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Budget 2025: इकोनॉमिक सर्वे क्या है और कब होता है पेश? जानिए बजट में क्या हैं इसके मायने

इकोनॉमिक सर्वे (Economic Survey) से पता चलता है कि पिछले फाइनेंशियल ईयर में किस सेक्टर से कितनी कमाई हुई, क्या चुनौतियां पेश आईं साथ ही ऐसे कौन से फैक्टर हैं, जो इकोनॉमिक ग्रोथ में रुकावट डाल रहे हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है.

Budget 2025: इकोनॉमिक सर्वे क्या है और कब होता है पेश?  जानिए बजट में क्या हैं इसके मायने
Economic survey of India: इकोनॉमिक सर्वे को आप सरकार का रिपोर्ट कार्ड भी कह सकते हैं. इसमें पिछले फाइनेंशियल ईयर में भारत की इकोनॉमिक ग्रोथ के साथ-साथ भविष्य में ग्रोथ की संभावनाओं पर आधिकारिक नजरिया पेश किया जाता है.
नई दिल्ली:

Union Budget 2025: जैसे-जैसे फरवरी का महीना नजदीक आ रहा है, लोगों के मन में यूनियन बजट को लेकर जिज्ञासा बढ़ती जा रही है. हर कोई जानना चाहता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण  (Nirmala Sitharaman) के  पिटारे में इस बार उनके लिए क्या खास होगा. हर साल केंद्रीय बजट पेश किए जाने से एक दिन पहले यानी 31 जनवरी को इकोनॉमिक सर्वे (Economic Survey) रिलीज किया जाता है. इकोनॉमिक सर्वे एक फाइनेंशियल डॉक्युमेंट होता है, जो बजट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आइए इकोनॉमिक सर्वे को विस्तार से समझते हैं.

इकोनॉमिक सर्वे क्या है? 

इकोनॉमिक सर्वे को आप सरकार का रिपोर्ट कार्ड भी कह सकते हैं. इसमें पिछले फाइनेंशियल ईयर में भारत की इकोनॉमिक ग्रोथ के साथ-साथ भविष्य में ग्रोथ की संभावनाओं पर आधिकारिक नजरिया पेश किया जाता है. इकोनॉमिक सर्वे से पता चलता है कि पिछले फाइनेंशियल ईयर में किस सेक्टर से कितनी कमाई हुई, क्या चुनौतियां पेश आईं साथ ही ऐसे कौन से फैक्टर हैं, जो इकोनॉमिक ग्रोथ में रुकावट डाल रहे हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है.

दरअसल ,इकोनॉमिक सर्वे में पिछले एक फाइनेंशियल ईयर के दौरान भारत के इकोनॉमिक डेवलपमेंट को रिव्यू किया जाता है. इसमें GDP ग्रोथ, महंगाई, रोजगार की दर, फिस्कल डेफिसिट और कई दूसरे इकोनॉमिक इंडिकेटर के साथ-साथ एग्रीकल्चर, इंडस्ट्री और सर्विसेज जैसे महत्वपूर्ण सेक्टर्स को शामिल किया जाता है.

यानी इन डेटा की मदद से उन सभी पहलुओं पर गौर किया जाता है, जिनका असर भारत की इकोनॉमी पर पड़ता है. इकोनॉमिक सर्वे इस बात पर भी रोशनी डालता है कि अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए सरकार को क्या कदम उठाने जाने की जरूरत है.

इकोनॉमिक सर्वे के दो मेन सेक्शन

इस सर्वे को दो मुख्य सेक्शन में डिवाइड किया जाता है: Part A  देश की आर्थिक स्थिति की समीक्षा करता है, जो मौजूदा वित्तीय रुझानों पर केंद्रित होती है, जबकि Part B शिक्षा, गरीबी, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक सुरक्षा जैसे सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को संबोधित करता है. GDP, महंगाई, फॉरेक्स रिजर्व और ट्रेड डेफिसिट के अनुमान भी इसमें शामिल होते हैं.

इकोनॉमिक सर्वे क्यों जरूरी है?

इकोनॉमिक सर्वे इकोनॉमी का निष्पक्ष मूल्यांकन (Unbiased Assessment) पेश करके यूनियन बजट को आकार देने में खास भूमिका निभाता है. यह पॉलिसी मेकर्स को इन्फॉर्म्ड डिसीजन (Informed Decision) लेने में मदद करता है और स्ट्रैटेजिक प्लानिंग के लिए प्रमुख इकोनॉमिक डेटा के साथ निवेशकों और व्यवसायों जैसे हितधारकों की मदद करता है.
यह सर्वे न सिर्फ एक प्री-बजट टूल है बल्कि इकोनॉमिक प्रोग्रेस को इवेलुएट करने और फ्यूचर ग्रोथ टारगेट सेट करने के लिए एक इम्पोर्टेंट बेंचमार्क भी है.

इकोनॉमिक सर्वे का इतिहास 

फाइनेंशियल ईयर 1950-51 में पहली बार देश का इकोनॉमिक सर्वे पेश किया गया था. शुरुआत में सर्वे केंद्रीय बजट के साथ ही पेश किया जाता था, लेकिन 1964 से इसे बजट से एक दिन पहले पेश किया जाने लगा. तब से बजट से एक दिन पहले इकोनॉमिक सर्वे पेश किए जाने की परंपरा चली आ रही है.

इकोनॉमिक सर्वे का ड्राफ्ट भारत के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर (Chief Economic Adviser - CEA) और वित्त मंत्रालय के भीतर उनकी टीम द्वारा तैयार किया जाता है. CEA के गाइडेंस के तहत यह डॉक्यूमेंट DEA (Department of Economic Affairs) का इकोनॉमिक डिवीजन तैयार करता है.

एक बार जब फाइनेंस सेक्रेटरी इकोनॉमिक सर्वे का फाइनल ड्राफ्ट रिव्यू करने के बाद अप्रूव कर देता है, तो फिर इस पर फाइनेंस मिनिस्टर साइन करती हैं. इस साल चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर वी अनंत नागेश्वरन (V Anantha Nageswaran) इकोनॉमिक सर्वे तैयार करने के लिए जिम्मेदार होंगे.

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