राजनीति नहीं होनी चाहिए, पुलिस को काम करने देना चाहिए, भीड़ द्वारा न हत्या रुक रही है और न ऐसी घटनाओं पर सवाल उठाने के बाद दिए जाने वाले ऐसे नैतिक संदेश रुक रहे हैं. इस तरह से पेश किया जा रहा है कि यह सब राजनीतिक और नफरत की सोच के दायरे से बाहर की घटना है जो कानून और व्यवस्था की समस्या है. अगर है भी तो भी अलवर में एक साल पहले भी पहलू खान की हत्या हुई थी. क्या किसी पर आरोप साबित हुआ. जिन्हें पकड़ा गया वे सब बरी हो चुके हैं. क्यों अलवर में एक साल के भीतर दो लोगों की हत्या होती है. क्यों इन दोनों के नाम पहलू खान और रकबर खान हैं. 17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने भी भीड़ की हिंसा पर कड़ी टिप्पणी की थी, और ऐसे मामले में पुलिस कैसे काम करेगी, उसकी जवाबदेही का पूरा ढांचा तय किया था, पुलिस काम कर रही होती तो सुप्रीम कोर्ट को इतनी सख्ती नहीं करनी पड़ती. एक मंत्री हत्या करने वाली भीड़ के आरोप में उच्च अदालत से ज़मानत पर छूट कर आते हैं और केंद्र सरकार के मंत्री उन्हें माला पहनाते हैं, वे निश्चित रूप से राजनीति नहीं कर रहे थे, बल्कि उल्टा पुलिस को काम करने दे रहे थे. राजनीति के पास तर्क और कुतर्क की कोई कमी नहीं है. किसी को नहीं बख्शा जाएगा टाइप के बयान से कुछ होता नहीं है, बल्कि अंत में पकड़े गए लोग भी बख़्श दिए जाते हैं और वे भी बख्शे हुए मान लिए जाते हैं जिन्हें पकड़ा भी नहीं जाता है.
क्या अलवर की पुलिस ने रकबर को अस्पताल ले जाने में देरी की और क्या पुलिस ने घायल रकबर को अपनी गाड़ी में रखने के बाद मारा, एक महिला ने बताया है कि पुलिस वाले गाड़ी में रखे रकबर को मार रहे थे. 12 बज कर 41 मिनट पर पुलिस को सूचना मिलती है कि भीड़ ने किसी को मारा है. आपने सुना कि थाना घटनास्थल से 15-20 मिनट की दूरी पर है फिर भी पुलिस को पहुंचने में तीस से चालीस मिनट लग जाते हैं. नवल किशोर ने पुलिस को सूचना दी थी, नवल विश्व हिन्दू परिषद का कार्यकर्ता है और गौ रक्षा को लेकर काम करता है. पुलिस नवल को लेकर ही घटनास्थल पर गई. अब आप देखिए, सवा बजे पुलिस घटनास्थल से रकबर को उठाती है मगर 4 किमी दूर अस्पताल पहुंचने में तीन घंटे लग जाते हैं. पुलिस चार बजे रकबर को लेकर पहुंचती है. तीन घंटे क्यों लगे, यह जानना बेहद ज़रूरी है, क्यों पुलिस को तीन घंटे लगे. हर्षा कुमारी सिंह ने एफआईआर की कापी और अस्पताल के रिकॉर्ड दोनों देखे हैं जिसमें काफी अंतर है.
एफआईआर मे लिखा है कि रकबर का शरीर मिट्टी से ढंका था. अस्पताल के रिकॉर्ड में लिखा है कि रकबर का शरीर साफ था. शरीर पर ख़ून के निशान नहीं थे. मिट्टी नहीं थी. क्या पुलिस भीड़ या उसके किसी सरगना को बचाने का प्रयास कर रही थी, जब रकबर मिट्टी से सना था, खून से लथपथ था तो पुलिस ने तुरंत अस्पताल क्यों नहीं पहुंचाया, उसे मौके पर नहला कर क्यों साफ किया, जब वह अस्पताल पहुंचा तो मिट्टी के निशान नहीं थे. उसका शरीर साफ था. क्या ऐसा करने से सबूत नहीं मिटे होंगे. हर्षा कुमारी सिंह ने नवल किशोर से बात की. आप नवल की एक एक बात को ध्यान से पढ़िए.
