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गांधी जयंती विशेष: दक्षिण भारत में हिंदी को लेकर कैसे गए महात्मा गांधी

डॉ. नीरज कुमार
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 02, 2025 15:02 pm IST
    • Published On अक्टूबर 02, 2025 15:02 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 02, 2025 15:02 pm IST
गांधी जयंती विशेष: दक्षिण भारत में हिंदी को लेकर कैसे गए महात्मा गांधी

महात्मा गांधी न केवल एक कुशल राजनेता थे बल्कि वो एक कुशल पत्रकार और भाषा चिंतक भी थे. उन्होंने अपने भाषा चिंतन पर 'हिन्द स्वराज' में विस्तार से लिखा है. उनके भाषा चिंतन का मूल आधार उनके देशज सोच में झलकता था. उन्होंने भाषा को सांप्रदायिकता और क्षेत्रीयता से ऊपर देखने का प्रयास किया. इसलिए उनका मानना था कि देशज हिंदी में वो शक्ति है जो पूरे भारत को एक राष्ट्र के रूप में जोड़ सकती है. उनका मानना था कि देशज हिंदी एक सरल भाषा है. भारत के अधिकांश लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं. देशज हिंदी हिन्दू और मुसलमान कि भाषा नहीं बल्कि भारतवर्ष कि भाषा है. इसका क्षेत्रीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं से कोई वैर नहीं है. इसलिए उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया. उनका मानना था कि हिंदी को गैर हिंदी क्षेत्रों में स्वीकार्यता दिलाए बिना भारत की भाषाई अस्मिता को स्थापित नहीं किया जा सकता है.

ऐसा भी नहीं है कि गांधी जी से पहले हिंदी के प्रचार-प्रसार के प्रयास नहीं हो रहे थे. उनसे पूर्व हिंदी का प्रचार साहित्यिक धरातल पर प्रयाग साहित्यिक सम्मेलन और काशी कि नागरी प्रचारणी सभा करती थी. शिक्षा के स्तर पर स्वामी दयानंद सरस्वती हिंदी को आर्य भाषा मानते थे. इन्हीं आर्य समाजियों में स्वामी श्रद्धानंद जी ने गुरुकुल कि स्थापना इस उद्देश्य से की कि उसमें शिक्षा का माध्यम हिंदी ही होगा. लेकिन गांधी जी के पूर्व गैर-हिंदी क्षेत्रों में हिंदी के प्रचार के लिए कोई विशेष उपाय नहीं किए गए. गांधी जी के राष्ट्रीय आंदोलन के साथ हिंदी विकास में इतना महत्वपूर्ण योगदान है कि इतिहास की तरह ही हिंदी भाषा का काल विभाजन में गांधी युग का अमिट छाप रहा है.

गांधी और इंदौर का हिंदी साहित्य अधिवेशन

साल 1918 में गांधी जी इंदौर के हिंदी साहित्य सम्मलेन के अधिवेशन में सभापति चुने गए. इस अधिवेशन में गांधी जी ने हिंदी से जुड़े तीन प्रमुख मुद्दों को रेखांकित करते हुए अपने भाषा चिंतन को इस रूप में व्याख्यायित किया, " हमें ऐसा काम करना चाहिए कि हिंदी को जितनी जल्द हो सके राष्ट्रीय भाषा बनने गौरव प्रदान किया जाए. इसके लिए हिंदी को अंतः प्रांतीय भाषा को व्यवहार के रूप में अपनाना चाहिए. कांग्रेस के आगामी अधिवेशनों में मुख्यतः हिंदी पर जोर देना चाहिए. अंत में हिंदी को प्रारंभिक शिक्षा के बाद द्वितीयक भाषा के रूप में प्रयोग में लाना चाहिए.''

गांधी प्रारंभिक शिक्षा को मातृ भाषा में देने के हिमायती थे. हालांकि, गांधी जी इंदौर अधिवेशन से पूर्व रविंद्र नाथ टैगोर, एनी बेसेंट, मदन मोहन मालवीय और बाल गंगाधर तिलक से अपने भाषा चिंतन को लेकर सलाह-मशविरा कर चुके थे. गांधी जी भाषा के सांप्रदायिक चरित्र को कृत्रिम मानते थे. इसलिए वो हिंदी को ना तो संस्कृत निष्ट मानते थे और ना ही फारसी से वैर रखने वाली भाषा के रूप में. वो हिंदी के देशजपन पर ज्यादा जोर देते थे. इसी इंदौर अधिवेशन में गांधी जी ना केवल अपनी हिंदी विषयक कल्पना को प्रस्तुत किया बल्कि हिंदी के दक्षिण में प्रचार-प्रसार पर भी जोर दिया.

गांधी जयंती पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देते तमिलानाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन.

गांधी जयंती पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देते तमिलानाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन.

दक्षिण भारत में हिंदी के प्रसार में गांधी जी का योगदान

इंदौर अधिवेशन में गांधी जी ने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार जोर दिया था. इसके लिए गांधी जी ने भाषा के आदान-प्रदान पर जोर दिया. उन्होंने एक प्रस्ताव पारित किया कि हर साल छह दक्षिण भारतीय युवकों को हिंदी सीखने के लिए प्रयाग भेजा जाए और छह हिंदी भाषी युवकों को दक्षिणी भाषा सीखने के लिए और हिंदी का प्रचार करने के लिए दक्षिण भारत भेजा जाए. गांधी जी का मानना था कि दक्षिण के चार प्रांत जो उस समय मद्रास प्रेसीडेंसी का अंग थे, वहां पर हिंदी के प्रचार को लेकर कुछ नहीं किया गया था. उनका जोर इस बात पर था कि दक्षिण भारत में हिंदी भाषा सिखाने के लिए शिक्षकों को तैयार करना चाहिए.

