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This Article is From Jan 31, 2019

जब MiG में बैठकर जॉर्ज फर्नांडिस ने मुझसे कहा था, "4-जी तक बढ़ा दो दबाव..."

Air Commodore Harish Nayani (Retd)
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 31, 2019 15:59 pm IST
    • Published On जनवरी 31, 2019 15:44 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 31, 2019 15:59 pm IST

भारतीय राजनीति के इतिहास में 29 जनवरी, 2019 को 'उदास दिन' के रूप में दर्ज किया जाएगा. हमने एक सच्चे नेता को खो दिया, जो हमेशा अपने मूल्यों के साथ खड़ा रहा, और प्रचार पाने और लाइमलाइट में आने से हमेशा बचता रहा. और बिल्कुल उसी तरह शांति से अनंत निद्रा में लीन हो गए, जिस तरह वह चाहते रहे होंगे, उन लोगों के लिए अपनी विरासत छोड़कर, जो उन्हें जानते थे, उनके वास्तविक रूप को समझते थे. श्री जॉर्ज फर्नांडिस का राजनैतिक सफर भले ही उतार-चढ़ाव से भरा रहा हो, भले ही उनके दुश्मनों की तादाद कितनी भी रही हो, लेकिन वह उन लोगों पर कभी न मिट सकने वाली छाप छोड़ गए हैं, जिनकी ज़िन्दगियों को उन्होंने छुआ. करोड़ों लोगों से भरे इस मुल्क में ऐसा ही एक शख्स मैं हूं.

यह सब तब शुरू हुआ था, जब MiG-21 के खिलाफ कुख्यात और कतई अन्यायपूर्ण हमला किया गया था, और उसे 'उड़ता ताबूत' और 'विधवा बनाने वाला' जैसी कई उपाधियां दी गई थीं. उस वक्त के रक्षामंत्री के तौर पर उन्होंने इसे खुद की ज़िम्मेदारी माना कि देश के सामने साबित किया जाए कि यह भी दुनिया के बाकी लड़ाकू विमानों की ही तरह सुरक्षित है, और घोषणा कर दी कि वह MiG-21 में उड़ान भरेंगे. इसके बाद कई वजूहात से तब अम्बाला में तैनात 3 स्क्वाड्रन को मंत्री जी को उड़ान पर ले जाने के लिए चुना गया. अचानक हुए इस फैसले के वक्त मैं स्क्वाड्रन का कमांडिंग ऑफिसर हुआ करता था, और यह काम मुझे ही सौंपा गया. अम्बाला एयरबेस के एयर ऑफिसर कमांडिंग (AOC) एयर कमॉडोर एसके सोफत के फोन कॉल ने मुझे हैरान कर डाला, जब उन्होंने मुझे 'मिशन' के लिए तैयार रहने और सॉर्टी प्रोफाइल तय करने के लिए कहा. हमें मंत्री के OSD से इनपुट मिले कि मंत्री जी समझना चाहते हैं कि जी-फोर्स से कैसा महसूस होता है. जिन्हें जानकारी नहीं है, उन्हें बता दें कि जी-फोर्स वे होती हैं, जिन्हें पायलट और अंतरिक्ष यात्री महसूस करते हैं, जब उनका यान चलता है और उनके शरीर का वज़न बढ़ जाता है. उदाहरण के लिए, 2-जी उड़ान में शरीर दोगुना वज़नी महसूस होता है. लड़ाकू विमानों के पायलट प्रशिक्षित होते हैं और उनके पास ज़रूरी उपकरण भी होते हैं, जिनकी मदद से वे इस जी-फोर्स, या इससे भी ज़्यादा जी-फोर्स से निपट सकते हैं. बहरहाल, सभी पायलट एक खास जी स्तर के बाद होश खो बैठते हैं. मंत्री जी के लिए सॉर्टी प्रोफाइल इस तरह का बनाया गया, जिसमें उन्हें धीरे-धीरे 4-जी तक की जी-फोर्स का अनुभव करवाया जाना तय किया गया था. और इसके अलावा जैसा आमतौर पर होता ही है, दो सीट वाले MiG-21, जिसे MiG-21 यूएम या टाइप-69बी कहा जाता है, का VIP उड़ान के लिए पूरी तरह मेकओवर कर दिया गया.

