श्रीनगर में अक्टूबर महीने की एक रात. सन्नाटे को तोड़े बग़ैर सुरक्षबलों की एक टुकड़ी ने डाउन टाऊन के एक मोहल्ले को अपने घेरे में ले लिया. ये सुरक्षा का बिल्कुल बाहरी घेरा था और ये सिर्फ एहतियातन था. किसी गड़बड़ी की सूरत में ही इन्हें हरक़त में आना था. गली में कुछ दूरी पर सुरक्षाबलों की मौजूदगी से बेखबर मकबूल डार (काल्पनिक नाम) का पूरा परिवार गहरी नींद में सो रहा था. पर डार उनींदी में थे. मानो उनको किसी 'मेहमान' का इंतज़ार था. ऐसा नहीं कि ऐसा पहली बार हो रहा था. पहले भी ऐसा कई बार हो चुका था. किसी 'मेहमान' के आने की कोई ख़बर नहीं होती थी लेकिन वे अचानक आ जाते थे. कई बार आने का इशारा होता था लेकिन 'मेहमान' नहीं आते थे. इसी तरह की ऊहापोह में डार की आंखों से रातों की नींद ग़ायब रहती थी.
तभी अचानक दरवाज़े पर हल्की सी आहट होती है. दरवाज़ा अधखुला ही था. अंधेरे में नमूनदार हुए उन पांच सायों को अंदर दाखिल होने के लिए कोई आवाज़ नहीं लगानी पड़ी. मकबूल डार उनके स्वागत के लिए अंदर ही खड़े मिले. सबों ने एक एक कर डार का आलिंगन किया. फेरन के भीतर शरीर पर टंगे असहलों की मौजदूगी कस कर गले मिलने में कुछ दूरी पैदा कर रही थी.
पांचों 'मेहमान' पहले से तयशुदा कमरे में जाकर बैठ गए. सन्नाटे को क़ायम रखते हुए एक 'मेहमान' ने डार को इशारा किया. 'मेहमानों' को भूख लगी थी. 'मेहमानों' की आहट से तब तक डार का परिवार भी जाग चुका था. महिलाएं किचन का काम शुरू कर चुकी थीं. जल्दी में अंडा करी ही बन सकती था. अहाते में मुर्गे का बाड़ भी था लेकिन मुर्गा काटे जाने पर रात का सन्नाटा टूट जाता. पड़ोसियों की नींद में खलल भी पड़ता और उन्हें पता भी चलता कि डार के घर रात अंधेर में 'मेहमान' आए हैं.
खाना पका. सबों ने खाया. बीच में कुछ बातें भी हुईं. पांच में से तीन 'मेहमान' ही बातचीत में हिस्सा ले रहे थे. सर्द रात होने की वजह से उन्होंने अपना चेहरा थोड़ा ही खुला रखा था. बातचीत कश्मीरी में हो रही थी. लेकिन दो बिल्कुल चुप थे. उनका चेहरा भी पूरी तरह से ढंका था.
खाने के बाद आराम की बारी थी. लेकिन कमरा छोड़ने से पहले डार ने बड़े एहतराम के साथ कुछ और ख़िदमत की बात पूछी. 'मेहमानों' ने ना में सिर हिलाया. सुबह पौ फटने से पहले ही पांचों 'मेहमान' डार से रुख़सत लेकर निकल लिए. इस मेजबानी के बाद डार का परिवार फिर नींद की आगोश में समा गया. रात ज़्यादा होने की वजह किचन में साफ सफाई का काम नहीं किया गया. परिवार खाना खा कर अपना बर्तन धो दिया करता था लेकिन 'मेहमानों' के जूठे बर्तन यूं ही छोड़ दिए गए कि सुबह साफ कर लेंगे. अचानक आए 'मेहमान' की वजह से घर में मची अस्तव्यस्तता के बाद डार ने भी अपने धड़कते दिल को संभाला, घर का मेनगेट बंद किया और सोने चले गए. इस बीच गली में चौकसी कर रहे सुरक्षाकर्मियों ने भी कोई आहट नहीं की. 'मेहमान' जिधर से आए उधर को ही निकल गए. उन्होंने न तो सुरक्षाकर्मियों को देखा और न ही सुरक्षाकर्मियों को उनकी आहट ही मिली.
अगली किश्त में शुक्रवार शाम 5 बजे पढ़िए कि कौन थे ये मेहमान, क्यों आए थे डार के घर और क्या है यह पूरा माजरा...
(उमाशंकर सिंह एनडीटीवी इंडिया में एडिटर इंटरनेशनल अफेयर्स हैं.)
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This Article is From May 04, 2017
जनाब हमें आपके हाथों मरना मंज़ूर पर उनके हाथों नहीं...
Umashankar Singh
- ब्लॉग,
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Updated:मई 04, 2017 20:44 pm IST
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Published On मई 04, 2017 19:28 pm IST
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Last Updated On मई 04, 2017 20:44 pm IST
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