केंद्र सरकार का यह बजट कंजप्शन मल्टीप्लायर है. वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में जैसा बताया है कि टैक्स दरों में बदलाव से आम लोगों की जेब में करीब एक लाख करोड़ रुपये ज्यादा जाएंगे. ऐसे में उपभोग में इजाफा होगा और यदि उपभोग में 10 फीसदी का भी इजाफा होता है तो जीडीपी की दर 8 फीसदी तक पहुंच सकती है.
कंजप्शन मल्टीप्लायर को समझने के लिए मान लीजिये कि आपके पास 10 हजार रुपये अधिक आ गए हैं और आप इन 10 हजार रुपये से मुझसे एक स्मार्टफोन खरीदते हैं तो मेरे पास अब 10 हजार रुपये आए हैं. इस 10 हजार रुपये में से मैंने कुछ राशि को जमा पूंजी के रूप में रख दिया. मान लीजिये 20 प्रतिशत यानी 2000 रुपये रख दिए और 8 हजार रुपये का खर्चा किया. मैंने उन 8 हजार रुपये की कोई शर्ट खरीदी तो रिटेलर को 8 हजार रुपये पहुंचते हैं. यदि वो भी इनमें से 20 प्रतिशत जमा पूंजी के रूप में रखता है और शेष राशि को खर्च कर देता है तो एक कड़ी के रूप में एक से दूसरे के पास और दूसरे से तीसरे के पास यह राशि पहुंचती है. यदि आप इसका आकलन करते हैं तो बीस फीसदी बचत करने पर यह पांच गुना मल्टीप्लायर होता है वहीं दस फीसदी बचत करने पर यह दस गुना मल्टीप्लायर हो जाता है. हालांकि यदि लोग 40 फीसदी बचत में रख देते हैं तो मल्टीप्लायर सिर्फ ढाई फीसदी होता है.
हम अगर 2023 का आंकड़ा अगर देखें तो मिडिल क्लास में बचत करने की दर 18 प्रतिशत की है. सभी की सुविधा के लिए मैंने इसे 20 प्रतिशत माना है तो आपका मल्टीप्लायर पांच आ जाता है.
मेरा मानना है कि इस फाइनेंशियल ईयर में जीडीपी कंजम्पशन 10 प्रतिशत हो सकता है. जैसा वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार के इस कदम से एक लाख करोड़ रुपये की आय कम आएगी यानी एक लाख करोड़ मिडिल क्लास की जेब में जाएगा. यदि लोग इस एक लाख करोड़ का 20 फीसदी जमा करते हैं और शेष राशि खर्च करते हैं तो हमारे कंजम्पशन में पांच लाख करोड़ रुपये की राशि बढ़ेगी. इस साल के कंजम्पशन के अनुपात में 5 लाख करोड़ करीब 4.8 फीसदी होता है. इस कदम से पहले ही 7 प्रतिशत का कंजम्पशन बढ़ने वाला था तो आप उसको जोड़ दें तो यह करीब 12 फीसदी हो जाता है, लेकिन मोटे तौर पर इसे 10 प्रतिशत मान रहा हूं. आखिर में आप यह आकलन करें कि जीडीपी का 60 प्रतिशत कंजम्पशन से आता है तो जब आपका कंजम्पशन करीब 10 प्रतिशत बढ़ेगा तो इसका प्रभाव जीडीपी पर भी होगा. मेरा अनुमान है कि इस साल जीडीपी की विकास दर 8 प्रतिशत हो सकती है.
हालांकि हमें यह अंतर समझना जरूरी है कि यह बढ़ोतरी इसी साल होगी. जब आप बुनियादी ढांचा बनाते हैं तो उसका लाभ उसी साल नहीं बल्कि आगे आने वाले सालों में भी मिलता है. हालांकि इसका लाभ हमें सिर्फ इसी साल मिलेगा.
अब तक हमारे उद्योगपति यह कहते थे कि हम निवेश इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि हम डिमांड नहीं देख रहे हैं. इस बार जैसा हम देख रहे हैं कि डिमांड जब 10 प्रतिशत बढ़ेगी तो यह हमारे उद्योगपतियों के लिए एक सुनहरा अवसर है कि वह निवेश करें जिससे इस डिमांड को पूरा कर सकें. यदि वो अपना आउटपुट नहीं बढ़ाएंगे तो इसका असर इंफ्लेशन पर पड़ सकता है. ऐसे में मेरा उनसे आग्रह है कि आप निवेश जरूर करें. आपका निवेश करना जरूरी है, जिससे इसका असर इंफ्लेशन पर न आए.
साथ ही सरकार ने फिस्कल पॉलिसी को लेकर सरकार ने जो कदम उठाम उठाया है, इसका अच्छा परिणाम आए इसके लिए मैं आशा करता हूं कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी मॉनेटरी पॉलिसी पर काम करे, क्योंकि जब-जब इंट्रेस्ट रेट कम होते हैं तो उसका असर निवेश पर काफी पड़ता है.
मैं एक बेहद गहरी बात पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि आप देखें कि जो विकसित देश हैं, उनमें लोग खाने और वेकेशन पर जाने जैसी चीजों के लिए भी उधार लेते हैं, लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता है. भारत में जो परिवार है वो कोई टू व्हीलर लेना चाहता है या फोर व्हीलर खरीदना चाहता है या घर खरीदना चाहता है तो वो उसी के लिए ऋण लेता है. तो जो ब्याज दर का जो असर है, सिर्फ चंद आइटम्स पर पड़ता है यानी पूरे कंजम्पशन पर इंट्रेस्ट रेट के कारण उसका असर ही नहीं आता है. इसके विपरीत अगर आप निवेश को देखें तो सारे निवेश पर ब्याज दर का असर पड़ता है क्योंकि जब निवेश होता है तो कंपनी कुछ हद तक उधार लेकर करती है. इसलिए यह बहुत ही अहम है कि रिजर्व बैंक के अधिकारी इस अंतर को समझें और यदि निवेश को बढ़ाना है तो मोनेटरी पॉलिसी को आसान बनाना जरूरी है. रिजर्व बैंक के अधिकारी ऐसा करते हैं तो सरकार ने जो कदम उठाया है, उसे और बल मिलेगा.
सरकार के इस कदम को मैं एक पॉजिटिव स्लोप के रूप में देखूंगा. मैंने अपनी किताब इंडिया एट 100 में बताया है कि भारत को आठ प्रतिशत की औसत विकास दर हासिल करनी है, जिससे भारत 2047 तक एक विकसित देश बन सके. जब हमारी आजादी के 100 साल पूरे होंगे. मैं देख पा रहा हूं कि आठ प्रतिशत की विकास दर इस साल हासिल की जा सकती है.
हमारी टैक्स और जीएसटी की प्रणाली को सुलझाना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि हमारी ब्यूरोक्रेसी इसे सुलझाने के बजाय काफी उलझा देती है. टैक्स के कारण हमारी छोटी कंपनियों को काफी परेशानी होती है. इसलिए हमें इसे सुलझाने पर ध्यान देना होगा और इसमें ब्यूरोक्रेसी की अहम भूमिका रहेगी.
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