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This Article is From Jun 11, 2016

सोशल मीडिया पर मनमोहन सिंह की वापसी के पीछे कौन?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 11, 2016 01:19 am IST
    • Published On जून 11, 2016 01:11 am IST
    • Last Updated On जून 11, 2016 01:19 am IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका से लौटने के पहले सोशल मीडिया पर अमेरिकी कांग्रेस के बहाने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लौट आए। सोशल मीडिया पर अपनी वापसी की मनमोहन सिंह ने भी कल्पना न की होगी। अमेरिकी कांग्रेस में प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान बजी तालियों की गिनती क्या हुई उनके आलोचक पुराना रिकॉर्ड देखने लगे कि सही में किसी के लिए पहली बार ताली बजी है क्या। यू ट्यूब पर मनमोहन सिंह को ढूंढने लगे। मीडिया में प्रधानमंत्री मोदी का भाषण खत्म होते ही भाषण से ज़्यादा ये बातें चलने लगी कि आठ या नौ बार अमेरिकी सांसदों ने खड़े होकर सम्मान जताया तो तीस या तैंतीस बार सामूहिक तालियां बजीं। भक्तों के द्वारा हर बार ऐसी हरकत हो जाती है जिससे प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा की सारी चर्चा या तो ताली की गिनती में खो जाती है या स्टेडियम में सुनने आए लोगों की संख्या में। भाषण में विदेश नीति के तत्व पीछे रह जाते हैं।

तालियों और खड़े होने पर ज़ोर पड़ते ही भक्त विरोधी यू ट्यूब पर जुलाई 2005 का वीडियो खोजने लगे। जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया था। एक किस्म का मुक़ाबला चल पड़ा। पहली बार मोदी के मुक़ाबले मनमोहन सिंह को लाया गया। लोग सोशल मीडिया पर उनके भाषणों को भी साझा करने लगे हैं। कई फीड में प्रधानमंत्री के भाषण के साथ साथ मनमोहन सिंह के भाषण का भी लिंक आ जाता है।

मैंने भी इस वीडियो को देखा। उनके सम्मान में भी अमेरिकी कांग्रेस के सांसद देर तक ताली बजाते रहे। इस वीडियो को देखते वक्त मैं ऊब गया और लगा कि लोग इतनी देर तक ताली क्यों बजा रहे हैं। मेहमान के प्रवेश करते ही सम्मान में थोड़ी देर की ताली तो समझ आती है लेकिन ऐसा लगा कि बकायदा सांसदों से कहा गया हो कि कुछ भी हो जाए लंबे समय तक ताली बजानी है। सदन में मनमोहन सिंह आ गए हैं, बोलने के लिए मंच पर पहुंच गए हैं, खड़े हो गए हैं और अब बोलना चाहते हैं मगर ताली है कि बजी जा रही है। कोई तुक नहीं है। बस बजाए जा रहे हैं। शायद वहां की परंपरा होगी। करतल ध्वनि का भी क़दमताल की तरह अभ्यास कराया जाता होगा।

बहरहाल मनमोहन सिंह के वीडियो को लेकर मुक़ाबला होने लगा। भक्त और भक्त विरोधियों का आचरण एक समान हो गया। हालत ये हो गई कि प्रधानमंत्री मोदी की अंग्रेजी के उच्चारण पर बेतुकी टिप्पणियां होने लगीं। मज़ाक़ उड़ाया जाने लगा कि देखो प्रधानमंत्री टेलिप्रॉम्पटर पर लिखी अंग्रेजी पढ़ते हैं। इस लिहाज़ से तो अंग्रेज़ी के तमाम विद्वान एंकर ख़ारिज हो जाएं जो कई साल से कैमरे के नीचे लगे टेलिप्रॉम्पटर पर देख कर अंग्रेज़ी पढ़ते हैं। हम हिन्दीवाले भी स्टुडियो में ऐसे ही पढ़ते हैं। ऐसा ही चलता रहा तो सोशल मीडिया का यह मैच भारत की सार्वजनिक राजनीतिक संस्कृति का सर्वनाश करके दम लेगा।

बहरहाल मनमोहन सिंह के साथ जवाहर लाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक के वीडियो निकाल लिये गए। मगर इन तीनों में ज़्यादा जगह मिली मनमोहन सिंह के वीडियो को। कोई तकनीकि जानकार बता सकता है कि सोशल मीडिया पर पिछले 48 घंटे में मोदी की तुलना में मनमोहन सिंह की क्या उपस्थिति रही। उनका वीडियो प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के वीडियो को भले न पछाड़ पाया हो मगर जहां जहां उनका वीडियो है उसके आसपास मनमोहन सिंह का भी है।

यहां तक अखबारों में भी अमेरिकी कांग्रेस में हुए दोनों के भाषणों की खूब तुलना हुई है। इकोनोमिक टाइम्स ने बकायदा तौल कर बताया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने मनमोहन सिंह की तुलना में 15 प्रतिशत कम शब्दों का इस्तमाल किया। मनमोहन सिंह ने अपने तत्कालीन पूर्ववर्ती अटल बिहारी वाजपेयी का नाम न लेकर जवाहर लाल नेहरू का नाम लिया तो मोदी ने उनका नाम न लेकर अटल बिहारी वाजपेयी का लिया। इस तरह पहली बार मोदी के मुक़ाबले मनमोहन सिंह जगह पाते नज़र आए।

लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी की आंधी में मनमोहन सिंह खर-पतवार की तरह उड़ गए। प्रधानमंत्री मोदी ने भी मां बेटे की सरकार बोल कर ही ज़्यादा हमला किया। पूर्व प्रधानमंत्री पर बहुत कम हमला किया। उस साल जनवरी में मनमोहन सिंह ने एक प्रेस कांफ्रेंस किया था। दस साल के कार्यक्रम में उनकी वो तीसरी और आख़िरी प्रेस वार्ता थी। तब उन्होंने कहा था कि "समकालीन मीडिया की तुलना में मेरे प्रति इतिहास ज़्यादा उदार होगा"। मनमोहन सिंह जी अपनी इस वापसी पर मुस्कुरा सकते हैं मगर शुक्रिया इतिहास का नहीं सोशल मीडिया का कहियेगा! और हां ये उदारता के नतीजे में नहीं हुआ है बल्कि एक किस्म की कट्टरता के जवाब में दूसरे किस्म की कट्टरता से हुआ है।

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