प्रतीकात्मक फोटो
अहमदाबाद:
गुजरात के नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध से जुड़े नदी इलाके में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी का काम शुरू हो चुका है। दुनिया की सबसे ऊंची सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा बनाने के प्रोजेक्ट को स्टेच्यू ऑफ यूनिटी नाम दिया गया है। इसे नरेन्द्र मोदी का महात्वाकांक्षी और ड्रीम प्रोजेक्ट बताया गया है।
प्रतिमा की नींव बनाने का काम शुरू
इस प्रतिमा के लिए नींव बनाने का काम गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने शुरू कराया है। इस प्रतिमा की स्थापना पर 3000 करोड़ रुपये खर्च होने वाले हैं। इससे जुड़े अन्य प्रोजेक्ट भी शुरू होंगे ताकि पर्यटन उद्योग को इसके साथ जोड़ा जाए। इस प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि सन 2018 के मध्य तक इस प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया जाएगा। सूत्रों की मानें तो 2018 में सरदार पटेल की जन्म जयंती पर नरेन्द्र मोदी यहां आ सकते हैं। सन 2019 के लोकसभा चुनाव में यह भी नरेन्द्र मोदी का एक मुद्दा हो सकता है, दुनिया में सबसे बड़ी प्रतिमा बनाने की उपलब्धि का।
करोड़ों रुपये खर्च करने का विरोध
दूसरी तरफ स्थानीय लोगों का एक तबका है जो अब भी स्टेच्यू ऑफ यूनिटी प्रोजेक्ट का विरोध कर रहा है। इस मुहिम को चलाने वाले स्थानीय मानव अधिकार कार्यकर्ता लखन मुसाफिर का आरोप है कि इस इलाके में बांध बनने के बावजूद स्थानीय लोग सिंचाई के पानी को तरसते हैं। बुनियादी शिक्षा से लेकर अन्य सुविधाओं का अभाव है। ऐसे में 3000 करोड़ की प्रतिमा नहीं बनानी चाहिए। अगर यह पैसे बुनियादी सुविधाओं पर खर्च हों तो इस पूरे इलाके की तस्वीर बदल सकती है।
हालांकि यह विरोध इतने बड़े पैमाने पर नहीं है कि प्रोजेक्ट खटाई में पड़े। इससे लगने लगा है कि 2019 के चुनाव से पहले मोदी के पास इस उपलब्धि का मुद्दा तैयार हो जाएगा।
प्रतिमा की नींव बनाने का काम शुरू
इस प्रतिमा के लिए नींव बनाने का काम गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने शुरू कराया है। इस प्रतिमा की स्थापना पर 3000 करोड़ रुपये खर्च होने वाले हैं। इससे जुड़े अन्य प्रोजेक्ट भी शुरू होंगे ताकि पर्यटन उद्योग को इसके साथ जोड़ा जाए। इस प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि सन 2018 के मध्य तक इस प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया जाएगा। सूत्रों की मानें तो 2018 में सरदार पटेल की जन्म जयंती पर नरेन्द्र मोदी यहां आ सकते हैं। सन 2019 के लोकसभा चुनाव में यह भी नरेन्द्र मोदी का एक मुद्दा हो सकता है, दुनिया में सबसे बड़ी प्रतिमा बनाने की उपलब्धि का।
करोड़ों रुपये खर्च करने का विरोध
दूसरी तरफ स्थानीय लोगों का एक तबका है जो अब भी स्टेच्यू ऑफ यूनिटी प्रोजेक्ट का विरोध कर रहा है। इस मुहिम को चलाने वाले स्थानीय मानव अधिकार कार्यकर्ता लखन मुसाफिर का आरोप है कि इस इलाके में बांध बनने के बावजूद स्थानीय लोग सिंचाई के पानी को तरसते हैं। बुनियादी शिक्षा से लेकर अन्य सुविधाओं का अभाव है। ऐसे में 3000 करोड़ की प्रतिमा नहीं बनानी चाहिए। अगर यह पैसे बुनियादी सुविधाओं पर खर्च हों तो इस पूरे इलाके की तस्वीर बदल सकती है।
हालांकि यह विरोध इतने बड़े पैमाने पर नहीं है कि प्रोजेक्ट खटाई में पड़े। इससे लगने लगा है कि 2019 के चुनाव से पहले मोदी के पास इस उपलब्धि का मुद्दा तैयार हो जाएगा।
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