अरुण जेटली (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
चीन और पाकिस्तान से लगातार मिल रही चुनौतियों के लिहाज से इस बार सेना को वित्त मंत्री अरुण जेटली से काफी उम्मीदें हैं. वे उम्मीद कर रहे हैं कि इस बार भारत को अपना रक्षा बजट जीडीपी के मौजूदा 1.56 प्रतिशत से तीन प्रतिशत तक लाने की जरुरत है. तभी वो आने वाले चुनौतियों का सामना बेहतर ढंग से कर पायेगी. हालांकि इसकी संभावना बेहद कम ही दिख रही है.
पिछले सालों में भारत के दोनों बड़े पड़ोसियों- यानी चीन और पाकिस्तान का रवैया काफी दुश्मनी भरा रहा है. सरहद पर तनाव लगातार बढ़ रहा है. डोकलाम में दो महीने से ज़्यादा जमे रहने के बाद चीन की सेना बड़ी मुश्किल से वापस गई. यही नहीं लाइन ऑफ कंट्रोल पर ना केवल रिकार्ड संख्या में इस बार युद्धविराम का उल्लंघन हुआ बल्कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी पाक आतंकियों के घुसपैठ कराने से बाज नहीं आ रहा है. ऐसे में सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत भी चीन और पाकिस्तान से दोतरफा युद्ध की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं.
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चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद और आतंकवाद के अलावा सेना की जरूरत प्राकृतिक आपदाओं और आंतरिक अशांतियों के लिए भी बढ़ रही है. सत्ता में आने के बाद 2014-15 में सरकार ने रक्षा बजट 2 लाख 29 हज़ार करोड़ कर दिया. रक्षा बजट में यह बढ़ोतरी 10 प्रतिशत की थी. इसके अगले साल यानी 2015-16 में भी 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ रक्षा बजट 2 लाख 46 हज़ार करोड़ रुपये किया गया. 2016-17 में रक्षा बजट में कुल 9.3 प्रतिशत का इज़ाफा किया गया और यह बढ़ कर 2 लाख 56 हज़ार करोड़ हो गया. बीते साल 1 फरवरी को पेश बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने रक्षा क्षेत्र के लिये 2 लाख 74 हज़ार करोड़ रुपये आवंटित किये थे. यह कुल बजट राशि का 12.78 प्रतिशत और जीडीपी का 1.56 फीसदी था. लेकिन भारत का यह रक्षा बजट अब भी चीन से तीन गुना कम है. अगर रक्षा बजट का यही हाल रहा तो आने वाले वक्त में भारत के लिये चीन से पार पाना मुश्किल होता जाएगा.
हाल ही में संसदीय समिति ने शीतकालीन सत्र में पेश अपनी रिपोर्ट में सेना के सुस्त आधुनिकीकरण के लिये सरकार को फटकार लगाई है. मेजर जनरल बीसी खंडूरी की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि चीन और पाकिस्तान की ओर से आ रही चुनौतियों के बावजूद सेना के आधुनिकीकरण में सुस्ती बरती जा रही है. हमारी सेना कई मोर्चों पर संसाधनों की कमी से जूझ रही है. इनमें नई पीढ़ी के असॉल्ट राइफल्स, मशीन गन्स, बुलेट फ्रूफ जैकेट्स और हेल्मेट्स, पनडुब्बियां, फाइटर जेट्स, तोप और हेलिकॉप्टर्स की कमी शामिल है. संसदीय समिति ने आशंका ज़ाहिर की है कि इसका असर सेना के कार्रवाई पर पड़ सकता है. वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों और हेलिकॉप्टर्स की कमी है तो नौसेना के पास भी युद्धपोत और पनडुब्बी की भयंकर कमी है. इनमें से ज्यादातर संसाधन बीस से तीस साल पुराने से है जिन्हें अपग्रेड कर किसी तरह काम चलाया जा रहा है.
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आपको बता दें कि रक्षा ममलों की संसदीय समिति ने भी रक्षा क्षेत्र का बजट जीडीपी के मौजूदा 1.56 फीसदी से बढ़ाकर 3 प्रतिशत तक करने की सिफारिश की थी. यदि दुनिया के दूसरे देशों की बात करें तो अमेरिका अपनी जीडीपी का 4 प्रतिशत, रूस 4.5, इज़राइल 5.2, चीन 2.5 और पाकिस्तान 3.5 प्रतिशत रक्षा बजट के लिए आवंटित करता है.
इस बार सातवें वेतन आयोग और वन-रैंक-वन-पेंशन जैसे फैसलों के बाद हथियारों की खरीद के लिए धनराशि और कम पड़ सकती है. सरकार पर स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत ज़रूरतों के साथ वोटरों को लुभाने वाले योजनाओं पर ज्यादा धन देने के लिए दवाब होगा. इस वजह से बजट में रक्षा पर किसी चमत्कार की उम्मीद रखना बेमानी होगा. रक्षा जानकार ये भी कहते हैं कि अगर मौजूदा सरकार अपने आखिरी बजट में रक्षा क्षेत्र में बजट बढ़ा भी देती है तो उसे इसका चुनावी फायदा नहीं मिलेगा.
