध माना जाए.
- एक व्यक्ति-एक पद! एक सदस्य सिर्फ एक पद पर रहे चाहे वह राज्य क्रिकेट बोर्ड के किसी समिति का हो या बीसीसीआई की मूल समिति का.
- RTI के दायरे में लाना! बीसीसीआई को आरटीआई एक्ट के दायरे में लाया जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे संसद का मामला बताया था और इसे नहीं माना.
- खिलाड़ियों के हित के लिए एक संघ बनाए जाए और उसकी फंडिंग बीसीसीआई करे.
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