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This Article is From Oct 05, 2019

लद्दाख डायरी : क्‍या कहते हैं लेह के लोग अनुच्‍छेद 370 पर...

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 06, 2019 00:01 am IST
    • Published On अक्टूबर 05, 2019 23:53 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 06, 2019 00:01 am IST

जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद राज्य के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग प्रतिक्रिया हुई. एक तरफ़ कश्मीर घाटी में प्रतिबंध रहा वहीं जम्मू के लोग ख़ुश बताए जा रहे थे तो लेह-लद्दाख के इलाक़े में ख़ुशी के साथ लोगों के दिलों में आशंकाएं भी हैं. लेह में सब सामान्‍य है. टेलीफ़ोन और इंटरनेट पर कोई प्रतिबंध नहीं है, भले ही वो थोड़ा धीमा है मगर उस पर कोई रोक टोक नहीं है. लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है जिससे कि वह सीधा केंद्र के अधीन रहेगा और वहां पर लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति की जाएगी. जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन के बाद लद्दाख में कारगिल का इलाक़ा भी जोड़ा गया है जो शिया मुस्लिम बहुल इलाक़ा है. वहीं लद्दाख की बाक़ी आबादी हिंदू और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की है. मुस्लिम आबादी भी अच्छी तादाद में है. लेह लद्दाख का सबसे बड़ा शहर है और ज़िला मुख्यालय भी है. लेह की आबादी महज डेढ़ लाख है यानी दिल्ली के किसी बड़े इलाक़े से भी छोटा. यहां बारिश बहुत कम होती है. इसे बर्फ़ का रेगिस्तान भी कहते हैं. यहां पानी की क़िल्लत रहती है और कुछ ज्‍यादा उगता नहीं है और साल में चार-पांच बार यहां काफ़ी बर्फबारी होती है. उन दिनों लेह लद्दाख भारत के बाक़ी हिस्सों से कट जाता है. यहां के लोगों से बात करने पर कई दिलचस्प मुद्दे उभर कर सामने आए. लोगों ने कहा कि ये उनके लिए जम्मू कश्मीर से आज़ादी मिलने जैसा है. लेकिन यहां के लोग अपनी पहचान को लेकर काफ़ी सजग हैं. लद्दाख को बाक़ी देश के लिए खोल दिए जाने पर उनकी प्रतिक्रिया सधी हुई होती है.

यहां के लोग चाहते हैं कि इस इलाक़े को से सिंदूर 6 (schedule 6 of indian constitution) में रखा जाए. वैसे भी अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय आयोग ने भी लद्दाख को इसमें शामिल किए जाने की सिफ़ारिश की हुई है. अभी तक असम, मेघालय, मिज़ोरम, त्रिपुरा जैसी जगहों को सिंदूर 6 में शामिल किया गया है. दार्जिलिंग में भी हिल काउंसिल है. अनुमान में भी यही व्यवस्था है. सुदूर 6 में आने के बाद यहां के जिला काउंसिल ज़मीन, जंगल, पानी, खेती जैसे विषयों पर क़ानून बना सकती है और यही वजह है कि यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि टूरिज़म के क्षेत्र में बाहरी निवेश को नियम बनाकर नियंत्रित करना चाहिए. पर्यटन क्षेत्र की ज़मीन और होटलों पर स्थानीय लोगों का नियंत्रण बनाना चाहिए. यहां के लोग बड़े होटल चेन के आ जाने के बाद अपना धंधा बंद होने के डर से घबराए हुए हैं. उनको डर है कि यदि बड़े होटल चेन यहां आ गए तो फिर उनके लिए यहां जगह नहीं बचेगी. उनका मानना है ज़िले में बड़े होटल चेन की ज़रूरत नहीं है. वहीं लोग ये ज़रूर चाहते हैं कि बड़े अस्पताल ज़रूर खुलें जिससे कि पूरे लद्दाख के लोगों को बेहतर इलाज मिल सके. अब ये जिला अस्पताल है जो काफ़ी बेहतर है मगर उस पर बोझ बहुत है. 

यहां पर Apricot यानी खुबानी और सेब की अच्छी पैदावार होती है. इसलिए इसके भंडारण और संरक्षण की ज़रूरत है. खुबानी यहां इतना होता है कि लोग उसे फेंकने की बजाय सीमेंट के साथ घर बनाने में इस्तेमाल कर लेते हैं. इसलिए खुलवाने के संरक्षण का काम सरकार को तुरंत शुरू करना चाहिए. लद्दाख के लोगों के लिए केंद्र शासित प्रदेश करना एक सांस्कृतिक आज़ादी की तरह है जिसे बचाने की ज़रूरत है. अब कारगिल भी इसका हिस्सा है. शुरुआत में वहां से कुछ विरोध की ख़बरें आयी थीं मगर अब वहां भी सब ठीक है और लोग समझने लगे हैं. 

दरअसल लद्दाख पूरे हिमालय में एक ओएसिस या नखलिस्तान की तरह है. अब उसको बचाए रखने की ज़रूरत है. इससे छेड़छाड़ पूरे हिमालय क्षेत्र के लिए ख़तरनाक होगी ख़ासकर पर्यावरण की दृष्टि से और किसी भी सरकार या वहां की हिल काउंसिल के लिए यह सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए. वैसे भी विकास और पर्यावरण की लड़ाई काफ़ी पुरानी है और अक्सर इसमें विकास के नाम पर पर्यावरण का दोहन होता रहता है. यदि सरकार चाहती है कि लेह और लद्दाख की सुंदरता बनी रहे तो उसको पर्यावरण के लिहाज़ से ही समझना होगा क्योंकि यहां का पर्यावरण काफ़ी Fragile है या कहा जाता कि भंगू रहा है और भंगुर है और उसे बचाए रखना हम सबकी जिम्‍मेदारी होनी चाहिए थी.


(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...)

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