नई दिल्ली:
अगर आप दमा और अस्थमा से पीड़ित हैं और इन दिनों प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस आना चाहते हैं तो संभलकर आएं क्योंकि यहां की हवा में उड़ रहे धूल के कण आपकी बीमारी को बढ़ा सकते हैं. और जो लोग इन बीमारियों से ग्रस्त नहीं है वो भी सतर्क रहें क्योंकि बनारस की फ़िज़ा खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुकी है. दीपावली के बाद तो ये प्रदूषण और बढ़ गया है. इस प्रदूषण को खतरनाक स्थिति तक ले जा रहे हैं यहां के कूड़े के ढेर जिनमें नगर निगम खुद ही आग लगा देता है.
तस्वीरों में धूल के गुबार की यह सड़क बनारस के शिवाजी नगर इलाके की है. जहां हर सुबह कूड़ा साफ़ करने के बाद सफाईकर्मी इसी तरह आग लगा देते हैं. इसकी वजह से धर्म नगरी का स्वास्थ्य हाशिये पर है.
वहीं, इस मामले में नगर स्वास्थय अधिकारी अविनाश सिंह का कहना है, "त्योहार की वजह से कूड़ा ज़्यादा निकाला था तो कुछ जगहों पर ऐसी शिकायत मिल सकती है लेकिन हम लोग दो चार दिन में सब ठीक कर लेंगे और कहीं भी जलता कूड़ा नहीं पाया जाएगा."
दीवाली की अगली सुबह जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, सोनारपुरा चौराहे पर पीएम 2.5 कण 990, पीएम 10 कण 687.9 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पाया गया.
लंका पर 432.6 और 482, गोदौलिया चौराहे पर 541.5 और 720.1 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पाया गया. अपेक्षाकृत स्वच्छ माने जाने वाले पर्यटन क्षेत्र सारनाथ में चौकाने वाले आंकड़े सामने आए, जहां पीएम 2.5 की मात्रा 463 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर और पीएम 10 की मात्रा 419 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पाई गई. मच्छोदरी इलाके में पीएम 2.5 की मात्रा 632.8 और पीएम 10 की मात्रा 815.8 पाई गई. यानी इन सभी इलाकों में प्रदूषण के स्तर मानकों की तुलना में 15 से 20 गुणा ज्यादा प्रदूषित पाया गया.
यानी साफ़ है कि बनारस की फिजाओं में सिर्फ धूल ही नहीं बल्कि जगह-जगह इस तरह जलते कूड़े का जहरीले धुआं भी लोगों की ज़िन्दगी में ज़हर घोल रहा है. इसकी वजह भी है 20 लाख की आबादी वाले इस शहर में हर रोज़ तक़रीबन 600 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है जिसके निस्तारण की कोई जगह नहीं है. लिहाजा सफाईकर्मी ज़्यादातर कूड़े ऐसे ही जला देते हैं जिससे फ़िज़ा में धूल के कण ज़िन्दगी को बेजार किए हुए हैं.
शहर के प्रतिष्ठित श्वांस रोग विशेषज्ञ और एलर्जी क्लिनिक के निदेशक डॉ. आरएन वाजपेयी ने बताया कि खुदी हुई सड़कें, कुड़ा जलाना और वाहनों का भारी दबाव बनारस को पहले से ही प्रदूषित कर चुका है. ऐसे में, दीवाली के अवसर पर पटाखों नें हवा में मौजूद जहर की मात्रा कई गुना बढ़ गई है.
तस्वीरों में धूल के गुबार की यह सड़क बनारस के शिवाजी नगर इलाके की है. जहां हर सुबह कूड़ा साफ़ करने के बाद सफाईकर्मी इसी तरह आग लगा देते हैं. इसकी वजह से धर्म नगरी का स्वास्थ्य हाशिये पर है.
वहीं, इस मामले में नगर स्वास्थय अधिकारी अविनाश सिंह का कहना है, "त्योहार की वजह से कूड़ा ज़्यादा निकाला था तो कुछ जगहों पर ऐसी शिकायत मिल सकती है लेकिन हम लोग दो चार दिन में सब ठीक कर लेंगे और कहीं भी जलता कूड़ा नहीं पाया जाएगा."
दीवाली की अगली सुबह जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, सोनारपुरा चौराहे पर पीएम 2.5 कण 990, पीएम 10 कण 687.9 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पाया गया.
लंका पर 432.6 और 482, गोदौलिया चौराहे पर 541.5 और 720.1 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पाया गया. अपेक्षाकृत स्वच्छ माने जाने वाले पर्यटन क्षेत्र सारनाथ में चौकाने वाले आंकड़े सामने आए, जहां पीएम 2.5 की मात्रा 463 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर और पीएम 10 की मात्रा 419 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पाई गई. मच्छोदरी इलाके में पीएम 2.5 की मात्रा 632.8 और पीएम 10 की मात्रा 815.8 पाई गई. यानी इन सभी इलाकों में प्रदूषण के स्तर मानकों की तुलना में 15 से 20 गुणा ज्यादा प्रदूषित पाया गया.
यानी साफ़ है कि बनारस की फिजाओं में सिर्फ धूल ही नहीं बल्कि जगह-जगह इस तरह जलते कूड़े का जहरीले धुआं भी लोगों की ज़िन्दगी में ज़हर घोल रहा है. इसकी वजह भी है 20 लाख की आबादी वाले इस शहर में हर रोज़ तक़रीबन 600 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है जिसके निस्तारण की कोई जगह नहीं है. लिहाजा सफाईकर्मी ज़्यादातर कूड़े ऐसे ही जला देते हैं जिससे फ़िज़ा में धूल के कण ज़िन्दगी को बेजार किए हुए हैं.
शहर के प्रतिष्ठित श्वांस रोग विशेषज्ञ और एलर्जी क्लिनिक के निदेशक डॉ. आरएन वाजपेयी ने बताया कि खुदी हुई सड़कें, कुड़ा जलाना और वाहनों का भारी दबाव बनारस को पहले से ही प्रदूषित कर चुका है. ऐसे में, दीवाली के अवसर पर पटाखों नें हवा में मौजूद जहर की मात्रा कई गुना बढ़ गई है.
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