बैंक से लिया गया भारी भरकम लोन कैसे NPA यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट बन जाता है. कैसे सरकार का भ्रष्टाचार इसके लिए जिम्मेदार है, इसे RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन (Raghuram Rajan) ने एक इंटरव्यू में समझाया है. रघुराम राजन ने बताया कि कांग्रेस (Congress) के नेतृत्व वाले UPA सरकार के भ्रष्टाचार और गलत नीतियों से बैंकों के पास बैड लोन (NPA) जमा हुए. उन्होंने अगस्त 2013 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का गवर्नर बनने के बाद इस समस्या से निपटना शुरू किया. इसमें तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पूरा साथ दिया था. रघुराम राजन सितंबर 2013 से सितंबर 2016 तक भारतीय रिजर्व बैंक के 23वें गवर्नर थे.
'दि प्रिंट' को दिए गए इंटरव्यू में RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने ये बातें कही. उन्होंने कहा, "भारत में ग्लोबल फाइनेंशियल संकट के अलावा भ्रष्टाचार भी एक समस्या थी. इससे प्रोजेक्ट्स को मंजूरी मिलने में देरी होती थी. प्रोजेक्ट्स को जमीन नहीं मिलती थी. पर्यावरण विभाग की मंजूरी नहीं मिलती थी. इन कारणों से प्रोजेक्ट अटक जाते थे. इससे फाइनेंशियल सिस्टम में NPA बढ़ जाता था."
बैड लोन या NPA's क्या होता है?
जब कोई व्यक्ति या संस्था किसी बैंक से लोन लेकर उसे वापस नहीं करती, तो उसे बैड लोन या NPA कहा जाता है. यानी इन लोन्स की रिकवरी की उम्मीद काफी कम होती है. नतीजतन बैंकों का पैसा डूब जाता है और बैंक घाटे में चला जाता है. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नियमों के मुताबिक अगर किसी बैंक लोन की किस्त 90 दिनों तक यानी तीन महीने तक नहीं चुकाई जाती है, तो उस लोन को NPA घोषित कर दिया जाता है. अन्य वित्तीय संस्थाओं के मामले में यह सीमा 120 दिन की होती है.
2008 की मंदी से पहले खुलकर लोन बांटते थे बैंक
रघुराम राजन ने बताया, "2008 के ग्लोबल फाइनेंशियल संकट से पहले बैंक खुलकर लोन बांटते थे. वो इसके लिए पर्याप्त ड्यू डिलिजेंस भी नहीं करते थे. ग्लोबल फाइनेंशियल संकट के बाद स्थिति कुछ बिगड़ी. रही सही कसर सरकार की गलत नीतियों ने पूरी कर दी." उन्होंने कहा, "एक वक्त था जब बैंकर्स आंत्रप्रेन्योर्स के पीछे पड़े रहते थे. पूछते थे कि कितना लोन चाहिए. एक बार जब प्रोजेक्ट फंस जाता है तो यही कर्ज NPA हो जाता था."
मोरेटोरियम से भी हुई दिक्कत
रघुराम राजन ने कहा, "मुझसे पहले जो RBI गवर्नर थे, उन्होंने NPA हुए लोन के लिए मोरेटोरियम (ऋण स्थगन )की शुरुआत की. इसका नतीजा ये हुआ कि बैंकों के पास बहुत सारा NPA इकट्ठा हो गया. जिसे वो मोरेटोरियम के चलते NPA भी नहीं मान रहे थे. लेकिन, ये मोरेटोरियम 2014 में मेरे गवर्नर बनने के साथ खत्म हो गया था."
NPA की समस्या से निपटने में जेटली ने की थी मदद
RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बताया कि कैसे NPA की समस्या से निपटने में तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मदद की थी. उन्होंने कहा, "NPAs की पहचान करना बहुत जरूरी था, क्योंकि पब्लिक सेक्टर बैंकों से इकोनॉमी में जाने वाला क्रेडिट यानी कर्ज लगातार घट रहा था. ऐसा नहीं करते तो ये बैंक ज्यादा कर्ज देने की स्थिति में नहीं रहते. जब बैंक NPAs से दबे रहेंगे, वो अच्छा लोन भी नहीं दे पाएंगे."
RBI के पूर्व गवर्नर ने कहा, "बैंक अकाउंट्स की ये क्लीनिंग जरूरी थी. इकोनॉमी में पब्लिक सेक्टर का लोन घट रहा था. इन चीजों को सुलझाए बिना बैंक आगे लोन देने में सक्षम नहीं होंगे, क्योंकि उनकी बैलेंस शीट बैड लोन से भरी हुई है, जिससे वे गुड लोन देने में झिझक रहे हैं."
राजन ने कहा कि प्रॉपर्टी की क्वालिटी के रिव्यू के लिए दो चीजों की जरूरत होती है. पहला- हमारी तरफ से बैड लोन को पहचानना. सरकार ने बैंकों को बचाने के लिए जो फैसले लिए वे बहुत जरूरी थे."
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