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This Article is From Sep 22, 2015

बिहार चुनाव में बढ़ता जा रहा बगावत के बिगुल का शोर

Mihir Gautam
  • चुनावी ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 22, 2015 23:15 pm IST
    • Published On सितंबर 22, 2015 23:00 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 22, 2015 23:15 pm IST
चुनाव की एक बड़ी खासियत, पार्टी के कुछ वफादारों का अचानक बागी हो जाना भी है। पिछले कई साल से पार्टी के सिद्धांतों को सबसे ज्यादा समझने का दावा करने वाले टिकट नहीं मिलने पर अचानक सुर बदल लेते हैं। चंद मिनटों में पार्टी बदल जाती है और वफादारी भी। बिहार में भी इस बार पार्टियों की सबसे बड़ी चिंता अपने बागियों को काबू में रखना है। चाहे महागठबंधन हो या फिर एनडीए, हर जगह बागी ताल ठोककर खड़े हैं।

अपनी जीत का दावा हो या न हो, लेकिन बागी कल तक जिस पार्टी में थे उसे हराने की गारंटी देते दिखते हैं। लेकिन क्या बागी वाकई इतनी ताकत रखते हैं कि वे किसी भी दल के समीकरण को बना-बिगाड़ सकते हैं? इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी है, लेकिन बगावत जारी है।

उम्मीदवारी की बरसों पुरानी आस
महागठबंधन बना तो आरजेडी और जेडीयू पहले से कम सीटों पर लड़ रहे हैं। इसका सीधा मतलब है उम्मीदवार कम होंगे। अब जिन्होंने उम्मीदवार बनने की आस सालों से लगाई है, उनमें कुछ तो जरूर होंगे जो पार्टी को हमेशा के लिए अलविदा कह देंगे। वहीं वे विधायक भी दूसरे दलों की तरफ देख रहे हैं, जिन्हें इस बार उनकी पार्टी मौका देने को तैयार नहीं। ऐसे विधायकों पर दूसरे दलों का भरोसा गजब का दिखता है। राघोपुर के विधायक सतीश कुमार को ही ले लीजिए, जेडीयू ने मौका नहीं दिया तो बीजेपी में आ गए। कुछ घंटे ही बीते बीजेपी ने राघोपुर से उम्मीदवार बना दिया। वहीं बीजेपी एमएलए अमन पासवान का टिकट कटा, तो सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दरबार में पहुंच गए। आरजेडी भी नेताओं को समझाने में जुटा है कि कम सीट पर लड़ रहे हैं, पार्टी के साथ रहिए। लेकिन कौन-कौन रहेगा, यह तो आखिरी उम्मीदवार के ऐलान तक साफ हो जाएगा।

दामाद अब अपनों को हराने के लिए कमर कसे
एलजेपी में दामाद ही बागी हो गए, कह रहे हैं एलजेपी को हराना प्राथमिकता है। वाकई यह सियासत की ही ताकत है कि टिकट कटते ही सब कुछ बदल सा जाता है। आरएएलएसपी के तो एक नेता पार्टी अध्यक्ष की प्रेस कॉन्फ्रेंस में फफक-फफक कर रोने लगे। कहा वादा किया गया, लेकिन टिकट नहीं दिया। अब सच्चाई तो या तो उन्हें पता है या उनकी पार्टी को।

चलिए चुनाव सर पर है और लोकतंत्र सबको अपनी बात कहने का मौका देता है। अब पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो चुनाव नहीं लड़ सकते, ऐसा थोड़े ही है। सो जहां से मिलेगा टिकट, वहां से लड़ेंगे बागी, और अगर नहीं मिला तो फिर आजाद उम्मीदवार बनकर अपनी बात रखेंगे।

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