नई दिल्ली:
विशेषज्ञों का कहना है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली को ऐसे कर सुधार लाने चाहिए, ताकि पहली बार घर खरीदने जा रहे लोगों को कुछ लाभ मिले।
आयकर से जुड़े मौजूदा नियमों (धारा 24-बी) के मुताबिक व्यक्ति जिस घर में रह रहा है, उसके लिए हासिल किए गए ऋण पर दो लाख रुपये तक का ब्याज करमुक्त होता है, लेकिन यदि वह दूसरा घर खरीद लेता है, तो उसके लिए हासिल किए ऋण पर सारा ब्याज करमुक्त होता है, और आय में से घटा दिया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसीलिए मौजूदा कर प्रणाली पहला मकान खरीदने वाले की तुलना में ज़मीन-जायदाद में निवेश करने वालों के लिए ज़्यादा मुफीद है।
"पहला मकान खरीदने वाले को भी निवेशक जितनी छूट मिलनी चाहिए"
मुंबई-स्थित रीयल एस्टेट रिसर्च फर्म लायसेस फोरस (Liases Foras) के प्रबंध निदेशक पंकज कपूर का कहना है, "पहला मकान खरीदने वालों को भी उतनी ही छूट मिलनी चाहिए, जितनी निवेशकों को मिलती है... बल्कि सरकार को निवेशकों से अतिरिक्त वसूली करनी चाहिए..."
रीयल एस्टेट सलाहकार कॉलियर्स इंटरनेशनल (Colliers International) में एसोसिएट डायरेक्टर ऑफ रिसर्च सुरभि अरोड़ा के अनुसार, "नियम को न्यायसंगत बनाया जाना चाहिए... होम लोन के लिए दिए जा रहे ब्याज में से सिर्फ दो लाख की कटौती काफी कम है, और इसे बढ़ाया जाना चाहिए... इसके अलावा मूलधन वाले हिस्से की कटौती भी बढ़ाई जानी चाहिेए..."
"मकान निर्माण में देरी पर ब्याज को लेकर मिलने वाली छूट के नियम बदलने चाहिए"
इसके अलावा एक और मुद्दा है, जिस पर विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार को तवज्जो देनी चाहिए। वह है, मकान के निर्माण में देरी होने पर होम लोन के ब्याज को लेकर मिलने वाली छूट। मौजूदा नियमों के मुताबिक, निर्माणाधीन मकान खरीदने की स्थिति में ब्याज की पूरी रकम पर आयकर से छूट पांच बराबर वार्षिक किस्तों में तभी हासिल की जा सकती है, जब मकान का निर्माण पूरा हो चुका होगा। लेकिन यदि मकान का निर्माण तीन साल के भीतर पूरा नहीं होता, तो ब्याज पर मिलने वाली छूट की सीमा 30,000 रुपये प्रतिवर्ष कर दी जाती है, जिससे दरअसल खरीदारों को भारी नुकसान होता है।
लायसेस फोरस के पंकज कपूर के अनुसार, "सरकार को तेज़ गति से मकानों का निर्माण करने और ग्राहकों को समय पर उनके हस्तांतरण को प्रोत्साहित करना चाहिए... ऐसे लगभग 25 लाख फ्लैट हैं, जिन्हें 2008 से अब तक लॉन्च किया गया है, लेकिन उनमें से 42 प्रतिशत के निर्माण में दो साल से भी ज़्यादा की देरी हुई..."
"खरीदार को निर्माण पूरा होने के बाद नहीं, ऋण लेते ही छूट मिलनी शुरू हो जानी चाहिए"
कॉलियर्स इंटरनेशनल की सुरभि अरोड़ा का सुझाव है, "खरीदार को मकान का निर्माण पूरा होने के बाद नहीं, ऋण लेने वाले वर्ष से ही छूट मिलनी शुरू हो जानी चाहिए... चूंकि मकानों के निर्माण में देरी बहुत व्यापक है, इससे बहुत ज़्यादा तादाद में ग्राहकों पर असर होता है..."
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सरकार को स्व-रोज़गार में लगे लोगों के लिए मकान किराया भत्ते (HRA) में छूट की सीमा को भी बढ़ाना चाहिए, और मकान की बीमा कराने पर भी छूट का ऐलान करना चाहिए, ताकि प्राकृतिक आपदाओं से जायदाद को होने वाले नुकसान से लोगों को बचाया जा सके।
"स्व-रोज़गार में लगे लोगों के लिए HRA में छूट सीमा को बढ़ाना चाहिए"
कर सलाहकार फर्म नांगिया एंड कंपनी में एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर ऑफ टैक्सेशन नेहा मल्होत्रा का कहना है, "वेतनभोगी लोगों को उनके वेतन के हिस्से के तौर पर मकान किराया भत्ता दिया जाता है, सो, वे छूट ले सकते हैं, और वह काफी रकम होती है... लेकिन स्व-रोज़गार में लगे लोगों को धारा 80-जीजी के तहत दी जाने वाली 2,000 रुपये की छूट इस मकान किराया भत्ते की तुलना में बहुत कम है, इसलिए इसे भी बढ़ाकर 10,000 रुपये किया जाना चाहिए..."
नेहा ने यह भी कहा, "इसके अलावा आजकल जिस तरह प्राकृतिक आपदाओं की वजह से जायदाद को नुकसान हो रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए घर के बीमा के प्रीमियम पर भी कर से छूट दी जा सकती है, ताकि करदाता अपने मकानों का बीमा कराने के लिए प्रोत्साहित हों..."
