बीजेपी की हार से मुस्तफा भाई परेशान हैं.आंखें नम हैं, हाथ बंधे हैं, और सामने पड़े अखबार की एक-एक खबर पुरानी हो चुकी है. शाम होने को है और उनकी आंखें बड़ी देर से नई खबर को खोज रही हैं. मुस्तफा पंत मार्ग के दिल्ली बीजेपी आफिस के बाहर करीब 20-25 साल से कुर्ता-पायजामा का कपड़ा बेचने का व्यवसाय कर रहे हैं.
मुस्तफा सुबह अपनी मोपेड से आते हैं, जमीन को साफ करके चादर बिछाकर अपने ठिहे पर बैठ जाते हैं. उनके इर्द गिर्द नई सिली चार-पांच मोदी जैकेट रखी हैं. कुछ खाली पन्नियां और दस से पंद्रह थान कुर्ता और पायजामे के कपड़े... यही उनकी दुकान है. वे हर दिन हजार-पांच सौ के कपड़े अनुभवी नेताओं से लेकर नेता बनने की चाहत रखने वालों को बेच ही देते हैं. इस मामले में मुस्तफा भाई की दुकान जमीन पर है और विश्वसनीयता आसमान पर.
मुस्तफा के चेहरे पर हमेशा हल्की हंसी रहती है लेकिन आज वे बगल के अमरूद बेचने वाले से काफी देर तक गंभीरता से खुसर-पुसर करते रहे. किसी ने बताया कि मुस्तफा बड़ा दुखी है. जब से बीजेपी हारी है, तीन-चार दिन से कुर्ते की बिक्री ही नहीं हुई है. बीजेपी दफ्तर में हार-जीत की समीक्षा चल रही है, लेकिन लगता है हार की पहली गाज मुस्तफा भाई पर ही गिरी है. शायद इसीलिए चाणक्य ने राजनीति की बात अपनी किताब अर्थशास्त्र में लिखी थी- जहां अर्थ है वहीं राजनीति है.
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