विज्ञापन
This Article is From Jun 30, 2018

मंदसौर की घटना के बहाने चुप्पी पूछने का खेल खेलने वालों का इरादा क्या है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 30, 2018 18:34 pm IST
    • Published On जून 30, 2018 18:16 pm IST
    • Last Updated On जून 30, 2018 18:34 pm IST
बलात्कार की हर घटना हम सबको पिछली घटना को लेकर हुई बहस पर ला छोड़ती है. सारे सवाल उसी तरह घूर रहे होते हैं. निर्भया कांड के बाद इतना सख़्त कानून बना इसके बाद भी हमारे सामने हर दूसरे दिन निर्भया जैसी दर्दनाक घटना सामने आ खड़ी होती है. कानून से ठीक होना था, कानून से नहीं हुआ, भीड़ से ठीक होना था, भीड़ से भी नहीं हुआ. इसकी बीमारी हिन्दू मुस्लिम की राजनीति में नहीं, दोनों समुदायों में पल रहे पुरुष मानसिकता में है और उसके साथ कहां कहां हैं, अब ये कोई नए सिरे से जानने वाली बात नहीं रही. सबको सबकुछ पता है. इसके बाद भी बलात्कार को लेकर ऐसा कुछ नज़र नहीं आता जिससे लगे कि हालात बेहतर हुए हैं.

मध्य प्रदेश के मंदसौर में सात साल की बच्ची के साथ जो हुआ है, उसे भयावह कहना भी कम भयावह लगता है. शहर और आस पास के गांव के लोगों में भी तीव्र प्रतिक्रिया हुई है और लोग सड़क पर उतरे हैं. समाज का ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो इसे लेकर गुस्से में नहीं है. पुलिस ने स्थिति को भी संभाला है और आरोपी इरफ़ान और आसिफ़ को गिरफ्तार भी किया है. ऐसा कहीं से नहीं लग रहा है कि पुलिस ढिलाई कर रही है न किसी ने इसकी तरफ इशारा किया है. सरकारी अस्पताल है मगर फिर भी डाक्टरों ने अभी तक बेहतर तरीके से पीड़िता को संभाला है. लड़की की आंत तक बाहर आ गई थी, इस उम्र में उसे तीन तीन ऑपरेशन झेलना पड़ा. ख़बर आ रही है कि उसकी स्थिति सुधार की तरफ बढ़ रही है.

लोगों के स्वाभाविक गुस्से के बीच एक राजनीति भी है जो जगह बना रही है. अस्पातल में भाजपा सांसद सुधीर गुप्ता गए तो विधायक सुदर्शन गुप्ता को यह याद रहा है कि पीड़िता की मां उस हालात में सांसद जी को आने के लिए धन्यवाद कहे. पत्रिका ने लिखा है कि कांग्रेस नेता अस्पताल से उलझने लगे कि भाजपा नेताओं की तरह उन्हें भी जूते चप्पल पहन कर अंदर क्यों नहीं जाने दिया जा रहा है.

बलात्कारी के साथ कोई खड़ा नहीं होता. कठुआ में बलात्कार के आरोपी के पक्ष में लोग निकले थे तब इस पर सवाल उठा था और चर्चा हुई थी जिसके कारण दो मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा था क्योंकि वे बलात्कार के आरोपी के पक्ष में होने वाली सभा में शामिल थे. इस तथ्य को भूलना नहीं चाहिए.

मंदसौर में कोई आरोपी के साथ नहीं है. हर वर्ग और धर्म के लोग आरोपी के ख़िलाफ़ हैं. अंजुमन इस्लाम के युनूस शेख और सीरत कमेटी के अध्यक्ष एडवोकेट अनवर मंसूरी ने कहा है कि कोई भी आरोपियों का मुकदमा नहीं लड़ेगा और अगर अदालत मौत की सज़ा देती है तो दफ़न करने के लिए क़ब्रिस्तान में जगह नहीं दी जाएगी.

यह बताते हुए भी अजीब लग रहा है क्योंकि मंदसौर की घटना को लेकर व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में तरह तरह के मीम बनने लगे हैं. लिखा जाने लगा है कि कठुआ में आसिफा के लिए बोलने वाले मंदसौर की बच्ची के लिए चुप हैं. इसके बहाने तरह तरह के सांप्रदायिक मीम बनने लगे हैं. नफ़रत वाले मेसेज फैलाए जाने लगे हैं.

कठुआ की आसिफा की मिसाल देने वाले भूल जाते हैं कि वहां कौन लोग बलात्कार के आरोपी के साथ खड़े थे. उसका आधार धर्म था या कुछ और था. अगर बलात्कार के आरोपी के पक्ष में सभा न हुई होती, पुलिस को चार्जशीट दायर करने से रोकने के लिए भीड़ खड़ी न की गई होती तो कोई इस पर चर्चा तक नहीं करता और न ही किसी ने अभियान चलाया कि क्यों चुप्पी है. किसी की हत्या कर वीडियो बनाने वाले रैगर के साथ कौन लोग खड़े थे और चंदा जमा कर रहे थे. यह सब होता आ रहा है और हो रहा है. क्या वो अपराधी के धर्म के साथ नहीं खड़े थे? क्या धर्म के नाम पर उसके अपराध को नज़रअंदाज़ कर चंदा नहीं जमा कर रहे थे?

