डीएनए यानि डीआॅक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड, इसकी खोज वाॅटसन और क्रिक ने 1953 में की थी। तब उन्होने ने सोचा भी नहीं होगा कि 62 साल बाद उसी डीएनए पर बिहार में राजनैतिक बहस होगी। उस प्रदेश के लोग इस पर बहस कर रहे हैं, जहां से कहा जाता है कि सबसे अधिक अफसर चुने जाते हैं। दरअसल यह सब शुरू हुआ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक रैली में दिए गए भाषण से, जिसमें उन्होंने नीतिश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा था कि ऐसा लगता है कि उनके डीएनए में कोई समस्या है, क्योंकि लोकतंत्र का डीएनए ऐसा नहीं होता। लोकतंत्र में आप अपने विरोधियों का भी सम्मान करते हैं।
अब सवाल यह है कि डीएनए पर इतना बवाल क्यों है? डीएनए शरीर की हर कोशिका या शेल में पाया जाता है। यह तय करता है कि आप कैसे दिखेंगे। साथ ही यह कुछ हद तक आपके व्यक्तित्व को भी प्रभावित करता है। यही वजह है कि नीतिश कुमार ने इस मुद्दे को बिहार की अस्मिता से जोड़ दिया। नीतिश ने प्रधानमंत्री को जवाब देते हुए कहा कि 'मैं बिहार का बेटा हूं और जो बिहारियों का डीएनए है, वही मेरा भी है।' इसी तरह की कुछ भावना बिहार के लोगों में भी है। बिहारियों ने भी प्रधानमंत्री के इस बयान को अच्छे ढंग से नहीं लिया। बिहारियों का डीएनए कैसा होगा, एक तो उसमें किसी भी हालात से उबरकर सामने आने की हिम्मत होगी, किसी भी हालात में पढ़ाई करेगा, राजनैतिक रूप से सजग और सामान्य रूप से धर्मनिरपेक्ष मगर जातिवाद से भी ग्रसित होगा। यही वजह है कि अभी तक यहां बीजेपी की सरकार अपने बूते पर नहीं बन पाई है। वहीं गुजरातियों के डीएनए में पढ़ाई से अधिक धंधा करने और उसके लिए देश-विदेश में फैल जाना शामिल होगा। वे धार्मिक होंगे और उससे उनकी विचारधारा भी प्रभावित होगी।
अब जरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नीतिश कुमार का डीएनए दखते हैं। दोनों अपने-अपने राज्यों में अच्छा काम कर चुके हैं। दोनों पर किसी तरह के भष्ट्राचार का कोई दाग नहीं है, हालांकि दोनों के खिलाफ राज्यों के सीएजी ने टिप्पणी की है, मगर दोनों जगह विपक्ष कोई मुद्दा नहीं बना सका। मोदी और नीतिश दोनों पिछड़ी जाति से आते हैं। नरेन्द्र मोदी 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा में सारथी बनकर सुर्खियों में आए तो नीतिश जयप्रकाश नारायण और लोहिया को आर्दश मानते रहे, वीपी सिंह के सर्मथक रहे और 1989 में जनता दल के सेक्रेट्री जनरल बने। मोदी 1995 में बीजेपी के नेशनल सेक्रेट्री बने। नीतिश के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और जब नीतिश को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो वे जनता पार्टी में चले गए। मोदी संघ के प्रचारक रहे और प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने राजनैतिक गुरू आडवाणी को मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया। उधर राजनैतिक मजबूरी में नीतिश कुमार को अपने विरोधी लालू यादव से हाथ मिलाना पड़ा और जिस कांग्रेस विरोध की राजनीति वे करते आए और जिसकी वजह से वे बीजेपी के साथ गए उसे छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। ऐसा पुराने समाजवादी जयपाल रेड्डी और श्रीकांत जेना पहले ही कर चुके थे। यह इनकी राजनीति का डीएनए है और फैसला बिहार की जनता को करना है।
नीतिश ने इसको राजनैतिक रंग दे दिया है। 50 लाख बिहारियों की डीएनए रिपोर्ट प्रधानमंत्री को भेजी जाएगी। अभी तो शुरुआत है, देखते जाईए यह डीएनए कहां तक जाएगा क्योंकि मोदी और नीतिश का राजनैतिक डीएनए कहता है कि वे अपनी राजनैतिक दुश्मनी भी बड़ी शिद्दत से निभाते हैं।
This Article is From Aug 10, 2015
बाबा की कलम सेः डीएनए विरुद्ध डीएनए, नीतीश बनाम मोदी
Reported By Manoranjan Bharti
- चुनावी ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 21, 2015 18:29 pm IST
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Published On अगस्त 10, 2015 17:51 pm IST
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Last Updated On सितंबर 21, 2015 18:29 pm IST
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