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पिछले सालों में भारत के दोनों बड़े पड़ोसियों- यानी चीन और पाकिस्तान का रवैया काफी दुश्मनी भरा रहा है. सरहद पर तनाव लगातार बढ़ रहा है. डोकलाम में दो महीने से ज़्यादा जमे रहने के बाद चीन की सेना बड़ी मुश्किल से वापस गई. यही नहीं लाइन ऑफ कंट्रोल पर ना केवल रिकार्ड संख्या में इस बार युद्धविराम का उल्लंघन हुआ बल्कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी पाक आतंकियों के घुसपैठ कराने से बाज नहीं आ रहा है. ऐसे में सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत भी चीन और पाकिस्तान से दोतरफा युद्ध की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं.
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चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद और आतंकवाद के अलावा सेना की जरूरत प्राकृतिक आपदाओं और आंतरिक अशांतियों के लिए भी बढ़ रही है. सत्ता में आने के बाद 2014-15 में सरकार ने रक्षा बजट 2 लाख 29 हज़ार करोड़ कर दिया. रक्षा बजट में यह बढ़ोतरी 10 प्रतिशत की थी. इसके अगले साल यानी 2015-16 में भी 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ रक्षा बजट 2 लाख 46 हज़ार करोड़ रुपये किया गया. 2016-17 में रक्षा बजट में कुल 9.3 प्रतिशत का इज़ाफा किया गया और यह बढ़ कर 2 लाख 56 हज़ार करोड़ हो गया. बीते साल 1 फरवरी को पेश बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने रक्षा क्षेत्र के लिये 2 लाख 74 हज़ार करोड़ रुपये आवंटित किये थे. यह कुल बजट राशि का 12.78 प्रतिशत और जीडीपी का 1.56 फीसदी था. लेकिन भारत का यह रक्षा बजट अब भी चीन से तीन गुना कम है. अगर रक्षा बजट का यही हाल रहा तो आने वाले वक्त में भारत के लिये चीन से पार पाना मुश्किल होता जाएगा.
हाल ही में संसदीय समिति ने शीतकालीन सत्र में पेश अपनी रिपोर्ट में सेना के सुस्त आधुनिकीकरण के लिये सरकार को फटकार लगाई है. मेजर जनरल बीसी खंडूरी की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि चीन और पाकिस्तान की ओर से आ रही चुनौतियों के बावजूद सेना के आधुनिकीकरण में सुस्ती बरती जा रही है. हमारी सेना कई मोर्चों पर संसाधनों की कमी से जूझ रही है. इनमें नई पीढ़ी के असॉल्ट राइफल्स, मशीन गन्स, बुलेट फ्रूफ जैकेट्स और हेल्मेट्स, पनडुब्बियां, फाइटर जेट्स, तोप और हेलिकॉप्टर्स की कमी शामिल है. संसदीय समिति ने आशंका ज़ाहिर की है कि इसका असर सेना के कार्रवाई पर पड़ सकता है. वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों और हेलिकॉप्टर्स की कमी है तो नौसेना के पास भी युद्धपोत और पनडुब्बी की भयंकर कमी है. इनमें से ज्यादातर संसाधन बीस से तीस साल पुराने से है जिन्हें अपग्रेड कर किसी तरह काम चलाया जा रहा है.
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आपको बता दें कि रक्षा ममलों की संसदीय समिति ने भी रक्षा क्षेत्र का बजट जीडीपी के मौजूदा 1.56 फीसदी से बढ़ाकर 3 प्रतिशत तक करने की सिफारिश की थी. यदि दुनिया के दूसरे देशों की बात करें तो अमेरिका अपनी जीडीपी का 4 प्रतिशत, रूस 4.5, इज़राइल 5.2, चीन 2.5 और पाकिस्तान 3.5 प्रतिशत रक्षा बजट के लिए आवंटित करता है.
इस बार सातवें वेतन आयोग और वन-रैंक-वन-पेंशन जैसे फैसलों के बाद हथियारों की खरीद के लिए धनराशि और कम पड़ सकती है. सरकार पर स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत ज़रूरतों के साथ वोटरों को लुभाने वाले योजनाओं पर ज्यादा धन देने के लिए दवाब होगा. इस वजह से बजट में रक्षा पर किसी चमत्कार की उम्मीद रखना बेमानी होगा. रक्षा जानकार ये भी कहते हैं कि अगर मौजूदा सरकार अपने आखिरी बजट में रक्षा क्षेत्र में बजट बढ़ा भी देती है तो उसे इसका चुनावी फायदा नहीं मिलेगा.
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