क्या आपने इसी भारत की कल्पना की थी...? हिन्दी के अख़बारों ने अकबर के मामले में मेरी बात को साबित किया है कि हिन्दी के अख़बार हिन्दी के पाठकों की हत्या कर रहे हैं. लोगों को कुछ पता नहीं है. हर जगह आलोकनाथ की ख़बर प्रमुखता से है, मगर अकबर की ख़बर नहीं है. है भी, तो इस बात का ज़िक्र नहीं है कि अकबर पर किन-किन महिला पत्रकारों ने क्या-क्या आरोप लगाए हैं. अख़बार जनता के खिलाफ हो गए हैं. सोचिए, अखबारों पर निर्भर रहने वाले कई करोड़ पाठकों को पता ही नहीं चला होगा कि अकबर पर क्या आरोप लगा है.
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अकबर की ख़बर को भटकाने के लिए रास्ता खोजा जा रहा है. पुराना तरीका रहा है कि आयकर विभाग से छापे डलवा दो, ताकि 'गोदी मीडिया' को वैधानिक (legitimate) ख़बर मिल जाए. लगे कि छापा तो पड़ा है और हम इसे कवर कर रहे हैं. ख़बरों को मैनेज करने वालों को कुछ सूझ नहीं रहा है, इसलिए हिन्दी अख़बारों को अकबर की ख़बर से रोक दिया गया है. दूसरी तरफ आयकर के छापे डलवाकर दूसरी ख़बरों को बड़ा और प्रमुख बनाने का अवसर बनाया जा रहा है. हाल के दिनों में The Quint वेबसाइट ने सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर आलोचनात्मक रिपोर्टिंग की है. अब इसके मालिक राघव बहल के यहां छापे की ख़बर आ रही है. इस तरह मीडिया में सनसनी पैदा की जा रही है. विपक्ष के नेताओं के यहां छापे पड़ेंगे.
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आयकर छापे की ख़बर अकबर और राफेल डील की ख़बर को रोकने या गायब करने के लिए ज़रूरी है. फ्रांस के अख़बार 'मीडियापार्ट' ने नई रिपोर्ट छापी है. दास्सो एविएशन के दस्तावेज़ों को देखकर बताया है कि भारत सरकार ने शर्त रख दी थी कि अनिल अंबानी की कंपनी को पार्टनर बनाने के लिए दबाव डाला गया था. यह अब तक का और भी प्रमाणित दस्तावेज़ है. रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण फ्रांस ही गईं हैं. फ्रेंच मीडिया में इस तरह की बात छप रही हो और रक्षामंत्री फ्रांस में हैं. सोचिए, भारत की क्या स्थिति होगी. सरकार चुप है.
सरकार आर्थिक हालात पर भी चुप है. एक डॉलर 74.45 रुपये का हो गया है. पीयूष गोयल को यह रुपये का स्वर्ण युग लगता है. उन्हें शायद यकीं है कि जनता को मूर्ख बनाने का प्रोजेक्ट 50 साल के लिए पूरा हो चुका है. अब वह वही सुनेगी या समझेगी, जो हम कहेंगे. पेट्रोल-डीज़ल के दाम फिर से बढ़ने लगे हैं. 90 रुपये पर 5 रुपया कम इसलिए किया गया, ताकि चुनाव के दौरान 100 रुपया लीटर न हो जाए. फिर से पेट्रोल के दाम बढ़ते हुए 90 की तरफ जाते हुए नज़र आ रहे हैं.
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हां, प्रधानमंत्री चुप हैं. वह BJP कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे हैं.
फेसबुक और व्हॉट्सऐप पर अकबर की ख़बर को ज़्यादा से ज़्यादा साझा कीजिए, क्योंकि इस ख़बर को हिन्दी के अख़बारों ने आप तक पहुंचने से रोका है. यह एक पाठक की हार है. क्या पाठक अपने हिन्दी अख़बारों का गुलाम हो चुका है...? हिन्दी के अख़बार आपको गुलाम बना रहे हैं. आपको इनसे लड़ना ही होगा.
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