बजट 2017- कॉरपोरेट टैक्स की दर घटाने की मांग, जानें क्या है यह और आप पर कैसे डालता है यह...
नई दिल्ली:
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने फरवरी, 2015 में अपने दूसरे बजट भाषण के दौरान 1 अप्रैल, 2017 से कर प्रोत्साहनों को धीरे-धीरे खत्म करने और कॉरपोरेट कर (Corporate Tax) की दर को 30 से घटाकर 25 प्रतिशत करने की घोषणा की थी. हाल ही में किए गए एक सर्वे के मुताबिक, 53 प्रतिशत लोगों की राय है कि इस बार कॉरपोरेट कर की दरों को कम किया जाएगा. अब पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्रीज ने जेटली को एक प्रस्ताव भेजा है जिसमें कहा है कि वित्त वर्ष 2017-18 के लिए कॉरपोरेट टैक्स की दर को घटाकर 25 फीसदी कर दें, जिसमें सेस और सरचार्ज भी शामिल हो.
क्या होता है कॉरपोरेट टैक्स, कैसे आम आदमी पर असर डालता है यह...
इस टैक्स को लेकर मचे हो हल्ले के बीच क्या आप जानते हैं कि यह असल में होता क्या है और यह आम आदमी पर कैसे असर डालता है? दरअसल, कॉरपोरेट टैक्स वह टैक्स है जो कंपनियों पर लगता है. यह प्राइवेट, लिमिटेड, लिस्टेड, अनलिस्टेड सभी तरह की कंपनियों पर लगता है. कॉरपोरेट टैक्स कंपनियों की आय पर लगता है. वैसे कॉरपोरेट टैक्स पर अलग से सेस और सरचार्ज लगाए जा सकते हैं.
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ब्लॉग पढ़ें- नोटबंदी की नाकामी से परेशान दिखेगा बजट : पार्ट 2
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यदि आप सोच रहे हैं कि इस टैक्स का आम आदमी से क्या लेना देना है तो बता दें कि जब आप किसी किसी कंपनी का शेयर खरीदते हैं या म्यूचुअल फंड्स (MF) के जरिए उसमें पैसा लगाते हैं तो उस शेयर या एमएफ पर जो डिविडेंड यानी लाभांश मिलता है, उसी से कमाई होती है. मगर कंपनियां जो लाभांश देती हैं उसमें से वह तमाम टैक्स आदि खर्चे काट लेने के बाद ही देती हैं. ऐसे में यदि कॉरपोरेट टैक्स कम होगा तो आपको डिविडेंड अधिक मिलेगा. (जानें कुछ अन्य प्रकार के टैक्सेस के बारे में, बेहद आसान लफ्जों में)
अभी क्या है दर, और सेस आदि मिलाकर कितना हो जाता है...
वैसे फिलहाल कॉरपोरेट कर 30 फीसदी है लेकिन इसमें सेस (cess) और सरचार्ज मिला दें तो यह 34.6 फीसदी हो जाता है. यही आंकड़ा अपने प्रस्ताव में चैंबर ने जेटली को भेजा है. वैसे इस प्रस्ताव में यह सुझाव भी दिया गया है कि आवास ऋण (होम लोन) पर ब्याज चुकाने पर मिलने वाले छूट को 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 3.5 लाख रुपये कर दी जाए.
कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए दिए जाने वाले प्रोत्साहन की सराहना करते हुए चैम्बर के अध्यक्ष गोपाल जिवराजका ने सुझाव दिया कि आरटीजीएस और एनइएफटी लेनदेन शुल्कमुक्त होना चाहिए. उन्होंने कहा, "जुलाई से जीएसटी लागू हो रही है. इससे अप्रत्यक्ष कराधान बहुत हद तक युक्तिसंगत हो जाएगा लेकिन सरकार से गुजारिश है कि इसमें अधिकतम दर 20 फीसदी तक ही होनी चाहिए. इसमें कारण बताओ नोटिस को 36 महीनों की बजाए 18 महीने ही रखना चाहिए तथा इसमें मुनाफाखोरी के खिलाफ जो खंड है, उसे हटा देना चाहिए."
(न्यूज एजेंसी आईएएनएस से भी इनपुट)
क्या होता है कॉरपोरेट टैक्स, कैसे आम आदमी पर असर डालता है यह...
इस टैक्स को लेकर मचे हो हल्ले के बीच क्या आप जानते हैं कि यह असल में होता क्या है और यह आम आदमी पर कैसे असर डालता है? दरअसल, कॉरपोरेट टैक्स वह टैक्स है जो कंपनियों पर लगता है. यह प्राइवेट, लिमिटेड, लिस्टेड, अनलिस्टेड सभी तरह की कंपनियों पर लगता है. कॉरपोरेट टैक्स कंपनियों की आय पर लगता है. वैसे कॉरपोरेट टैक्स पर अलग से सेस और सरचार्ज लगाए जा सकते हैं.
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यदि आप सोच रहे हैं कि इस टैक्स का आम आदमी से क्या लेना देना है तो बता दें कि जब आप किसी किसी कंपनी का शेयर खरीदते हैं या म्यूचुअल फंड्स (MF) के जरिए उसमें पैसा लगाते हैं तो उस शेयर या एमएफ पर जो डिविडेंड यानी लाभांश मिलता है, उसी से कमाई होती है. मगर कंपनियां जो लाभांश देती हैं उसमें से वह तमाम टैक्स आदि खर्चे काट लेने के बाद ही देती हैं. ऐसे में यदि कॉरपोरेट टैक्स कम होगा तो आपको डिविडेंड अधिक मिलेगा. (जानें कुछ अन्य प्रकार के टैक्सेस के बारे में, बेहद आसान लफ्जों में)
अभी क्या है दर, और सेस आदि मिलाकर कितना हो जाता है...
वैसे फिलहाल कॉरपोरेट कर 30 फीसदी है लेकिन इसमें सेस (cess) और सरचार्ज मिला दें तो यह 34.6 फीसदी हो जाता है. यही आंकड़ा अपने प्रस्ताव में चैंबर ने जेटली को भेजा है. वैसे इस प्रस्ताव में यह सुझाव भी दिया गया है कि आवास ऋण (होम लोन) पर ब्याज चुकाने पर मिलने वाले छूट को 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 3.5 लाख रुपये कर दी जाए.
कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए दिए जाने वाले प्रोत्साहन की सराहना करते हुए चैम्बर के अध्यक्ष गोपाल जिवराजका ने सुझाव दिया कि आरटीजीएस और एनइएफटी लेनदेन शुल्कमुक्त होना चाहिए. उन्होंने कहा, "जुलाई से जीएसटी लागू हो रही है. इससे अप्रत्यक्ष कराधान बहुत हद तक युक्तिसंगत हो जाएगा लेकिन सरकार से गुजारिश है कि इसमें अधिकतम दर 20 फीसदी तक ही होनी चाहिए. इसमें कारण बताओ नोटिस को 36 महीनों की बजाए 18 महीने ही रखना चाहिए तथा इसमें मुनाफाखोरी के खिलाफ जो खंड है, उसे हटा देना चाहिए."
(न्यूज एजेंसी आईएएनएस से भी इनपुट)
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