आयकर से जुड़े मौजूदा नियमों (धारा 24-बी) के मुताबिक व्यक्ति जिस घर में रह रहा है, उसके लिए हासिल किए गए ऋण पर दो लाख रुपये तक का ब्याज करमुक्त होता है, लेकिन यदि वह दूसरा घर खरीद लेता है, तो उसके लिए हासिल किए ऋण पर सारा ब्याज करमुक्त होता है, और आय में से घटा दिया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसीलिए मौजूदा कर प्रणाली पहला मकान खरीदने वाले की तुलना में ज़मीन-जायदाद में निवेश करने वालों के लिए ज़्यादा मुफीद है।
"पहला मकान खरीदने वाले को भी निवेशक जितनी छूट मिलनी चाहिए"
मुंबई-स्थित रीयल एस्टेट रिसर्च फर्म लायसेस फोरस (Liases Foras) के प्रबंध निदेशक पंकज कपूर का कहना है, "पहला मकान खरीदने वालों को भी उतनी ही छूट मिलनी चाहिए, जितनी निवेशकों को मिलती है... बल्कि सरकार को निवेशकों से अतिरिक्त वसूली करनी चाहिए..."
रीयल एस्टेट सलाहकार कॉलियर्स इंटरनेशनल (Colliers International) में एसोसिएट डायरेक्टर ऑफ रिसर्च सुरभि अरोड़ा के अनुसार, "नियम को न्यायसंगत बनाया जाना चाहिए... होम लोन के लिए दिए जा रहे ब्याज में से सिर्फ दो लाख की कटौती काफी कम है, और इसे बढ़ाया जाना चाहिए... इसके अलावा मूलधन वाले हिस्से की कटौती भी बढ़ाई जानी चाहिेए..."
"मकान निर्माण में देरी पर ब्याज को लेकर मिलने वाली छूट के नियम बदलने चाहिए"
इसके अलावा एक और मुद्दा है, जिस पर विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार को तवज्जो देनी चाहिए। वह है, मकान के निर्माण में देरी होने पर होम लोन के ब्याज को लेकर मिलने वाली छूट। मौजूदा नियमों के मुताबिक, निर्माणाधीन मकान खरीदने की स्थिति में ब्याज की पूरी रकम पर आयकर से छूट पांच बराबर वार्षिक किस्तों में तभी हासिल की जा सकती है, जब मकान का निर्माण पूरा हो चुका होगा। लेकिन यदि मकान का निर्माण तीन साल के भीतर पूरा नहीं होता, तो ब्याज पर मिलने वाली छूट की सीमा 30,000 रुपये प्रतिवर्ष कर दी जाती है, जिससे दरअसल खरीदारों को भारी नुकसान होता है।
लायसेस फोरस के पंकज कपूर के अनुसार, "सरकार को तेज़ गति से मकानों का निर्माण करने और ग्राहकों को समय पर उनके हस्तांतरण को प्रोत्साहित करना चाहिए... ऐसे लगभग 25 लाख फ्लैट हैं, जिन्हें 2008 से अब तक लॉन्च किया गया है, लेकिन उनमें से 42 प्रतिशत के निर्माण में दो साल से भी ज़्यादा की देरी हुई..."
"खरीदार को निर्माण पूरा होने के बाद नहीं, ऋण लेते ही छूट मिलनी शुरू हो जानी चाहिए"
कॉलियर्स इंटरनेशनल की सुरभि अरोड़ा का सुझाव है, "खरीदार को मकान का निर्माण पूरा होने के बाद नहीं, ऋण लेने वाले वर्ष से ही छूट मिलनी शुरू हो जानी चाहिए... चूंकि मकानों के निर्माण में देरी बहुत व्यापक है, इससे बहुत ज़्यादा तादाद में ग्राहकों पर असर होता है..."
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सरकार को स्व-रोज़गार में लगे लोगों के लिए मकान किराया भत्ते (HRA) में छूट की सीमा को भी बढ़ाना चाहिए, और मकान की बीमा कराने पर भी छूट का ऐलान करना चाहिए, ताकि प्राकृतिक आपदाओं से जायदाद को होने वाले नुकसान से लोगों को बचाया जा सके।
"स्व-रोज़गार में लगे लोगों के लिए HRA में छूट सीमा को बढ़ाना चाहिए"
कर सलाहकार फर्म नांगिया एंड कंपनी में एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर ऑफ टैक्सेशन नेहा मल्होत्रा का कहना है, "वेतनभोगी लोगों को उनके वेतन के हिस्से के तौर पर मकान किराया भत्ता दिया जाता है, सो, वे छूट ले सकते हैं, और वह काफी रकम होती है... लेकिन स्व-रोज़गार में लगे लोगों को धारा 80-जीजी के तहत दी जाने वाली 2,000 रुपये की छूट इस मकान किराया भत्ते की तुलना में बहुत कम है, इसलिए इसे भी बढ़ाकर 10,000 रुपये किया जाना चाहिए..."
नेहा ने यह भी कहा, "इसके अलावा आजकल जिस तरह प्राकृतिक आपदाओं की वजह से जायदाद को नुकसान हो रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए घर के बीमा के प्रीमियम पर भी कर से छूट दी जा सकती है, ताकि करदाता अपने मकानों का बीमा कराने के लिए प्रोत्साहित हों..."
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