इंडियन एक्सप्रेस में अर्थशास्त्री कौशिक बसु का लेख पढ़िए. बता रहे हैं कि भारत की जीडीपी का तीस साल का औसत निकालने पर 6.6 प्रतिशत आता है. इस वक्त भारत इस औसत से नीचे प्रदर्शन कर रहा है. पहली दो तिमाही में ग्रोथ 5.7 प्रतिशत और 6.3 प्रतिशत रहा है. सरकार का ही अनुमान है कि 2017-18 में ग्रोथ रेट 6.5 प्रतिसत रहेगा. हम तीस साल के औसत से भी नीचे चले आए हैं. अब वक्त कम है. इसलिए आप कभी 'पद्मावत' तो कभी किसी और बहाने सांप्रदायिक टोन का उभार झेलने के लिए मजबूर है क्योंकि अब नौकरियों पर जवाब देने के लिए कम वक्त मिला है. 2014 के चुनाव में पहली बार के मतदाताओं को खूब पूछा गया. उनका अब इस्तेमाल हो चुका है, वे अब बसों को जलाने और फिल्म के समर्थन और विरोध में बिछाए गए सांप्रदायिक जाल में फंस चुके हैं. सत्ता को नई खुराक चाहिए इसलिए फिर से 2019 में मतदाता बनने वाले युवाओं की खोज हो रही है.
नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ी है क्योंकि यह बुद्धिविहीन फैसला था. हम इसके बुरे असर से भले निकल आए हैं और हो सकता है कि आगे जाकर अच्छा ही है लेकिन इन तीन सालों की ढलान में लाखों लोगों की नौकरी गई, नौकरी नहीं मिली, वे कभी लौट कर नहीं आएंगे. इसलिए ऐसे युवाओं को बिजी रखने के लिए सांप्रदायिकता का एलान ज़ोर शोर से और शान से जारी रहेगा क्योंकि अब यही शान दूसरे सवालों को किनारे लग सकती है.
कौशिक बसु ने लिखा है कि हर सेक्टर में गिरावट है. भारत अपनी क्षमता से बहुत कम प्रदर्शन कर रहा है. कम से कम भारत निर्यात के मामले में अच्छा कर सकता था. भारत में असमानता तेज़ी से बढ़ रही है और नौकरियों की संभावना उतनी ही तेज़ी से कम होती जा रही है. इधर उधर से खबरें जुटा कर साबित किया जा रहा है कि नौकरियां बढ़ रही हैं जबकि हकीकत यह है कि मोदी सरकार इस मोर्चे पर फेल हो चुकी है. उसके पास सिर्फ और सिर्फ चुनावी सफलता का शानदार रिकॉर्ड बचा है. जिसे इन सब सवालों के बाद भी हासिल किया जा सकता है.
कौशिक बसु ने लिखा है कि 2005-08 में जब ग्रोथ रेट ज़्यादा था तब भी नौकरियां कम थीं लेकिन उस दौरान खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों में तेज़ी आने के कारण काम करने की आबादी के 56.7 प्रतिशत हिस्सा को काम मिल गया था. दस साल बाद यह प्रतिशत घट कर 43.7 प्रतिशत पर आ गया. इसमें लगातार गिरावाट आती जा रही है.
इसलिए अब आने वाले दिनों में भांति भांति के हिन्दू-मुस्लिम प्रोजेक्ट के लिए तैयार हो जाएं. आप इसमें फंसेंगे, बहस करेंगे, दिन अच्छा कटेगा, जवानी खूब बीतेगी. पद्मावत के बाद अगला कौन सा मुद्दा होगा....
तमाम तरह के चयन आयोगों के सामने लाचार खड़े नौजवान भी इसी में बिजी हो जाएं. वही बेहतर रहेगा. सांप्रदायिक गौरव इस उम्र में खूब भाता है. वे फार्म भरना बंद कर दें, हिन्दू मुस्लिम डिबेट प्रोजेक्ट में शामिल हो जाएं.
मैं गारंटी देता हूं कि दस बारह साल बिना नौकरी के मज़े में कट जाएंगे. दुखद है लेकिन क्या कर सकते हैं. मेरे कहने से आप रुकेंगे तो नहीं, करेंगे ही. कर भी रहे हैं.
नोट- आईटी सेल अब आप आ जाएं कमेंट करने. 600 करोड़ वोट आपके नेता को ही मिल सकते हैं. आबादी का छह गुना. वाकई भारत ने ही शून्य की खोज की थी.
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This Article is From Jan 26, 2018
भारतीय अर्थव्यवस्था का तीस साल में सबसे ख़राब प्रदर्शन, हिन्दू मुस्लिम डिबेट प्रोजेक्ट का स्वर्ण युग
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जनवरी 26, 2018 00:10 am IST
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Published On जनवरी 26, 2018 00:10 am IST
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Last Updated On जनवरी 26, 2018 00:10 am IST
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