कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जिसमें महाराष्ट्र भी शामिल है. अब चुनाव से पहले बहुत कुछ वादे किए जाएंगे. किसानों की समस्या को लेकर बात होगी. किसानों के लिए कई योजनाओं की घोषणा होगी. चुनाव के बाद यह सब वादे खोखले साबित होंगे क्योंकि अगर राजनैतिक दलों ने अपना वादा पूरा किया होता तो आज किसान आत्महत्या नहीं करता. बैंक से लोन नहीं लेता. अगर किसानों को अपने फसल का सही दाम मिला होता तो दूसरों का पेट भरने वाला किसान खुद भूखा नहीं रहता. कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके की 35 साल की उज्ज्वला ने अपनी चार बेटियों के साथ कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली लेकिन इस खबर को लेकर जितना हंगामा होना चाहिए था नहीं हुआ. करीब एक महीने पहले उज्ज्वला के पति ने भी आत्महत्या कर ली.
पिछले चार साल में विदर्भ इलाके में 5214 किसानों ने आत्महत्या की है. एक किसान के आत्महत्या कर लेने के बाद उसके परिवार के बारे में कोई नहीं सोचता. hindu businessline में राधेश्याम जाधव ने एक रिपोर्ट लिखी है जिसमें कहा है कि जब किसान आत्महत्या कर लेता है तो उसके परिवार को लेकर कोई गंभीर नज़र नहीं आता है. यह भी कहा गया कि कई विधवा सरकार की स्कीम से बाहर हो जाती हैं और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उन्हें घर भी नहीं मिलते. सामाजिक कार्यकर्ता विधवा पेंशन के रूप में किसानों के परिवार के लिए 1000 रुपये प्रतिमाह की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार के तरफ से सिर्फ 600 रुपया दिया जा रहा है और यह 600 रुपया भी ज्यादातर विधवाओं के पास नहीं पहुंच पा रहा है.
जून के महीने में महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा में कहा था कि 2015 से लेकर 2018 के बीच कुल-मिलाकर 12021 किसानों ने आत्महत्या की है. 2011 से 2014 के बीच महाराष्ट्र में जब कांग्रेस और एनसीपी की सरकार थी तब 6268 किसानों ने आत्महत्या की थी. 2015 से 2018 के बीच यह संख्या 91 प्रतिशत तक बढ़ गई है. सोचिए अगर फडणवीस सरकार ने 2014 में किसानों के लिए जो वादा किया था वो सही तरीके लागू होता तो किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर होते?
इसी महीने में पंजाब के बरनाला जिले के गांव भोतना में 22 वर्षीय युवक लवप्रीत सिंह ने कर्ज़ के कारण आत्महत्या कर ली. इस किसान परिवार की चार पीढ़ियों के 5 लोग कर्ज़े के कारण आत्महत्या कर चुके हैं. जिस कर्ज के कारण इस परिवार की चार पीढ़ियों के 5 लोगों ने अपनी जान दे दी उनका ना तो कर्ज माफ हो सका ना ही परिवार को कोई आर्थिक सहायता मिल सकी. कर्ज 8 लाख रुपए के करीब बताया जा रहा है जबकि परिवार के पास करीब एक एकड़ जमीन है. घर में अब सिर्फ मृतक की मां और बहन रह गई है. लवप्रीत के पिता ने करीब 18 महीने पहले आत्महत्या कर ली थी. पंजाब सरकार कर्ज माफी की बात करती रहती है लेकिन पंजाब में किसानों का हाल ठीक नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार पिछले दो साल में पंजाब में 1280 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. कुछ दिन पहले पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा था कि किसानों को फसलों का ठीकठाक दाम मिलना चाहिए. कोर्ट ने कहा था किसानों को लागत से तीन गुना एमएसपी मिलना चाहिए. अब यह देखना है पंजाब सरकार इसे लेकर क्या कदम उठाती है.
सबसे दिलचस्प बात यह है 2016 के बाद देश में कुल-मिलाकर कितने किसानों ने आत्महत्या की है उसका कोई डेटा केंद्र सरकार के पास नहीं है. 2018 में लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा था कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2016 के बाद किसान आत्महत्या का कोई डेटा पब्लिश नहीं किया है. NCRB गृह मंत्रालय के अंदर काम करता है और क्राइम को लेकर डेटा संग्रह करता है, जिसमें आत्महत्या भी शामिल है. NCRB की वेबसाइट पर उपलब्ध डेटा के हिसाब से 2015 में देश में 8000 किसानों ने आत्महत्या की है और सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में 3030 किसानों ने आत्महत्या की है. रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा किसानों ने ऋण और फसल खराब हो जाने की वजह से आत्महत्या की है. 2014 में कुल-मिलाकर 5650 किसानों ने आत्महत्या की थी. 2016 के बाद किसान आत्महत्या का कोई डेटा ही नहीं है.
हरियाणा में भी विधान सभा चुनाव होने वाले हैं. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि हरियाणा के 10 लाख किसान जिन्होंने एग्रीकल्चरल कोआपरेटिव सोसाइटी, डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव सेंट्रल बैंक से लोन लिया है और पैसा वापस नहीं कर पा रहे हैं. या जिन किसानों का खाता NPA में तब्दील हो गया है उन्हें पेनाल्टी और ब्याज से छुटकारा मिलेगा. सवाल यह उठा रहा कि चुनाव से पहले सरकार को किसानों की याद क्यों आई ?
किसान यूनियन का कहना है कि सरकार को पूरा लोन माफ कर देना चाहिए था. अगर किसान कर्ज चुकाने के स्थिति में होते तो कर्ज चुका दिया होता. कर्ज चुका नहीं पा रहे हैं इसीलिए उनका कर्ज NPA बन गया है. किसान यूनियन का कहना है किसानों ने नेशनल बैंक से भी लोन लिया है, जो बहुत ज्यादा है लेकिन सरकार वह माफ नहीं कर रही है. कोआपरेटिव बैंक से किसान अधिकतम 90 हज़ार का लोन ही ले सकते हैं जबकि नेशनल बैंक से 90 हज़ार से ज्यादा लोन ले सकते है. इसीलिए ज्यादातर किसान नेशनल बैंक से लिये गए लोन को लेकर परेशान हैं लेकिन सरकार ऐसे किसानों को लेकर गंभीर नहीं है. लगभग सभी राज्यों में किसानों की हालात खराब है. किसान आत्महत्या कर रहा है. सरकार को किसानों की समस्या को लेकर ज्यादा गंभीर होना चाहिए. सिर्फ स्कीम की घोषणा कर देने से किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं हो जाता है. स्कीम सही ढंग से लागू हुई है या नहीं यह भी देखने की जरूरत है.
सुशील मोहपात्रा NDTV इंडिया में Chief Programme Coordinator & Head-Guest Relations हैं
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