आपको तय करना है कि सबकुछ भीड़ के हवाले कर देना है या कानून को काम करने का एक निष्पक्ष रास्ता बनाना है जो बलात्कार के ऐसे आरोपी के साथ सख़्ती से पेश आए, जांच और कानून की प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचा या दे फिर वो सब हो जो भीड़ चाहती हो. मंदसौर की घटना को भुनाने वाले और उसके बहाने लोगों की सांप्रदायिक सोच को जायज़ ठहराने वाले लोग ये काम तब भी करते रहते हैं जब ऐसी कोई घटना नहीं होती है. आरोपी का धर्म सामने नहीं होता है. वे तब भी ये सब करते रहते हैं क्योंकि उनका मकसद यही है.

इन लोगों को चुप्पी से मतलब होता तो इंदौर की स्मृति लहरपुरे की आत्महत्या या फिर मध्य प्रदेश की दूसरी बलात्कार की घटनाओं पर भी वैसे ही सक्रिय रहते. क्या हैं? फिर पूछ कर क्या साबित कर रहे हैं, ख़ुद का परिचय दे रहे हैं या फिर जिससे पूछ रहे हैं उसका इम्तहान ले रहे हैं? स्मृति लहरपुरे की आत्महत्या पर भी इंदौर के छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं. एम्स भोपाल के छात्रों ने उसके समर्थन में मार्च निकाला और शोक सभा की. स्मृति के गांव में भी विरोध प्रदर्शन हुआ मगर व्हाट्स एप में किसी ने मीम नहीं बनाई.

यह सवाल भी उसी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के तहत गंभीर है जिसके तहत कोई भी दूसरी घटना. पांच साल तक मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक लड़की को फीस के दबाव के कारण आत्महत्या करनी पड़ गई, ऊपर से कॉलेज का प्रशासन उसका चरित्र हनन कर रहा है कि उसका किसी से संबंध था. जबकि सुसाइड नोट में ज़िक्र ही इन बातों का है कि कैसे फीस वसूली की व्यवस्था डाक्टरी के छात्रों को गुलाम में बदल रही है. उनके लिए तो किसी ने मुझे नहीं ललकारा या मीम नहीं बनाया.

इसलिए हम लिखे न लिखें मगर मंदसौर जैसी घटना के आरोपी के समर्थन में चुप रह सकते हैं ये वही बात कर सकते हैं जो ख़ुद चुप रहते हैं और सांप्रदायिक माहौल बनाने के लिए दूसरे की चुप्पी का हिसाब करते हैं. मंदसौर की उस बेटी के साथ जो हुआ है, उसे पढ़कर किसी भी पाठक के होश उड़ जाते हैं. मेरे भी उड़ गए. उसकी तस्वीर देखी नहीं जा रही है. रोना आ जा रहा है. कल फिर ऐसी घटना हमारे सामने होगी जिसका आरोपी हिन्दू हो सकता है, कोई सवर्ण हो सकता है कोई और भी हो सकता है, मुसलमान भी हो सकता है.

हम कैसे सारी घटनाओं पर बोल सकते हैं और क्यों तभी बोलना है जब अपराधी या आरोपी कोई मुसलमान हो. मुसलमान आरोपी होने पर क्यों मान लेना है कि हम चुप हैं या चुप रहेंगे. हमने या राजदीप ने या सागरिका ने तो कभी किसी अपराधी का बचाव नहीं किया. न करूंगा वो चाहे किसी भी धर्म का हो. प्राइम टाइम में अनुराग की स्टोरी भी चली तब भी अगले दिन व्हाट्स अप भरा हुआ है कि मंदसौर पर कब चलाओगे. चैनल पर भी चलता रहा है.

अगर कुछ लोगों को इस शर्मनाक और हाड़ कंपा देने वाली घटना के बहाने की राजनीति भी समझ नहीं आती है तो क्या किया जा सकता है. कम से कम इन लोगों से यही पूछ लीजिए कि नौकरी के सवाल पर कब बोलेंगे. स्वीस बैंक में 50 फीसदी धन बढ़ गया, उस पर कब बोलेंगे, एक डॉलर 69 रुपये का हो गया है उस पर कब बोलेंगे, काला धन कब आएगा उस पर कब बोलेंगे. जवाब नेताओं को देना है और भिड़ाया जा रहा है लोगों को. कमाल का खेल है. आप मत खेलिए. उस बच्ची के लिए दुआ कीजिए. अपराधी के लिए कोई दुआ नहीं कर रहा, ऐसी अफवाहें मत फैलाइये.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com