मथुरा में हुई हिंसा के लिए कौन जिम्मेदार?

मथुरा में हुई हिंसा के लिए कौन जिम्मेदार?

मथुरा में हुई हिंसा (फाइल फोटो)।

मथुरा की हिंसा के लिए कौन जिम्मेदार है। यह सवाल शायद मन को कुरेदता रहेगा। अवैध  कब्जाने वाले इस कदर हिंसक हो गए कि एसपी सिटी को सीधे माथे पर गोली मार दी। मुकुल द्विवेदी के साथ एसओ संतोष यादव भी मारे गए। दो पुलिस वालों समेत 24 लोगों की जान चली गई, 23 पुलिस वाले ज़ख्मी भी हुए।

प्रशासन और पुलिस इस बात से हैरान है कि उपद्रवियों के पास इतनी  भारी मात्रा में हथियार मौजूद निकला। डीजीपी के अनुसार पुलिस को पता था कि हथियार थे, लेकिन पता नहीं था कि इनका प्रयोग होगा। तो कैसे इस कदर हालात बेकाबू हो गए? मथुरा के जवाहरबाग इलाके में दो साल पहले जय गुरुदेव के समर्थकों ने डेरा जमा लिया। वे खुद को सत्याग्रही कहते थे। इन लोगों ने तीन दिन के लिए अनुमति मांगी थी प्रदर्शन के लिए लेकिन इनको हटाना नामुमकिन हो गया।

जवाहर पार्क को मथुरा का फेंफड़ा कहा जाता है। हरियाली में यहां लोग सैर के लिए आते थे। ठीक कलेक्टरेट के पास डेरा जमाना आसान नहीं था, लेकिन 280 एकड़ के दायरे में जब भी पुलिस ज़मीन के इस अवैध कब्जे को हटाने की कोशिश करती तो हर बार महिलाओं,बच्चों और बूढ़ों को सामने कर दिया जाता था। आठ बार इन्हें हटाने की कोशिशें हुईं। इस बार तो पुलिस कोर्ट के आर्डर के साथ तैयारी करके आई थी, लेकिन सब बेकाबू हो गया।
 
जवाहर पार्क में डेरा जमाए यह  लोग खुद को जय गुरुदेव के उपासक बताते हैं, जिनकी उनके अनुयाइयों में बहुत मान्यता है। मथुरा में मंदिर है। सन 2012 में उनकी मृत्यु हुई। जय गुरुदेव खुद को सुभाष चन्द्र बोस बताते रहे। जय गुरुदेव का जीवन राजनीति और अध्यात्म का मिश्रण बताया जाता है। उनकी मृत्यु के बाद सत्ता संभालने पर खींचतान होने लगी, रामवृक्ष यादव और पंकज यादव के बीच। कहा जाता है कि रामवृक्ष को समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल यादव का संरक्षण मिल गया और इसी के बूते वह जवाहर बाग में आ जमा। मथुरा में हिंसा का अगुवा रामवृक्ष यादव बताया जा रहा है, जो एक हिंसक बाहुबली के तौर पर काम करता रहा है। वह यूपी के ही गाजीपुर का रहने वाला है और कई मामले उस पर दर्ज हैं। वह अब सुभाष चंद्र बोस के नाम पर स्वाधीन भारत सुभाष सेना चला रहा था। इस कैम्प में सशस्त्र ट्रेनिग भी दी जाती रही।

हमारे सहयोगी रवीश रंजन ने कब्जे वाली जमीन का दौरा करके देखा कि किस तरह से यहां हजारों लोग बसे हुए थे। प्रशासन द्वारा बिजली काटे जाने पर सोलार पैनन से ऊर्जा ली जाती थी। कूलर, गाड़ियां, ट्रैक्टर सब मौजूद थे। भंडारा चलता था, खाने-पीने की कमी नहीं थी। उत्तरप्रदेश के एडीजीपी दलजीत सिंह चौधरी के अनुसार यहां यूपी-बिहार,नेपाल के लोग बसे हुए थे।

अब अगले साल चुनावों को देखते हुए बीजेपी ने इस मामले में कड़ा प्रहार किया है। उसने अखिलेश  यादव सरकार से 5 सवाल पूछे हैं-  

  • इस भूमाफिया को किसका राजनीतिक संरक्षण हासिल है?
  • सब कुछ जानते हुए भी उसकी गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई?
  • पुलिस की तैयारी क्यों नहीं थी? इंटेलिजेंस क्या कर रही थी?
  • प्रशासन को क्यों नहीं मालूम था कि बम-बारूद जमा हो रहे हैं?
  • अगर एसपी-एसएचओ को नहीं बचा सकते तो आम आदमी की हिफ़ाज़त कैसे?

यह सही है कि क्या राज्य का खुफिया विभाग नाकाम था या उसकी सुनी नहीं गई। क्या जांबाज माने जाने वाले एसपी मुकुल द्विवेदी ने और पुलिस फोर्स की मांग की थी जो मुहैया नहीं कराया गया। पूर्व यूपी पुलिस अधिकारी केके गौतम का कहना है कि क्या केन्द्र का खुफिया तंत्र भी फेल रहा।

अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव पर सवाल उठा रही बीजेपी खुद भी फंस रही है। मथुरा से उनकी सांसद हेमा मालीनी अपने संसदीय क्षेत्र की उथल-पुथल से दूर फिल्म शूटिंग की फोटो पोस्ट करती रहीं, लेकिन जब सवाल उठे तो वे संवेदना जताकर वहां पंहुची भीं।

समाजवादी पार्टी पर वोट बैंक की राजनीति के आरोप लगते रहे हैं। यह डेरा ओबीसी और मिडिल क्लास का बताया जा रहा है जिस पर अब नजर बीजेपी की है। बीजेपी खुद नेताजी सुभाष चंद्र बोस की वकालत करती आई है। ऐसे में उनकी नजर भी इस वोट बैंक पर होगी। इस सब में बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती खामोश हैं। शायद कई बार खामोशी से फायदा भी होता है, लेकिन यह तय है कि मथुरा पर राजनीति थमने वाली नहीं है।

(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

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