एक सप्ताह पहले पांच सांसद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मिले और उनसे स्टार प्रचारकों की सूची में वरुण गांधी का नाम जोड़ने को कहा क्योंकि उनका नाम न होने से आम जनता में गलत संदेश जा रहा था. पांच सांसदों के दल में शामिल रहे हाथरस से बीजेपी सांसद राजेश दिवाकर का कहना है, "मुझे 2009 में टिकट भैयाजी ने ही दिलवाया था. उन्होंने 2009 में मेरी दावेदारी का समर्थन किया था. वह मेरे नेता हैं और मेरे उनसे पारिवारिक संबंध हैं. भैयाजी के अपमान से मेरे क्षेत्र के लोगों में गलत संदेश जा रहा था.
लोगों मुझसे बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और नोटबंदी के बारे में लगातार पूछ रहे थे." हम पांच सांसदों के दल को कहा गया, "आज, आप आए हैं, कल अगर 50 लोग आ गए तो क्या होगा? बीजेपी दबाव की राजनीति को बर्दाश्त नहीं करेगी. अन्य सांसदों में धर्मेंद्र कश्यप (आंवला), अजय मिश्रा (लखीमपुर खीरी), साबित्रीबाई फुले (बइराइच) और भानु प्रताप सिंह वर्मा (जालौन) शामिल थे. दिवाकर का कहना है कि वे इस बात से दुखी हुए क्योंकि वह और उनके साथी कोई दबाव नहीं डाल रहे थे बल्कि न्याय चाह रहे रहे थे."
इस मीटिंग में शामिल रहे एक अन्य सांसद ने बताया कि बीजेपी अध्यक्ष ने गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि वह गांधी पर काबू नहीं रख सकते और उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया. इतना ही नहीं उन्हें वापस जाने और बीजेपी के लिए काम करने का भी हुक्म सुना दिया.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ बगावत होने की पूरी संभावना है क्योंकि पार्टी के 45 उम्मीदवारों के टिकट गांधी से निकटता होने के चलते काट दिए गए हैं. एक तरह से उन्हें वरुण गांधी से ज्यादा करीबी होने का खामियाजा भुगतना पड़ा है. ऐसे में इन उम्मीदवारों के निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है. जाहिर है कि इससे बीजेपी की मुश्किल बढ़ेगी. ये सभी बीजेपी के विधायक रहे हैं. अमित शाह से मीटिंग के बाद अगले ही दिन वरुण गांधी का नाम बीजेपी स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल कर लिया गया. 40 सदस्यीय सूची में वरुण 39वां स्थान पर हैं. उनका नाम दूसरी सूची में सामने आया. हालांकि माना जा रहा है कि उन्होंने पार्टी को बता दिया है कि वे पार्टी के लिए प्रचार नहीं करेंगे. जब लेखिका ने उनसे इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया लेने का प्रयास किया तो वरुण गांधी ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
"पूरे उत्तर प्रदेश में, बीजेपी में जो भी वरुण गांधी के करीब हैं, उन्हें टिकट नहीं दिया गया है और वे अब निर्दलीय रूप से मैदान में हैं और भैया जी के मातहत काम कर रहे हैं. इन 45 उम्मीदवारों में से मैंने हर किसी से बात की है और वे सभी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 'बार-बार किए गए अपमान का बदला" लेना चाहते हैं."
पीलीभीत की बरखेड़ा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे स्वामी प्रवक्तानंद का कहना है, "मेरे लिए, बीजेपी का मतलब वरुण गांधी था और मैं उनके अपमान का बदला लेने के लिए लड़ रहा हूं. भैयाजी के साथ धोखा किया गया है. वो चुप रह सकते हैं लेकिन हम नहीं रह सकते. उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार होना चाहिए था." उन्होंने आगे कहा, "अगर मैं जीत गया तो मैं अपनी जीत का श्रेय भैयाजी को दूंगा."
चंद्रभद्र सिंह और उनके भाई इंद्रपाल सिंह जो बीजेपी के साथ थे, को टिकट देने से इनकार दिया गया है और अब वे निर्दलीय तौर पर चुनावी समर में हैं. उनक कहना है, "अमित शाह भैयाजी से डरे हुए हैं. वे उनके साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकते हैं? इसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना होगा."
बागियों का कहना है कि उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने से पहले कई बार शाह से बात करने की कोशिश की थी. इंद्रपाल सिंह ने बताया, "शाह ने कहा कि वह वरुण को नियंत्रित नहीं कर सकते. क्या गांधी कोई जानवर हैं जिन्हें पालतू बननए की जरूरत है."
याद रखें कि शाह पहले से ही योगी आदित्यनाथ के संगठन हिंदू युवा वाहिनी के विद्रोह का सामना कर रहे हैं जो पहले ही बीजेपी के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर चुकी है. हिंदू युवा वाहिनी को नाराजगी इस बात को लेकर है कि उनके मुखिया योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया है. हालांकि आदित्यनाथ ने इस विद्रोह से इनकार कर दिया है और अब वे पार्टी के लिए हेलीकॉप्टर से प्रचार कर रहे हैं.
हालांकि, वरुण गांधी ने इस परिपाटी पर चलने से इनकार कर दिया है. उनके समर्थकों का कहना है कि उनकी छवि ऐसी है जो "सार्वजनिक रूप से मौन गंभीर रहते हैं." वरुण गांधी ने स्थानीय स्तर पर कुछ ऐसी पहल की जिससे उनको आम जनता में छवि एक अच्छे नेता के रूप में बनी. उन्होंने उत्तर प्रदेश के 30 जिलों के 4000 गरीब किसानों का कर्ज उतारने के लिए अमीर लोगों से करीब 19 करोड़ रुपये चुकाए थे.
तो इन सब नए घटनाक्रमों से बीजेपी के लिए क्या मायने हैं?
शाह पहले से ही नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने में जुटे हैं जिन्हें दूसरी पार्टियों से आए लोगों की वजह से टिकट नहीं मिल सका है. हालांकि वरुण गांधी ने सार्वजनिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया है और न ही मोदी और शाह से किसी अनबन का जिक्र किया है. ऐसा लगता है कि उनके लिए बीजेपी में अवसर कम हो रहे हैं. वरुण ने कभी भी सार्वजनिक तौर पर यह भी नहीं कहा कि शाह ने उनका कद छोटा कर दिया है लेकिन उनके समर्थन में पांच सांसदों का दिल्ली जाकर शाह से मिलना बहुत कुछ कहता है. बीजेपी में बढ़ते असंतोष से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रातों की नींद उड़ सकती है.
(अनुवाद : चतुरेश तिवारी)
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका और पत्रकार हैं. वह 'द इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' और 'द हिंदुस्तान टाइम्स' में काम कर चुकी हैं)
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This Article is From Feb 05, 2017
वरुण गांधी की अनदेखी से हो सकती है बीजेपी में बड़ी बगावत
Swati Chaturvedi
- पोल ब्लॉग,
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Updated:फ़रवरी 07, 2017 14:08 pm IST
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Published On फ़रवरी 05, 2017 00:09 am IST
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Last Updated On फ़रवरी 07, 2017 14:08 pm IST
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