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हिंडनबर्ग कंपनी रजिस्टर्ड ही नहीं, उसकी बातों को क्या तूल देना- KRCSS के MD देवेन चौकसे

अगर विपक्ष कहता है कि रेगुलेटरी ऑर्गनाइजेशन यानी SEBI, सुप्रीम कोर्ट या सरकार को किसी का भी रिसर्च पेपर पब्लिश होने पर इस्तीफा दे देना चाहिए, तो ये बचकाना लगता है. मेरी समझ में ऐसे केस में विपक्ष को भी मैच्योरिटी दिखानी चाहिए.

नई दिल्ली:

हिंडनबर्ग रिपोर्ट फिर नए तथ्यों के साथ वापस आ गया है. लेकिन ये अमेरिकी शॉर्ट सेलर का एक नाकाम कोशिश भर है. इसके पहले के रिपोर्ट से भी भारत के लीगल सिस्टम को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था. अदाणी ग्रुप के शेयरों पर भी हिंडनबर्ग रिसर्च के झूठे आरोपों का असर नहीं दिखा है. रिपोर्ट के एक तरह से मार्केट ने खारिज कर दिया है. मार्केट ये समझ चुका है कि ये सोची-समझी साजिश का हिस्सा है.

हिंडनबर्ग को देखें, तो ये रजिस्टर्ड नहीं है. यानी ये कंपनी रेगुलेटर एनटिटी के अंडर नहीं आती. ऐसे में उसकी किसी रिपोर्ट पर क्या ध्यान दिया जाए? मेरे ख्याल से इन मामलों को लेकर मार्केट समझ चुका है और मैच्योर हो चुका है. इसलिए इन चीजों पर अब ज्यादा रिएक्ट नहीं कर रहा है.

अगर विपक्ष कहता है कि रेगुलेटरी ऑर्गनाइजेशन यानी SEBI, सुप्रीम कोर्ट या सरकार को किसी का भी रिसर्च पेपर पब्लिश होने पर इस्तीफा दे देना चाहिए, तो ये बचकाना लगता है. मेरी समझ में ऐसे केस में विपक्ष को भी मैच्योरिटी दिखानी चाहिए.

हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी अमेरिका या किसी दूसरे देश में इंवेस्टमेंट एडवाइजर के तौर पर रजिस्टर्ड नहीं है. इसलिए उसकी बात को सच मानकर पूरी रेगुलेटरी सिस्टम पर आरोप लगाएंगे, यहां तक की सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाएंगे... तो इसकी कोई लिमिट नहीं है.

बेशक क्रेडेबिलिटी होनी जरूरी है. लेकिन एक कंपनी कुछ बातों को लेकर एक रिपोर्ट लाए और लोग उसपर अपना जजमेंट दे, ये किसी भी लिहाज से सही प्रैक्टिस नहीं है. भारत की वेल्थ को प्रोटेक्ट करने के लिए हमें मिलकर काम करने की जरूरत है.

(देवेन चौकसी KRCSS के एमडी हैं.)

(Disclaimer: New Delhi Television is a subsidiary of AMG Media Networks Limited, an Adani Group Company.)

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