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This Article is From Jul 31, 2017

दहेज समेत सभी मामलों में गिरफ्तारी के दुरुपयोग पर रोक क्यों नहीं?

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 31, 2017 21:05 pm IST
    • Published On जुलाई 31, 2017 21:03 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 31, 2017 21:05 pm IST
दहेज प्रताड़ना यानि आईपीसी की धारा 498-ए के मामलों में गिरफ्तारी के दुरुपयोग को रोकने के फैसले के खिलाफ कुछ महिला संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख प्रदर्शन किया है. देश की व्यवस्था प्रदर्शन से नहीं बल्कि कानून के अनुसार चलनी चाहिए. सवाल यह है कि तमाम फैसलों के बावजूद, सरकार और न्यायिक व्यवस्था बेकसूर लोगों की गिरफ्तारी को रोकने में क्यों विफल हो रहे हैं?

सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती फैसलों के बावजूद बेवजह गिरफ्तारी क्यों
संविधान में व्यक्ति की स्वतंत्रता को मूलभूत अधिकार मानते हुए अनुच्छेद-22 में गिरफ्तारी मामलों तथा अनुच्छेछ-32 में उपचार के प्रावधान किए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में बिहार के अरनेश कुमार मामले में बहुत पहले यह व्यवस्था दी थी कि बगैर ठोस कारण के पुलिस द्वारा गिरफ्तारी न की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने हालिया फैसले में एनसीआरबी के आंकड़ों को आधार माना है जिसके अनुसार दहेज मामलों में अधिकांश नामजद गिरफ्तार हो जाते हैं पर सजा सिर्फ 14.4 फीसदी लोगों को ही मिली. झूठी शिकायत करने के लिए बकाया मामलों में शिकायतकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा-182 के तहत पुलिस और अदालत द्वारा कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

पुलिस सुधार लागू क्यों नहीं
दिल्ली की एडिशनल सेशन जज कामनी लॉ ने मई 2013 में बेजा इस्तेमाल और उगाही के लिए दहेज उत्पीड़न कानून के इस्तेमाल के कारण इसे लीगल टेररिज्म बताया था. दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा अगस्त 2008 में दिए गए फैसले के अनुसार दहेज प्रताड़ना मामले में एफआईआर दर्ज करने के लिए डीसीपी रैंक के अधिकारी की इजाजत जरूरी है, पर दिल्ली से बाहर इन नियमों का शायद ही पालन होता हो. सुप्रीम कोर्ट ने अरनेश कुमार मामले में कहा था कि अगर पुलिस तय प्रक्रिया का पालन नहीं करती तो अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की जाए. ऐसी व्यवस्था को केन्द्र सरकार सभी राज्यों में पुलिस सुधार के माध्यम से क्यों नहीं लागू कराती?

जेल और बेल के खेल में बढ़ता न्यायिक भ्रष्टाचार
वर्ष 2015 में देशभर में 12 लाख लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा-41 का विश्लेषण करते हुए वर्ष-2014 में कहा था कि सात साल की सजा वाले मामलों में सिर्फ एफआईआर दर्ज होने पर गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अभियुक्त को छानबीन के लिए तभी गिरफ्तार करना चाहिए, जब दोबारा अपराध की आशंका या गवाहों को धमकाने का अंदेशा हो. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार मुकदमों के दौरान हर आरोपी की अदालत में उपस्थिति अनिवार्य नहीं होनी चाहिए तथा बेल मामलों पर अदालत द्वारा उसी दिन सुनवाई होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज कृष्णा अय्यर द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार बेल नियम हैं और जेल अपवाद. बढ़ते न्यायिक भ्रष्टाचार से रसूखदारों को बेल और असहाय जेल का शिकार है, जैसा कि एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों से साबित होता है.

महिला मंत्रालय की शगूफेबाजी रोककर सरकार कानून में बदलाव करे
केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने दहेज उत्पीड़न के दुरुपयोग से पुरुषों को बचाने के लिए महिला मंत्रालय में शिकायत व्यवस्था का अजब शिगूफा छोड़ा है. महिला मंत्रालय द्वारा ट्रालिंग रोकने तथा गर्भवती महिलाओं के अजन्मे बच्चों का लैंगिक विवरण इकठ्ठा करने की कोशिश पहले ही नाकामयाब हो चुकी है. संविधान के अनुच्छेद 141 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश का कानून बन जाता है. सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार सरकार द्वारा कानून में ही बदलाव क्यों नहीं किया जाता, जिससे देश की जनता को दहेज समेत अन्य मामलों में बेवजह गिरफ्तारी से राहत मिल सके.


विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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