कुछ डॉक्टरों की लापरवाही पर अस्पताल को ही बंद कर देने से क्या हासिल?

कुछ डॉक्टरों की लापरवाही के कारण सजा के तौर पर अस्पताल बंद करना इंसाफ है, या फिर लापरवाही बरत रहे डॉक्टरों और अस्पताल मैनेटमेंट को सज़ा देना इंसाफ...

कुछ डॉक्टरों की लापरवाही पर अस्पताल को ही बंद कर देने से क्या हासिल?

अपने दो जुड़वां बच्चों को खो देने का उस मां का दुख मैं अच्छी तरह से समझ सकती हूं....लेकिन दिल्ली के शालीमार बाग के मैक्स अस्पताल की लापरवाही के मामले ने हमारे सामने कई सवाल खड़े किए हैं. दिल्ली सरकार नें शुक्रवार को ऐलान कर दिया कि वह अस्पताल का रजिस्ट्रेशन रद्द कर रही है. 22 हफ्ते के नवजात को उसके जुड़वा के साथ अस्पताल नें माता-पिता को यह कहकर सौंप दिया था कि उनकी मौत हो चुकी है. डॉक्टर उनको बचा पाने में कामयाब नहीं हो पाए....लेकिन अंतिम संस्कार की तैयारी में लगे परिवार को तब झटका लगा जब दोनों में से एक बच्चे में कुछ हलचल हुई और पता चला कि उसकी सांसें चल रही हैं. तुंरत दूसरे अस्पताल में पहुंचकर उसको बचाने की कोशिश हुई...लेकिन उसको नहीं बचाया जा सका.

अब दिल्ली सरकार के ताजा फैसले ने दोनों बच्चों के माता-पिता और परिवार को अपनी कार्रवाई से संतुष्ट कर दिया है लेकिन बड़े सवाल बचे हुए हैं. एक बड़ी मेडिकल फेसेलिटी को बंद करके क्या दिल्ली के नागरिकों की परेशानियां बढ़ेंगीं नहीं? क्या और रास्ते हैं जिससे सरकार प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी और लापरवाही पर लगाम लगा सके और मरीजों को भी दिक्कत न हो. सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ वकील अशोक अग्रवाल कहते हैं कि दिल्ली सरकार इस गंभीर लापरवाही का हल निकाल सकती है, अस्पताल का रजिस्ट्रेशन कैंसिल किए बगैर. दिल्ली सरकार चाहे तो वह अस्पताल के मैनेटमेंट को टेकओवर कर सकती है. कुछ उसी तरह जिस तरह मासूम स्कूली छात्र प्रद्युम्न की हत्या के बाद गुड़गांव प्रशासन नें नई व्यवस्था तक स्कूल को चलाने का फैसला किया था.  ...या फिर अस्पताल मैनेटमेंट पर लापरवाही के लिए बड़ी पेनल्टी लगाकर अपने सिस्टम को दुरुस्त करने की चेतावनी दी जा सकती है. कुछ उसी तरह जैसे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने श्री श्री रविशंकर के आर्ट ऑफ लिविंग पर बहुत बड़ा जुर्माना लगाकर यमुना तट पर प्रदूषण फैलाने का सबक सिखाने का फैसला किया था. डॉक्टरों की लापरवाही के लिए कंज्यूमर कोर्ट से इंसाफ मांगा जा सकता था और दोषी डॉक्टरों के खिलाफ पुलिस जांच शुरू कर सकती थी. इसके अलावा मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया कार्रवाई कर सकती थी.

लेकिन एनडीटीवी से बात करते हुए दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि दिल्ली सरकार मैक्स अस्पताल पर अब और ज्यादा नरमी बरतने के मूड में नहीं है. इस मामले से पहले भी शालीमार बाग के मैक्स अस्पताल को दूसरे मामलों में तलब किया गया था, लेकिन अस्पताल नें आज तक किसी शो कॉज का जवाब नहीं दिया. इसलिए सरकार के पास उसका रजिस्ट्रेशन रद्द करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. जैन कह रहे हैं दिल्ली नर्सिंग होम्स रजिस्ट्रेशन एक्ट 1953 के तहत ही यह बड़ा कदम उठाया गया है. अगर अस्पताल इस फैसले को अदालत में चुनौती भी देता है तो दिल्ली सरकार का पक्ष इतना पुख्ता है कि अस्पताल को राहत मिलने की उम्मीद नहीं है. दिल्ली सरकार अपने इस फैसले से शहर के सभी प्राइवेट अस्पतालों को चेता रही है कि जान जानें की कीमत बिजनेस बंद करके वसूली जाएगी.

लेकिन एक बार फिर वही सवाल बचा हुआ है, एक ऐसे वक्त में जब हमारे गांव-शहर और हमारा देश दुरुस्त मेडिकल सुविधाओं की राह देख रहा है वहां एक चलती मेडिकल फेसिलिटी को, कुछ डॉक्टरों की लापरवाही के कारण सजा के तौर पर बंद करना इंसाफ है, या फिर लापरवाही बरत रहे डॉक्टरों और अस्पताल मैनेटमेंट को सज़ा देना इंसाफ है?

 
सिक्ता देव एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर और एंकर हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.


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