भारतीय अर्थव्यवस्था में एनपीए का बढ़ता कैंसर
देश में बैकों का 10 लाख करोड़ सकल नान परफोर्मिंग एसेट्स (एनपीए) है जो श्रीलंका की जीडीपी की दोगुना रकम है. रिजर्व बैंक की फाइनेशियल स्टैबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार सीडीआर के तहत रिस्ट्रक्चरिंग वाले लोन को मिलाकर एनपीए बैंकों के कुल कर्जे का 12 फीसदी है जबकि अमेरिका में यह 1.1 फीसदी और चीन में 1.7 फीसदी है. बैंकों का पैसा उद्योगपतियों द्वारा हज़म करने से भारत की अर्थव्यवस्था में मंदी है, जिसके खिलाफ कठोर कारवाई की बजाय ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस में सुधार का ढिंढोरा क्यों पीटा जा रहा है?
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रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार कुल बैंक कर्ज का 56 फीसदी बड़ी कंपनियों की वजह से है लेकिन एनपीए में इन कंपनियों की 86.5 फीसदी हिस्सेदारी है. बैंक कर्मचारियों का राष्ट्रीय संगठन एनपीए की जवाबदेह कम्पनियों तथा प्रमोटर्स के खुलासे के लिए लम्बे अरसे से मांग कर रहा है. इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल भी दायर हुई जहां रिजर्व बैंक तथा सरकार ने एनपीए के खुलासे पर आपत्ति जाहिर की. नेम एंड शेम के तहत कुछ हजार रुपये के डिफ़ॉल्टरों की फोटो अखबार में प्रकाशित करने वाली सरकार, बैकों के कर्जों का खुलासा करके एनपीए घोटाले का भंडाफोड़ क्यों नहीं करती?
घोटालेबाज कंपनियों से पैसे वसूली की बजाए मोदी सरकार ने उन्हें इनसाल्वेंसी और दिवालिया कानून की ढाल दे दिया. जिन प्रमोटरों के पास बैंको का लोन चुकाने के लिए पैसा नहीं था, उन्होंने पिछले दरवाजे से अपनी ही बीमार कंपनियों को खरीदने की पहल कर डाली. हो-हल्ला होने पर मोदी सरकार को दिवालिया कानून में अध्यादेश के जरिये बड़ा बदलाव करने पर मजबूर होना पड़ा. प्रमोटर्स द्वारा बैंको में पैसों की लूट का सबसे बड़ा चेहरा विजय माल्या हैं जो अब लंदन से भारतीय अदालतों और सीबीआई पर सवालिया निशान खड़ा कर रहे हैं. एनपीए की लूट के लिए जिम्मेदार प्रमोटर्स को कांग्रेस के साथ क्या भाजपा नेताओं का समर्थन नहीं मिला और इन रिश्तों की स्वतंत्र जांच कैसे होगी?
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यूपी में बिल्डरों की तर्ज पर एनपीए का फॉरेंसिक ऑडिट क्यों नहीं
यूपी में योगी सरकार ने फॉरेंसिक ऑडिट के साथ बिल्डरों के खिलाफ पुलिस एफआईआर की ठोस पहल की है. जनता के पैसे को बचाने के लिए यदि बिल्डरों की गिरफ्तारी हो सकती है तो फिर बैंकों में सरकारी पैसे की लूट मचाने वाले घोटालेबाजों के खिलाफ पूरी जानकारी के बावजूद मोदी सरकार खामोश क्यों है? कांग्रेस गठबंधन की यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार और लूट से त्रस्त जनता ने अच्छे दिन लाने के लिए मोदी को ऐतिहासिक जनादेश दिया था. विदेशों में जमा काला धन तो वापस आया नहीं पर भारत के बैंको से लूटा पैसा भी नेताओं और उद्योगपतियों की राजनीति के दलदल में गुम हो गया.
मनमोहन की चुप्पी पर उठाए गए थे सवाल
मोदी ने बैंकों का काफिला लुटने पर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह समेत पूर्व वित्त मंत्रियों की रहबरी पर सवाल उठाए हैं. गुजरात के चुनावी महाभारत में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की चुप्पी पर सवाल खड़े किए हैं. एनपीए की लूट पर मनमोहन सरकार की रहबरी के साथ मोदी सरकार की तटस्थता में कौन बड़ा अपराध है, इसका फैसला तो 2019 के समर में ही होगा!
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