इसी अधिवेशन में एक समिति का गठन किया गया. इसका मुख्य काम था दक्षिण भारत में हिंदी का प्रचार करना था. इसके सदस्यो में गांधी जी और पुरुषोत्तम दास टंडन शामिल थे. समिति को हिंदी के प्रचार के लिए महाराज होलकर और सेठ हुकुमचंद ने 10-10 हजार रुपये दान दिया था. गांधी जी ने समाचार पत्रों लेख लिखकर तमिल और तेलुगु भाषी लोगों से हिंदी सीखने की अपील की. गांधी जी ने मद्रास में हिंदी प्रचार के लिए सबसे पहले अपने छोटे बेटे देवदास गांधी को ही भेजा. इसका परिणाम यह हुआ कि मद्रास में हिंदी का पहला वर्ग खुला. इसका उद्घाटन समारोह होम रूल लीग के दफ्तर ब्राइवे में आयोजित हुआ. इसकी अध्यक्षता डॉक्टर रामास्वामी अय्यर ने की. गांधी जी के इस प्रयास का प्रभाव एनी बेसेंट पर पड़ा. वो दक्षिण भारत से प्रकाशित दैनिक पत्र 'न्यू इंडिया' में अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी लेख प्रकाशित करने लगीं.

देवदास गांधी की ओर से स्थापित हिंदी वर्ग में हिंदी सीखने के लिए बहुत लोग आ गए. इसमें सदाशिव अय्यर (मद्रास हाइ कोर्ट के न्यायाधीश) वेंकट राम शास्त्री, भाष्यम आयंगर, सुंदर अय्यर और रुक्मणि लक्ष्मीपति विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. अब दक्षिण भारत के एक और प्रमुख अखबार 'हिन्दू' भी हिंदी का प्रचार करने लगा. दक्षिण में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए धन की जरूरत पड़ने लगी. इसके लिए 1920 में अग्रवाल महासभा ने 50 हजार रुपये और घनश्याम दास बिड़ला ने 10 हजार रुपये की सहायता गांधी जी को दी. साल 1922 आते-आते तमिलनाडु के इरोड में सर्वप्रथम हिंदी प्रचारक विद्यालय की स्थापना हुई. इसका उद्घाटन मोतीलाल नेहरू ने किया था. इससे उत्साहित गांधी जी ने तमिल जनता को संबोधित करते हुए लिखा, ''हम हिंदी भाषा को हिंदुस्तान के एक सिरे से दूसरे सिरे तक परस्पर व्यवहार कि आम भाषा बना दें, तो फिर राष्ट्र कि शक्ति की कोई सीमा नहीं बचेगी.'' गांधी जी के इन्हीं प्रयासों का फल था कि 1935 में हिंदी साहित्य सम्मलेन के 24वें अधिवेशन तक छह लाख दक्षिण भारतीय हिंदी सीख चुके थे. इसके अलावा 600 ऐसे शिक्षक तैयार हो गए थे, जो दक्षिण भारत में हिंदी सीखा रहे थे. मद्रास में हिंदी की 70 किताबें तैयार की गईं, जिनकी आठ लाख प्रतियां बिकीं.

गांधी जयंती पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि पेश करते बच्चे.

गांधी जयंती पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि पेश करते बच्चे.

अन्य प्रांतीय भाषाएं और महात्मा गांधी 

गांधी जी का स्पष्ट मत था कि हिंदी भाषा से किसी अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की पहचान को कोई खतरा नहीं है. इसलिए वो प्राथमिक शिक्षा तक मातृभाषा पर जोर देते थे. वो तो सिर्फ ये चाहते थे कि हिंदी एक ऐसी संपर्क भाषा रूप में स्थापित हो जो भारत को एक जगह से दूसरे जगह तक आसानी से जोड़ सके. गांधी जी का जोर अब दक्षिण भारत के साथ- साथ अन्य गैर हिंदी प्रांतों में हिंदी के प्रचार-प्रसार पर था. साल 1936 में नागपुर में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मलेन के अधिवेशन में डॉ राजेंद्र प्रसाद ने गांधी जी से प्रेरणा लेते हुए हिंदी प्रचार समिति का गठन किया. इसका कार्यालय वर्धा में स्थापित किया गया. इस समिति का काम अन्य प्रांतों में हिंदी का प्रचार-प्रसार करना था. वर्धा का अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय गांधी जी के भाषा चिंतन से ही प्रेरित है. गांधी जी के इन्हीं प्रयासों का परिणाम था कि रविंद्र नाथ टैगोर भी हिंदी का समर्थन करने लगे. तमिल भाषा के कवि श्री मुरुगनार ने हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के पक्ष में एक छोटी कविता लिखी. इसका तमिल से हिंदी अनुवाद कुछ इस तरह से था.

जिस जिस भारत के सभी लोग 
अपनी पसंद से चुनी हुई सबकी बोली 
हिंदी को अपनी जानेंगे 
बस, उसी रोज सच्चा स्वराज्य आ जाएगा.

डिस्क्लेमर: डॉ नीरज कुमार बिहार के वैशाली स्थित सीवी रमन विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं. लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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