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सीनियर सिटिजंस डे: 21 अगस्त और 1 अक्टूबर का फर्क और बुजुर्गों की हकीकत

Himanshu Joshi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 21, 2025 23:06 pm IST
    • Published On अगस्त 21, 2025 23:05 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 21, 2025 23:06 pm IST
सीनियर सिटिजंस डे: 21 अगस्त और 1 अक्टूबर का फर्क और बुजुर्गों की हकीकत

क्या हम अपने बुजुर्गों को वह सम्मान और सुरक्षा दे पा रहे हैं, जिसके वे हकदार हैं? कोटा की मां जैसी घटनाएं हमें आईना दिखाती हैं. यह समय है कि हम सिर्फ तारीखें मनाने से आगे बढ़ें और बुजुर्गों के लिए एक सुरक्षित, सम्मानजनक समाज बनाएं.

कई लोग पूछते हैं कि वरिष्ठ नागरिक दिवस तो 1 अक्टूबर को होता है न? लेकिन सोशल मीडिया पर 21 अगस्त को भी 'Senior Citizens Day' की पोस्टें दिखती हैं और इससे हमारा कन्फ्यूजन बढ़ जाता है. भई बुजुर्गों का दिवस तो 1 अक्टूबर को है न! दादी के साथ सोशल मीडिया पर सेल्फी तो अक्टूबर के पहले दिन डालनी है न.

आइए, इसे समझें और एक गंभीर सवाल पर भी बात करें- क्या हम अपने बुजुर्गों के साथ वाकई सम्मानजनक व्यवहार कर रहे हैं?

21 अगस्त और 1 अक्टूबर: क्या है अंतर?

21 अगस्त को विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस (World Senior Citizens Day) मनाया जाता है. इसकी शुरुआत 1988 में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने की थी. इसका मकसद बुजुर्गों की गरिमा बनाए रखना और उनके योगदान को सम्मान देना था. दूसरी ओर, 1 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस (International Day of Older Persons) मनाया जाता है, जिसे 1990 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने घोषित किया. यह वैश्विक स्तर पर बुजुर्गों के अधिकारों और कल्याण पर केंद्रित है.

सीधे शब्दों में कहें तो 21 अगस्त अमेरिकी पहल है और 1 अक्टूबर संयुक्त राष्ट्र की. फर्क तारीख और उत्पत्ति का है, पर इनका मकसद एक ही है- बुजुर्गों को सम्मान, सुरक्षा और उनके हक दिलाना.

कोटा का वो वीडियो, जिसने सबको झकझोर दिया

सोचिए, एक मां ने अपनी पूरी जिंदगी अपने बेटे को पालने में गुजार दी और बुढ़ापे में उसी बेटे के हाथों पिट रही है. यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि राजस्थान के कोटा का हाल ही में वायरल हुआ वीडियो है. इस वीडियो में दीपू महावर नामक व्यक्ति अपनी बुजुर्ग मां को लात, घूंसे और चप्पल से मारता नजर आया.

यह दृश्य न सिर्फ दिल तोड़ने वाला है, बल्कि समाज में बुजुर्गों के प्रति बढ़ती असंवेदनशीलता को भी उजागर करता है. पीड़ित मां ने कोटा के अनंतपुरा थाने में शिकायत दी, जिसके बाद पुलिस ने दीपू को गिरफ्तार किया. लेकिन वह जमानत पर रिहा हो गया, जो कानूनी प्रक्रिया की सीमाओं को दर्शाता है.

यह अकेली घटना नहीं है. राजस्थान के ही बूंदी में मई 2025 में 70 वर्षीय छोगालाल को जमीनी विवाद में कार से कुचल दिया गया. ऐसी खबरें समय-समय पर सामने आती हैं, जो हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हमने अपनी संवेदनशीलता खो दी है?

मां-बाप के हक पर कानून क्या कहता है?

बुजुर्ग अकेले नहीं हैं, उनके पास कानूनी हक हैं. भारत में 'माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम, 2007' माता-पिता को अपने बच्चों से भरण-पोषण और देखभाल की मांग करने का अधिकार देता है. अगर बच्चे देखभाल से इनकार करें या हिंसा करें, तो बुजुर्ग जिला मजिस्ट्रेट या ट्रिब्यूनल में शिकायत दर्ज कर सकते हैं.

इसके अलावा 'घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005' बुजुर्ग महिलाओं को हिंसा से सुरक्षा देता है. कोटा की बुजुर्ग मां इस कानून के तहत FIR दर्ज कर सकती थी और सुरक्षा आदेश प्राप्त कर सकती थी. फिर भी, दीपू महावर की त्वरित जमानत जैसे मामले दिखाते हैं कि कानून का कार्यान्वयन हमेशा प्रभावी नहीं होता.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2022 के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में बुजुर्गों के खिलाफ अपराध, जैसे उपेक्षा और हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं. वर्ष 2022 में वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष और उससे अधिक) के विरुद्ध अपराध के 28,545 मामले दर्ज किए गए थे. यह वर्ष 2021 में दर्ज ऐसे मामलों की संख्या में 9.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है.

बुजुर्गों की चुप्पी का राज क्या है?

अक्सर यह सवाल उठता है कि जब कानून मौजूद हैं तो बुजुर्ग अपने बच्चों के खिलाफ शिकायत क्यों नहीं करते. इसका जवाब समाज और परिवार की गहरी जड़ों में छिपा है. एक तरफ तो सामाजिक दबाव है कि अगर कोई माता-पिता अपने ही बच्चों के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो समाज उन्हें 'परिवार तोड़ने वाला' मान लेता है. दूसरी ओर जानकारी का अभाव भी है. अधिकतर बुजुर्गों को यह पता ही नहीं होता कि उनके पास कानूनन ऐसे अधिकार हैं, जिनके आधार पर वे अपने बच्चों की शिकायत कर सकते हैं.

सिर्फ कानून काफी नहीं, सुरक्षा-सम्मान भी जरूरी

बुजुर्गों की सुरक्षा केवल कानूनी दायरे तक सीमित नहीं रह सकती. यह हमारे सामाजिक संस्कार और मानवीय संवेदनशीलता से भी जुड़ा हुआ प्रश्न है. 21 अगस्त (विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस) और 1 अक्टूबर (अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस) हमें यह याद दिलाते हैं कि बुजुर्गों का सम्मान केवल औपचारिक अवसरों तक नहीं रहना चाहिए, बल्कि हमारे व्यवहार और नीतियों में भी दिखना चाहिए.

इसके लिए जरूरी है कि बुजुर्गों को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी दी जाए, समुदाय और स्वयंसेवी संस्थाएं सहायता केंद्र चलाएं और कानून को सख्ती से लागू किया जाए. त्वरित सजा और न्याय की सरल प्रक्रिया ही ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगा सकती है और बुजुर्गों को सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन दे सकती है.

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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