बहुत हद तक केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के मामले में बीजेपी के ऊपर ये बात लागू होती है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर बिहार के हाजीपुर में दिए गए बयान पर हुए बवाल पर भले गिरिराज सिंह ने खेद जाता दिया हो, भले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भविष्य में उनसे ऐसे विवादस्पद बयान देने से परहेज करने की नसीहत की औपचारिकता भी पूरी कर ली हो और मीडिया में इस खबर को लीक भी कर दिया गया हो।
लेकिन गिरीराज ऐसे बयान क्यों देते हैं और पार्टी या सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी आखिर किन मजबूरियों के कारण उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाते इसकी एक अलग कहानी है।
दरअसल गिरिराज सिंह के राजनतिक बायोडाटा में बहुत कुछ नहीं है, लेकिन उनके राजनतिक सफर की सबसे बड़ी उपलब्धि कहिए या पूंजी कि वो कुछ लोगों के दुःख या बीजेपी में संक्रमण काल के मित्र रहे हैं। लेकिन छिपकर नहीं बल्कि डंके की चोट पर और जिन लोगों के सुख दुःख में वो साथ रहे उनमें दो नाम प्रमुख हैं, एक है नरेंद्र मोदी और दूसरे अमित शाह।
मोदी के खिलाफ जिन दिनों उनकी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की सहमति से बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी के नेता दूरी बना कर रखते थे या कहिये राजनैतिक रंगभेद करते थे, उस समय गाहे बगाहे और 2010 से नियमित रूप से गिरिराज सिंह ने निजी तौर पर नरेंद्र मोदी फैंस क्लब चलाया हुआ था, जिसका काम होता था हर मौके पर मोदी के समर्थन में बयान देना। नीतीश कुमार की सभा या जिस शहर में दौरा हो वहां मोदी के पोस्टर वाले गेट लगवाना और पूरे देश में आप कह सकते हैं कि गिरिराज 'मोदी नाम केवलम' करने वाले मूल गायक या चीयर लीडर थे।
जहां तक अमित शाह का सवाल है, ये सब जानते हैं कि कई वर्षों तक न्यायालय के आदेश के कारण गुजरात जाने पर बंदिश के कारण वो देश के हर राज्य में घूमते थे और जब भी वो बिहार गए, गिरिराज ने उनकी मेहमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी। आप कह सकते हैं कि गिरिराज के ज्योतिषियों ने इन दोनों नेताओं के भविष्य के बारे में शायद उन्हें सटीक भविष्यवाणी कर दी थी, जिसपर गिरिराज ने अमल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। और जब गिरिराज सिंह पिछले साल पार्टी के टिकट पर नवादा लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार थे और जब मोदी उनके लिए प्रचार करने गए, तब उन्होंने लोगों से अपील की कि चुनाव गिरिराज नहीं बल्कि वो लड़ रहे हैं, इसलिए वोट देने के बाद नवादा के विकास में वो कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
और शायद यही कारण है कि गिरिराज कई मुक़दमों और इनकम टैक्स में लंबित मामले के बाद भी केंद्रीय मंत्रीमंडल में न केवल जगह पाते हैं बल्कि उन्हें एक ऐसे मंत्रालय की जिम्मेवारी दी जाती है जिसमें प्रधानमंत्री की रुचि होती है। गिरिराज न सिर्फ मंत्री हुए बल्कि अपने सजातीय एक ऐसे पुलिस अधिकारी को अपना प्राइवेट सेक्रेटरी बनाया जिसकी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का मामला कुछ कारणों से महीनों से अटका था। जबकि इसके पहले प्रधानमंत्री मोदी के तेवर से साफ़ था कि कोई केंद्रीय मंत्री अपने स्टाफ में अपने स्वजातीय लोगों खासकर वैसे लोगों को शायद नहीं रख सकता जिनके खिलाफ कोई मामला चल रहा हो। लेकिन मामला गिरिराज का हो तब मोदी भी झुके।
साफ़ था कि न केवल गिरिराज के लिए सारे खून माफ़ थे बल्कि वो चाहे बयान दें या पैसे रखें, उनके लिए मोदी गांधी जी के बन्दर की तरह न कुछ अप्रिय सुन सकते थे न देख सकते थे।
लेकिन अब सवाल है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो सकती? इसका एक और एक ही कारण है कि वो जिस भूमिहार जाति से आते हैं उस जाति के लोगों में कोई कार्रवाई करने पर बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रतिक्रिया हो सकती है। चुनावी वर्ष में शायद मोदी इस जाति का गुस्सा झेलने के लिए तैयार नहीं। मोदी को अटल बिहारी वाजपेयी का वो अनुभव याद होगा जब उन्होंने डॉ. सीपी ठाकुर को भ्रष्टाचार के एक मामले में मंत्रिमंडल से हटाया था तब बिहार बीजेपी के नेता पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन के बाद उनके पास पहुंचे और उनसे आग्रह किया कि आप उन्हें फिर मंत्री बना दीजिए क्योंकि बनाने से कोई फायदा हो या नहीं हटाने से उस जाति के लोगों में गुस्से के कारण राजनैतिक रूप से बहुत नुकसान हो रहा है।
अंत में गिरिराज सिंह का कहना है कि उन्होंने सारी बातें ऑफ द रिकॉर्ड कही थी और मीडिया ने इससे रिकॉर्ड कर और दिखा कर बहुत गलत किया है। लेकिन जब उनसे किसी ने पूछा कि आपकी पार्टी दिल्ली में AAP के मामले में स्टिंग पर इतना उछल-उछल कर बयान देते हैं तब आपके साथ नरमी क्यों। तब गिरिराज ने भी मना कि जैसा आप बोएंगे वैसे काटेंगे।