BCCI में सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा - बोर्ड में मंत्री न हों शामिल, फैसला रखा सुरक्षित

BCCI में सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा - बोर्ड में मंत्री न हों शामिल, फैसला रखा सुरक्षित

BCCI में सुधार संबंधी जस्टिस लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को लागू किए जाने के मामले पर सुनवाई के बाद गुरुवार सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि जस्टिस लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें पूरी तरह लागू होंगी या BCCI को कोई छूट मिलेगी। नीचे देखिए क्या हैं लोढ़ा पैनल की सिफारिशें-

राजनेताओं पर पाबंदी नहीं, लेकिन...
BCCI ने कोर्ट में कहा कि कमेटी ने मंत्रियों, सरकारी अफसरों को बोर्ड में पद नहीं देने की सिफारिश की है, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनेताओं पर कोई पाबंदी नहीं है, बस मंत्री नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि BCCI का परफॉरमेंस ऑडिट होना चाहिए। यह जवाबदेही होनी चाहिए कि पैसा कहां जा रहा है और कहां खर्च हो रहा है।

मंत्रियों को लेकर उठाया था सवाल
गौरतलब है कि बोर्ड में मंत्रियों को शामिल किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में सुनवाई के दौरान सवाल उठाते हुए बीसीसीआई से पूछा था,"आप मंत्रियों को शामिल करने की तरफदारी क्यों कर रहे हैं, क्या मंत्री भी क्रिकेट खेलना चाहते हैं, अगर कोई मंत्री कहता तो समझ में आती, लेकिन बोर्ड उनके लिए तरफदारी क्यों कर रहा है?'

स्वायत्तता में दखल देना उद्देश्य नहीं
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने गुरुवार को कहा, 'हम BCCI की स्वायत्तता में दखल नहीं दे रहे। हम सिर्फ खेल का विकास सही तरीके से हो, इसमें दिलचस्पी रखते हैं।'

BCCI ने नियुक्त किया था लोकपाल और सीईओ
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई ने जस्टिस लोढ़ा पैनल के सुझावों में से कुछ को सुप्रीम कोर्ट के दबाव में पहले ही मानते हुए जस्टिस एपी शाह को बतौर लोकपाल नियुक्त किया था और फिर अप्रैल में राहुल जौहरी को उसने नया सीईओ नियुक्त किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में यह भी संकेत दिया था कि वह भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) में सुधारों को लेकर जस्टिस लोढ़ा पैनल की ओर से की गई सिफारिशों की एक-दो बातों पर दोबारा विचार करने को कह सकता है, लेकिन बाकी सिफारिशों बोर्ड को माननी ही होंगी।

लोढ़ा कमेटी की मुख्य सिफारिशें

  • कमेटी की पहली सिफारिश में कोई भी व्यक्ति 70 साल की उम्र के बाद बीसीसीआई या राज्य संघ पदाधिकारी नहीं बन सकता। इस पर अमल हुआ तो मुंबई क्रिकेट संघ के महत्वाकांक्षी अध्यक्ष शरद पवार, तमिलनाडु क्रिकेट संघ के एन. श्रीनिवासन की बोर्ड में वापसी का रास्ता बंद हो जाएगा। सौराष्ट्र क्रिकेट संघ के प्रमुख निरंजन शाह, पंजाब के शीर्ष पदाधिकारियों एमपी पांडोव और आईएस बिंद्रा के लिए भी अपने राज्य संघों में बने रहना मुश्किल हो जाएगा।
  • लोढा समिति का सबसे अहम सुझाव है कि एक राज्य संघ का एक मत होगा और अन्य को एसोसिएट सदस्य के रूप में रेलीगेट किया जाएगा। इसके अलावा यह भी सुझाव है कि रेलवे, सर्विसेज़ और यूनिवर्सिटीज़ की मान्यता घटाकर उन्हें सहयोगी सदस्य बना दिया जाए।
  • आईपीएल और बीसीसीआई के लिए अलग-अलग गवर्निंग काउंसिल हों। इसके अलावा समिति ने आईपीएल गवर्निंग काउंसिल को सीमित अधिकार दिए जाने का भी सुझाव दिया है।
  • समिति ने बीसीसीआई पदाधिकारियों के चयन के लिए मानकों का भी सुझाव दिया है। उनका कहना है कि उन्हें मंत्री या सरकारी अधिकारी नहीं होना चाहिए, और वे नौ साल अथवा तीन कार्यकाल तक बीसीसीआई के किसी भी पद पर न रहे हों। लोढा समिति का यह भी सुझाव है कि बीसीसीआई के किसी भी पदाधिकारी को लगातार दो से ज़्यादा कार्यकाल नहीं दिए जाने चाहिए।
  • समिति की सिफारिशों में सबसे महत्वपूर्ण बात है नवंबर, 2015 में आईपीएल के सीओओ पद से इस्तीफा देने वाले सुंदर रमन को क्लीन चिट दिया जाना।
  • समिति ने इन-बिल्ट मैकेनिज़्म तैयार कर सट्टेबाज़ी को वैध किए जाने की सिफारिश की है।
  • लोढा समिति की रिपोर्ट में खिलाड़ियों की एसोसिएशन के गठन तथा स्थापना का भी प्रस्ताव किया गया है।
  • समिति ने एक स्टीयरिंग कमेटी बनाए जाने की सिफारिश की है, जिसकी अध्यक्षता गृहसचिव जीके पिल्लै करेंगे, तथा मोहिन्दर अमरनाथ, डायना एदुलजी तथा अनिल कुंबले उसके सदस्य होंगे।
  • समिति ने कहा कि नीति अधिकारी (Ethics Officer) हितों के टकराव (conflict of interest) पर फैसला लेगा।
  • समिति का सुझाव है कि बीसीसीआई को सूचना अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे में लाया जाना चाहिए।
  • समिति के मुताबिक, बीसीसीआई के क्रिकेट से जुड़े मामलों का निपटारा पूर्व खिलाड़ियों को ही करना चाहिए, जबकि गैर-क्रिकेटीय मसलों पर फैसले छह सहायक प्रबंधकों तथा दो समितियों की मदद से सीईओ करेंगे।

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