'सवा एक बजे के समथिंग पहुंचे. 12.41 मिनट का समय रहा होगा. एक 15 से 20 के बीच पहुंच गए. आपने निकाला, वहीं बाहर निकाल कर, मेरे गांव के कोली समाज के मदन लाल भाई हैं उनकी बोरिंग पर यही धर्मेंद्र जिन्हें आरोपी बनाया है, पुलिस ने मुजरिम बनाकर बिठा रखा है, परमीजत को पानी का बकेट लाकर नहलाया. तसल्ली दिलाई. गाय को भी ट्रांसपोर्ट करना चाहते थे. आफ निकल गए. थाने के पहले चाय पी है. मोहन जी ने कहा था कि गाय लेकर आ रहे थे. थाने के साथ अंधेरा है. वो बिल्कुल फिट था. पैर में दर्द था. बात भी अच्छे से कर रहा था, पूरे बयान पुलिस को खुद दिए हैं. बाकी कहीं दर्द नहीं बताया. पुलिस ने अपनी बातें पूछीं तो उसने सारी जानकारी दी है. वो दोनों लड़के भी साथ जिनके बारे में रकबर ने कुछ नहीं बताया. हम आए थे जाने के टाइम था 3 बजे का. एक घंटा लग या. दो बजे थाने पर पहुंचे. एक घंटे थाने में रहे. चार बजे हम गए थे. फिट था. वापस जब आए तो मृत मिला.'
नवल किशोर ने आज रकबर की एक तस्वीर भी जारी की जो उसने पुलिस की गाड़ी के अंदर ही ली. ये तस्वीर नवल किशोर के शरीर से कीचड़ हटाने और उसे नहलाने के बाद की है. क्या इस तस्वीर को देखकर आपको लग रहा है कि रकबर की हालत इतनी ख़राब थी कि वो कुछ देर में दम तोड़ देता. रकबर मर गया या मार दिया गया. क्या इस तस्वीर से यह सवाल नहीं उठता है. रकबर एक अहम गवाह हो सकता था, खासकर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के बाद. नवल इस मामले में अब एक अहम गवाह है. जब नवल किशोर तीन बजे गायों को लेकर गौशाला जाता है तब रकबर ठीक था, और अच्छी तरह से बातचीत कर रहा था, जब नवल लौट कर आता है तो रकबर मृत पाया जाता है.
इस बात की जांच होनी चाहिए कि जब नवल गाय लेकर गौशाला चला गया था तब पुलिस ने उसका इंतज़ार क्यों किया. वह सीधे रकबर को लेकर अस्पताल क्यों नहीं पहुंची. नवल इस बात से हैरान है कि जिन लोगों को उसने घटनास्थल पर रुकने के लिए बोला, धर्मेंद्र और परमजीत उन्हें अरेस्ट कर लिया है. ये दोनों भी रकबर के साथ जीप में थे. रकबर ने इनकी पहचान नहीं की और न ही इन दोनों के बारे में कुछ कहा. परमजीत के भाई ने भी कहा कि अगर वो हत्या वाली भीड़ में शामिल होता तो पुलिस को सूचना क्यों देता.
भीड़ किसी को मार रही है, पुलिस मौके पर पहुंच जाती है, भीड़ का पीछा नहीं करती है, घायल को उठाती है, तब शायद उसके मन में पहली बात होगी कि घायल की जान ज़रूरी है, तब पुलिस उसे लेकर नवल के गांव क्यों जाती है, क्योंकि पुलिस गाय को गौशाला भेजने के लिए गाड़ी के इंतज़ाम में लगी थी. अब उसकी प्राथमिकता घायल की जगह गाय हो जाती है. इसी जगह पर नवल की चाची ने देखा कि पुलिस जीप में किसी को मार रही है. माया जो कि नवल की ही चाची हैं, इन्होंने देखा कि पुलिस रकबर को लात मार रही है. मगर तब तक रकबर ज़िंदा है उसकी चीख से पता चलता है. बाद में नवल जब पुलिस की गाड़ी से जाता है तब भी रकबर ज़िंदा है और पुलिस से खुद बात कर रहा है. नवल के गांव से पुलिस निकलती है दो बजे रात को. रास्ते में रुकते हैं चाय के लिए. गोविंदगढ़ मोड़ पर चाय वाले से चार कप चाय बनाने के लिए कहती है. यहां पर रकबर दर्द की शिकायत करता है. पुलिस अस्पताल लेकर नहीं जाती है, उसे थाना लेकर जाती है. यहीं पर 3 बजे नवल गाड़ी लेकर गौशाला चला जाता है. 15 किमी दूर. जब एक घंटे में लौटता है तब देखता है कि रकबर मरा हुआ है. जो आदमी घायल हो, जो मरने की स्थिति में हो, उसे पुलिस लेकर जा रही हो तो क्या पुलिस चाय पीने के लिए रुकेगी.
'पुलिस गोविंदगढ़ से थाना जाती है, रकबर कराह रहा है फिर भी. अस्पताल एक किमी की दूरी पर है थाने से. लेकिन पहुंचते पहुंचते 4 बज जाते हैं और रकबर मर जाता है. जब पहुंचता है तब वह मरा हुआ था.