तय कार्यक्रम के मुताबिक, 31 जुलाई, 2003 को गोधूलि बेला में मंत्री जी का HS-748 'एवरो' अम्बाला एयरबेस पर उतरा. मैं उस समूह का हिस्सा था, जो उनकी अगवानी के लिए खड़ा था. तय समय पर दरवाज़ा खुला, और अपने ट्रेडमार्क खादी का कुर्ता-पायजामा पहने मंत्री जी बाहर आए, और हम सभी का अभिवादन किया. चमचमाती एम्बैसेडर उनके लिए आगे बढ़ी, लेकिन वह ज़िन्दादिल भद्रपुरुष पहले वहां का जायज़ा लेना चाहते थे, सो, वह कुछ कदम दूर हटे, ताकि एयरबेस को सब ओर से देख सकें. उनकी तीखी निगाहों ने तुरंत ही लगभग दो किलोमीटर दूर मौजूद प्राचीन अवशेषों को देख लिया, जो शेरशाह सूरी के ज़माने का एक पुल था. अगली पीढ़ियों के लिए इसे संरक्षित रखने के उद्देश्य से एयर ट्रैफिक कंट्रोल टॉवर की बगल में मौजूद इस पुल का रखरखाव एयरफोर्स स्टेशन ही किया करता था. उसके बारे में बताए जाने पर उन्होंने उसे करीब से देखने की इच्छा जताई. सभी को हैरान करते हुए उन्होंने बेहद शालीनता से एम्बैसेडर का इश्तेमाल करने से इंकार कर दिया, और तेज़ कदमों से पुल की ओर चलना शुरू कर दिया, और समूचा एन्टूअरेज भी उनके पीछे-पीछे चलने लगा. ज़मीन से जुड़ी, सरल और सभी प्रकार के बेतुकेपन से दूर शख्सियत से मुलाकात का मेरा यह पहला मौका था.

उसी शाम उनके लिए कुछ चुनिंदा अधिकारियों के साथ एक 'शांत रात्रिभोज' की योजना बनाई गई थी. मैं एक बार फिर उनकी सरलता का कायल हो गया, जब उन्होंने बेहद शालीनता से उस मौके पर पकाए गए व्यंजनों को खाने से इंकार कर सिर्फ दाल और चावल ही खाए. लेकिन जल्द ही उनके व्यक्तित्व की यह सरलता भी फीकी पड़ती महसूस हुई, जब उसी रात हम उन्हें उनके बेडरूम में छोड़कर जाने लगे. हमने कमरे से दूर चलना अभी शुरू भी नहीं किया था, वह दरवाज़ा खोलकर बाहर आए, और शिकायत की कि उनके बाथरूम में 'रिन' साबुन नहीं है, जिससे वे अपने कपड़े धो सकें. एयरफोर्स बेस की मशीनरी को तुरंत ही हरकत में लाया गया, और मंत्री जी के लिए साबुन की व्यवस्था की गई. अगली सुबह मंत्री जी ब्रीफिंग के लिए तय वक्त पर, ठीक 6 बजे, स्क्वाड्रन में पहुंच गए. वेस्टर्न एयर कमांड के तत्कालीन एयर ऑफिसर कमांडिंग एयर मार्शल एआर 'आदि' गांधी भी इस मौके पर अम्बाला पहुंचे थे. मैंने परम्परागत रूप से मेहमान को सैल्यूट कर सॉर्टी ब्रीफ देना शुरू किया. उड़ान के अलग-अलग हिस्सों के बारे में समझाते वक्त मैंने बताया कि कैसे मैं धीरे-धीरे जी-फोर्स के बढ़ने का अनुभव उन्हें करवाऊंगा, और अंत में 4-जी पर खत्म करूंगा. अचानक एयर ऑफिसर कमांडिंग परेशान दिखने लगे, और सुझाव दिया कि मंत्री जी की उम्र (73 साल) का ध्यान रखते हुए 2.5-जी तक ही सीमित रहें. अपने शांत और संयमित लहज़े में मंत्री जी ने दखल दिया, और कहा, "एयर मार्शल, अगर आपको आपत्ति नहीं हो, तो मैं 4-जी का अनुभव करना चाहूंगा..." और बस, वही तय हो गया.

मंत्री जी ने अपने कुर्ते-पायजामे के स्थान पर नीला और हरे रंग का एन्टी-ग्रैविटी सूट पहना, और आकाश में उड़ान भरने के लिए तैयार दिखने लगे, जो उस समय तक धुंधला हो गया था, और बेमौसम ही हल्की बूंदाबांदी भी शुरू हो गई थी. उन्हें ज़रूरत पड़ने की स्थिति के लिए एक 'उल्टी-बैग' भी दिया गया, और उसे इस्तेमाल करने का तरीका बताया गया. सभी लड़ाकू स्क्वाड्रनों के साथ एक 'टी-क्लब' होता है, ताकि उन्हें ज़रूरी पोषण दिया जा सके, खासतौर से उड़ान से ठीक पहले. सैंडविच, समोसे और बिस्कुटों से भरी प्लेटें मंत्री जी के सामने परोसी गईं, जिन्हें उन्होंने शालीनता से नकार दिया, और इस बार किसी को हैरानी नहीं हुई. उसकी जगह उन्होंने एक केला खाना पसंद किया, लेकिन यह हमारी तैयारियों का हिस्सा नहीं था, सो, सब तरफ अफरातफरी मच गई, क्योंकि टी-क्लब के पास उसकी व्यवस्था नहीं थी. एक बार फिर अम्बाला एयरफोर्स स्टेशन की मशीनरी को हरकत में लाया गया. सभी अहम अधिकारी 'वॉकी-टॉकी' हाथ में लिए बातचीत कर रहे थे, और याद रहे, स्नूपरों को कन्फ्यूज़ करने के लिए सभी के संकेत नाम भी थे. AOC को 'टाइगर' कहा जाता था, और अन्य अधिकारियों के नाम भी 'पैंथर', 'जगुआर', 'लायन' और 'कोबरा' जैसे थे... सो, नतीजा यह हुआ कि जंगल के ये सभी खतरनाक प्राणी अम्बाला की उस बरसती सुबह में जल्द से जल्द एक फल की व्यवस्था करने के लिए भटक रहे थे. जहां तक मुझे याद है, 'पैंथर' की पत्नी ने हमें बचा लिया, और स्क्वाड्रन के लिए वह फल भेज दिया. तब तक मौसम ज़्यादा बिगड़ चुका था, सो, मंत्री जी स्क्वाड्रन के पायलटों से क्रू रूम में बात करते रहे. उन्होंने सबसे जूनियर पायलट को भी बेहद ध्यान से सुना, और पूरे जोश में बातचीत की. उन्होंने अपने आलोचकों को कोसते हुए बात खत्म की, जिन्होंने कुछ न होते हुए भी 'ताबूत घोटाला' गढ़ दिया. उन्होंने हमें समझाया कि उनका इरादा सिर्फ इतना था कि शहीद हुए जवान अपने अंतिम सफर पर सम्मान के साथ जाएं, क्रेट-वुड के बने अस्थायी ताबूतों में नहीं.

