जाट आंदोलन की फाइल फोटो।
चंडीगढ़:
जाट आरक्षण के लिए फरवरी में आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा की चपेट में आए न्यायिक अधिकारियों ने पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में हरियाणा लीगल सर्विसेज अथॉरिटी की तरफ से दाखिल किए गए हलफनामे में आपबीती दर्ज कराई है जो कि रोंगटे खड़े कर देने वाली है।
उग्र भीड़ से बचाने में नाकाम रहा प्रशासन
आंदोलन के केंद्र रहे रोहतक के जिला एवं सत्र न्यायाधीश की तरफ से दाखिल हलफनामे में 16 न्यायिक अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि 18 से 21 फरवरी के बीच शहर में घूम रही उग्र भीड़ से उन्हें बचाने के लिए पुलिस और प्रशासन ने कुछ भी नहीं किया। उनके साथ जो कुछ हुआ वह सब लिखकर हाई कोर्ट को भेजा है।
बच्चों को लगा कि यह उनकी आखिरी रात...
एक अधिकारी ने लिखा है कि जान बचाने के लिए उन्हें अपने एक साल के बेटे को बाइक पर बैठकर 12 घंटे तक सफर करना पड़ा। भीड़ न्यायिक अफसरों की सरकारी कालोनी की तरफ बढ़ रही थी। ऐसे में कुछ अफसरों को जान बचाने के लिए अपने परिवार के साथ पास के पार्क में छुपना पड़ा। एक अफसर ने बताया है,' जल्दबाज़ी में हम गरम कपड़े भी लेना भूल गए और पार्क में ठिठुर रहे थे। बच्चों को लग रहा था यह उनकी आखिरी रात है।' एक अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने लिखा है, 'हालात ऐसे थे जैसा हमने अपने बड़े-बुज़ुर्गों से बंटवारे के बारे में सुना था।'
झज्जर के पुलिस अधीक्षक का कायराना रवैया
झज्जर की रिपोर्ट में 20 फरवरी को एक महिला न्यायिक अधिकारी के साथ हुए हादसे का जिक्र किया गया है। इस महिला अधिकारी की सास का देहांत हो गया था लेकिन शहर के हालात ऐसे थे कि अस्पताल तक पहुंचना मुश्किल था। अंतिम संस्कार के लिए भी जान जोखिम में डालना पड़ा क्योंकि प्रशासन ने अतिरिक्त सुरक्षा देने से हाथ खड़े कर दिए थे। झज्जर की उपयुक्त ने हाई कोर्ट को भेजी अपनी रिपोर्ट में तब के पुलिस अधीक्षक के रवैये को कायराना बताया है।
न्यायिक अधिकारियों के परिवारों को छोड़ा भगवान भरोसे
सोनीपत के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि हिंसा भड़कने के बाद उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक ने अपने-अपने परिवार को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट कर दिया था लेकिन न्यायिक अधिकारियों और उनके परिवारों को भगवान भरोसे छोड़ दिया था। हिसार, भिवानी, बहादुरगढ़ के न्यायिक अधिकरियों ने भी अपनी-अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट को भेजी है जिनमें कहा गया है कि आंदोलन के दौरान राज्य की व्यवस्था चरमरा गई थी और सरकार अपने नागरिकों की जान और माल की हिफाजत करने में नाकाम रही थी।
उग्र भीड़ से बचाने में नाकाम रहा प्रशासन
आंदोलन के केंद्र रहे रोहतक के जिला एवं सत्र न्यायाधीश की तरफ से दाखिल हलफनामे में 16 न्यायिक अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि 18 से 21 फरवरी के बीच शहर में घूम रही उग्र भीड़ से उन्हें बचाने के लिए पुलिस और प्रशासन ने कुछ भी नहीं किया। उनके साथ जो कुछ हुआ वह सब लिखकर हाई कोर्ट को भेजा है।
बच्चों को लगा कि यह उनकी आखिरी रात...
एक अधिकारी ने लिखा है कि जान बचाने के लिए उन्हें अपने एक साल के बेटे को बाइक पर बैठकर 12 घंटे तक सफर करना पड़ा। भीड़ न्यायिक अफसरों की सरकारी कालोनी की तरफ बढ़ रही थी। ऐसे में कुछ अफसरों को जान बचाने के लिए अपने परिवार के साथ पास के पार्क में छुपना पड़ा। एक अफसर ने बताया है,' जल्दबाज़ी में हम गरम कपड़े भी लेना भूल गए और पार्क में ठिठुर रहे थे। बच्चों को लग रहा था यह उनकी आखिरी रात है।' एक अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने लिखा है, 'हालात ऐसे थे जैसा हमने अपने बड़े-बुज़ुर्गों से बंटवारे के बारे में सुना था।'
झज्जर के पुलिस अधीक्षक का कायराना रवैया
झज्जर की रिपोर्ट में 20 फरवरी को एक महिला न्यायिक अधिकारी के साथ हुए हादसे का जिक्र किया गया है। इस महिला अधिकारी की सास का देहांत हो गया था लेकिन शहर के हालात ऐसे थे कि अस्पताल तक पहुंचना मुश्किल था। अंतिम संस्कार के लिए भी जान जोखिम में डालना पड़ा क्योंकि प्रशासन ने अतिरिक्त सुरक्षा देने से हाथ खड़े कर दिए थे। झज्जर की उपयुक्त ने हाई कोर्ट को भेजी अपनी रिपोर्ट में तब के पुलिस अधीक्षक के रवैये को कायराना बताया है।
न्यायिक अधिकारियों के परिवारों को छोड़ा भगवान भरोसे
सोनीपत के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि हिंसा भड़कने के बाद उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक ने अपने-अपने परिवार को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट कर दिया था लेकिन न्यायिक अधिकारियों और उनके परिवारों को भगवान भरोसे छोड़ दिया था। हिसार, भिवानी, बहादुरगढ़ के न्यायिक अधिकरियों ने भी अपनी-अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट को भेजी है जिनमें कहा गया है कि आंदोलन के दौरान राज्य की व्यवस्था चरमरा गई थी और सरकार अपने नागरिकों की जान और माल की हिफाजत करने में नाकाम रही थी।
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