उत्तराखंड के एक किसान का मैसेज आया है. उन्होंने लिखा है कि उन्हें किसान सम्मान योजना की दो किश्तें मिली हैं. एक दिसंबर में और दूसरी जुलाई में. लेकिन तीसरी किश्त के समय एक एसएमएस आता है कि आपका नाम आधार कार्ड से मैच नहीं कर रहा है. इस कारण आपको अयोग्य घोषित कर दिया गया है. आप अपने नाम का सुधार करें लेकिन उनके दिए हुए लिंक पर क्लिक किया तो पेज अंडर कंस्ट्रक्शन था. हरिद्वार के किसान ने कहा कि उसके बाद किसान तहसील जाने लगे. वहां दूसरे गांवों से आए किसानों की भीड़ मिली. तहसील में किसी को कुछ पता नहीं तो कर्मचारियों ने किसानों को लौटा दिया. मैसेज भेजने वाले का दावा है कि उसके गांव में आधे लाभार्थी कम हो गए हैं.
किसान के कहे अनुसार मैं pmkisan.gov.in की साइट पर जाकर राज्यवार लाभार्थियों की संख्या देखने लगा. यह पेज 3 अक्तूबर 2019 को अपडेट हुआ है. पहली किश्त के वक्त 6 करोड़ 76 लाख 48 हज़ार 485 लाभार्थी बताए गए थे. पहली किश्त 1 दिसंबर 2018 को जारी हुई थी. दूसरी किश्त के समय यह संख्या घट जाती है. एक करोड़ किसान कम हो जाते हैं. वेबसाइट की सूचना के अनुसार दूसरी किश्त के लाभार्थियों की संख्या 5 करोड़ 14 लाख 20 हज़ार 802 है. तीसरी किश्त के अनुसार 1 करोड़ 74 लाख 20 हज़ार 230 है. यानी लाभार्थी किसानों की संख्या कम होती गई. तीसरी किश्त तक आते आते 5 करोड़ से अधिक किसान कम हो गए.
किसी को पता ही नहीं चला. अगर आधार कार्ड से नाम मैच नहीं हो रहा था तो पहली और दूसरी किश्त में किसानों को किस आधार पर पैसे दिए गए. अगर गल़ती से दिए गए तो क्या पैसे वापस नहीं लिए जाने चाहिए? दो किश्तों के बीच छह से सात महीने का वक्त था. अचानक जब चुनाव खत्म हो गया है तो सीधे 5 करोड़ किसान कम हो जाते हैं. हिसाब लगाएं तो 13 हज़ार करोड़ ग़लत पात्रों को दिया गया. क्या यह घोटाला नहीं है?
महाराष्ट्र में पहली किश्त के वक्त लाभार्थियों की संख्या 61 लाख 34 हज़ार 366 थी. दूसरी किश्त में यह संख्या आधी हो जाती है. 31 लाख 91 हज़ार 953 हो जाती है. मगर तीसरी किश्त में किसानों की संख्या घट कर 6 लाख 63 हज़ार 837 हो गई है. उत्तर प्रदेश में 1 करोड़ 62 लाख 04 हज़ार 468 किसानों को पहली किश्त की राशि मिली थी. तीसरी किश्त के वक्त लाभार्थी की संख्या 44 लाख 59 हज़ार 007 हो गई है. यही हाल दूसरे राज्यों में है. सरकार के पास पैसे नहीं हैं. कहीं इन सब तरीकों से किश्त में कटौती तो नहीं हो रही है?
पहली किश्त 1 दिसंबर 2018 से 31.3.2019 के बीच दी जानी थी. चुनाव चल रहे थे. इसलिए तेज़ी से पैसा दिया गया. सबके खाते में 2000 रुपये गए. फिर दूसरी किश्त के 2000 भी गए लेकिन तीसरी किश्त के वक्त इतना कैसे कम हो सकता है. नियमावली में है कि आधार अनिवार्य है. अगर आधार नहीं है तो अन्य पहचान के दम पर पैसा ले सकते हैं मगर बाद में आधार जमा करना होगा.
अगर आधार की गड़बड़ी थी तो सरकार को अभियान चलाकर ऐसा करना चाहिए था न कि एसएमएस से भेज कर किसानों को भटकाना था. तहसील को भी पता होना था. क्या सुविधा के हिसाब से आधार को लेकर मानक तय कर दिया जाता है कि नाम नहीं मैच कर रहा तो नाक नहीं मैच कर रहा. इस लेख में सरकार का पक्ष नहीं है.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.