वीवीपैट मशीन की तस्वीर देखिए. आप बैलट नंबर दबाएंगे तो एक रसीद निकलेगी. उस पर वही नंबर लिखा होगा जो आप दबाएंगे. दस सेकेंड तक आप देख सकेंगे. नोएडा एक जागरूकता अभियान में गया था. बताया कि ये पर्ची पांच साल तक नहीं मिटेगी. बेहतर है इसे गिना जाना चाहिए. वीवीपैट के अपने खर्चे भी हैं. इसका इस्तेमाल करने पर मतगणना की रफ्तार भी धीमी होती है. फिर बैलेट पेपर ही क्यों नहीं?
मेरी राय में मतदान में मशीन नहीं होनी चाहिए. चुनाव में भागीदारी की प्रक्रिया में बराबरी से समझौता नहीं किया जा सकता. ईवीएम सही है या गलत इसे कोई सामान्य नागरिक नहीं परख सकता. सिर्फ सॉफ्टवेयर इंजीनियर या इंजीनियर ही समझ सकते हैं. बाकी लोग बोका की तरह हां में हां मिलाएंगे या ना में ना. जर्मनी की सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ इसी आधार पर मतदान में मशीनों के इस्तेमाल को खारिज कर दिया था.
मशीन सही है या नहीं है इस बात पर वहां के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे समझने के लिए सारे मतदाता समान रूप से सक्षम नहीं है. चिप कैसे काम करता है यह बात हर मतदाता बराबरी से नहीं समझ सकता. लिहाजा मतदान में मशीन का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. बूथ नहीं लूटा जा सकता. अब पहले की तुलना में सुरक्षा बल अधिक होते हैं. सीसीटीवी होता है. और भी बहुत कुछ.
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