मौसम आखिरकार खुल गया, और हम विमान की ओर बढ़े. मंत्री जी ने कहा कि वह हर टेक्नीशियन से हाथ मिलाना चाहते हैं, जो हमें विदा करने पहुंचे थे. जब मैं छोटे-से रीयर कॉकपिट में उन्हें बैठने में मदद कर रहा था, वह विभिन्न डायलों और उपकरणों के बारे में मुझसे सवाल कर रहे थे. हम जल्द ही इंजन को शुरू कर रनवे पर ले जाए जाने के लिए तैयार हो गए. आफ्टरबर्नर को शुरू करने के बाद रनवे पर विमान हिला और 20 सेकंड से भी कम वक्त में हम हवा में पहुंच चुके थे. मैंने विमान को बादलों से नीचे ही रखा, ताकि मंत्री जी को इलाके को समझने का मौका मिल सके. वह सबसे ज़्यादा इच्छुक थे, जब मैंने कुरुक्षेत्र कस्बे की ओर इशारा किया, और उन्होंने नज़दीक से देखने की इच्छा जताई. तब मैंने कस्बे का एक चक्कर लगाया, और पूरे वक्त उनसे बात करते-करते अपनी उड़ान पर आगे बढ़ा. तब हम अपनी सॉर्टी प्रोफाइल के हिसाब से बढ़े, और मैं बार-बार उनसे पूछता रहा कि वह आराम से हैं या नहीं. एक बार भी उन्होंने किसी भी तरह की परेशानी की शिकायत नहीं की, और जल्द ही ऊंचे जी-फोर्स को महसूस करने के लिए तैयार हो गए. जब मैंने थोड़ा-छोड़ा कर जी-फोर्स को बढ़ाया और 4-जी तक ले गया, वह चौकन्ने थे, संयमित थे, और मेरी हर बात का जवाब दे रहे थे. 73-वर्ष के किसी शख्स के लिए ऐसा कर पाना शानदार था. प्रोफाइल पूरा हो जाने पर मैंने उनसे पूछा कि क्या वह बेस पर लौटने के लिए तैयार हैं. मैं भौंचक्का रह गया, जब उन्होंने पूछा कि क्या हमारे पास कुछ और उड़ानों के लिए पर्याप्त ईंधन है. हमने कुछ और मिनट हवा में बिताए, और फिर अम्बाला लौट आए.

इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंत्री जी ने खुश होकर अपनी सॉर्टी को याद किया, और उत्सुक मीडिया को बताया कि लड़ाकू विमान में उड़ना कैसा अनुभव रहा. सारे वक्त वह 'कॉपी-बुक' सॉर्टी के लिए मेरी तारीफ करते रहे, और लाइमलाइट से बचने की कोशिश करते दिखे. जल्द ही वह अपनी हमेशा वाली पोशाक पहनकर दिल्ली के लिए रवाना हो गए, लेकिन जाने से पहले अम्बाला में हम सभी को कई-कई बार धन्यवाद कहा. मेरे लिए, यह भारतीय वायुसेना के दिनों की सबसे ज़्यादा यादगार रहने वाली सॉर्टी में से एक थी, और दिल में सबसे ज़्यादा सहेजकर रखे जाने वाली मुलाकात, एक शानदार शख्सियत से, एक सच्चे नेता से, जिसे लड़ाई के मैदान में मौजूद जवानों की फिक्र है. बेहद भारी मन से मैं ये शब्द लिख रहा हूं, और प्रार्थना कर रहा हूं कि श्री जॉर्ज फर्नांडिस की आत्मा को शांति मिले. जय हिन्द!

 

 
एयर कमॉडोर हरीश नयनी (सेवानिवृत्त) भारतीय वायुसेना के टेस्ट पायलट रहे हैं, और अब वह एक सिविल एयरलाइन के लिए कार्यरत हैं.

 
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