परमजीत और धर्मेंद्र को लेकर ही पुलिस अस्पताल गई थी जिन्हें बाद में गिरफ्तार किया गया. आरोपी को भी लेकर पुलिस घूमती रही. क्या पुलिस को बाद में ख्याल आया कि इन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है. हर्षा ने रकबर के साथ गए असलम से बात की है. असलम रकबर के साथ था जो मौके से भाग निकला. असलम ने बताया कि अपने घर के लिए गाय खरीद कर ले जा रहा था. उसे देखकर लोगों ने फायरिंग भी की. असलम ने बताया कि भीड़ में शामिल कुछ लोग बात कर रहे थे कि हमारे साथ एमएलए है.
क्या पुलिस ने भी रकबर को घटनास्थल से अस्पताल ले जाते वक्त मारा है, क्या नवल की चाची की बात सही है, नवल ने भी कहा कि रकबर रास्ते में बिल्कुल ठीक था, जब गौशाला से लौटा तो मरा हुआ पाया. तो क्या रकबर के साथ इस एक घंटे में ऐसा कुछ हुआ, जिसके बारे में अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है. अगर वो पूरी तरह से ठीक था, बात कर रहा था तो ज़ाहिर है वह एक गवाह बन सकता था, भीड़ के लिए मुसीबत बन सकता था. अब आप ही बताइये इतना सवाल है. पुलिस जांच करेगी या पुलिस की जांच होगी.
रकबर मर गया. पहलू खान भी मर गया. सुप्रीम कोर्ट ने हत्यारी भीड़ को लेकर जो दिशानिर्देश तय किए हैं, अब उसका इम्तहान सबके सामने है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि उसका यह दिशानिर्देश पहले की घटनाओं पर भी लागू होता है. क्या अलवर पुलिस वाकई इस मामले को निष्पक्षता से जांच कर सकेगी, पहलू खान के मामले में उसका रिकार्ड आपके सामने है. एक नया रिकार्ड यह है कि तीन घंटे तक पुलिस घायल को लेकर घुमाती रही. क्या यह सब अनजाने में हुआ होगा. क्या पुलिस को यह बताने की ज़रूरत भी है कि घायल को तीन घंटा घुमाना है या अस्पताल ले जाना है, ज़ाहिर है पुलिस को इतना काम तो पता है, मगर क्या पुलिस ने यह काम किसी के फायदे के लिए किया है.
रकबर मर गया. मारने वाले कौन थे, ये तब पता चलेगा जब कोई पकड़ा जाएगा और आरोप साबित होगा. भीड़ के ज़रिए लगातार टेस्ट किया जा रहा है कि समाज के भीतर क्या इतनी नफरत पहुंच चुकी है जिसके सहारे लोग खुद ही जमा होकर किसी पर आरोप लगा दें, सज़ा तय कर दें और मार दें. यह कोई इक्का दुक्का होने वाली घटनाएं नहीं हैं. ऐसा होता तो सुप्रीम कोर्ट को पुलिस के लिए व्यापक दिशानिर्देश की सूची नहीं बनानी पड़ती. अलवर में ऐसी भीड़ कैसे बन रही है, किन लोगों से बन रही है इस एक साल में वहां पुलिस ने ढंग से काम किया होता तो फिर ये घटना नहीं होती. हम लगातार प्राइम टाइम में बोल रहे हैं बल्कि रोज़ ही बोल रहे हैं कि सांप्रदायिकता इंसान को मानव बम में बदल देती है.
आप अपनी आंखों से देख भी रहे हैं. धर्म के नाम पर समाज के भीतर से ऐसे मानव बम तैयार किए जा रहे हैं जो कभी भी और कहीं भी फट सकते हैं. फट रहे हैं. समय कम है मगर आप इस खबर पर भी गौर करें. बिहार के विधान पार्षद हैं नवल किशोर यादव. उन्होंने कहा है कि बिहार के राज्यपाल कोई नाना है क्या. मारेंगे घूंसा घूंसा. तो राज्यपाल सत्यपाल मलिक को घूंसा मारने वाले विधान पार्षद जी को भी सुन लीजिए. नवल किशोर यादव बीजेपी को सुशोभित कर रहे हैं. बाकी आप भी इन्हें सुनकर धन्य हो जाइये.
This Article is From Jul 24, 2018
प्राइम टाइम : अलवर में रकबर की हत्या का ज़िम्मेदार कौन?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 24, 2018 00:26 am IST
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Published On जुलाई 24, 2018 00:25 am IST
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Last Updated On जुलाई 24, 2018 00:26 am IST
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