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This Article is From Aug 03, 2016

GST बिल - राज्यसभा के बाद भी बनी रहेंगी ये 10 बड़ी अड़चनें...

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 03, 2016 12:04 pm IST
    • Published On अगस्त 03, 2016 09:49 am IST
    • Last Updated On अगस्त 03, 2016 12:04 pm IST
आर्थिक सुधारों का जो सिलसिला 25 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने चालू किया था, जीएसटी उसका अगला पड़ाव था, जिसकी प्रस्तावना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 साल पहले लिखी थी. विश्व के 150 से अधिक देशों में जीएसटी लागू है, लेकिन भारत में जीएसटी पर राजनीति ही भारी पड़ती रही है. राज्यसभा द्वारा संविधान संशोधन विधेयक पर अनुमोदन की सहमति के बावजूद जीएसटी के क्रियान्वयन की राह में बड़ी अड़चनें तो अभी बाकी ही हैं...

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यह भी पढ़ें : दरअसल क्या है जीएसटी, जो हो रहा है राजनीतिक असहिष्णुता का शिकार...?
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1. सबसे बड़े संविधान संशोधन के बावजूद क़ानून की अड़चन - टैक्स हेतु अभी तक के सबसे बड़े संशोधन विधेयक (122वां) से संविधान के 12 अनुच्छेदों के अलावा छठवीं और सातवीं अनुसूची में ज़रूरी बदलाव ही होंगे. राज्यसभा के बाद संशोधित प्रारूप लोकसभा द्वारा फिर अनुमोदित होगा. फिर 15 राज्यों की मंजूरी मिलेगी, तभी राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होंगे. अनुच्छेद 279 में हुए संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा 60 दिन के भीतर जीएसटी काउंसिल का गठन होगा, जिसमे केंद्र तथा सभी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होकर जीएसटी के विस्तृत कानून और नियमों को बनाएंगे. जब संविधान संशोधन की सहमति में दो साल लग गए तो टैक्स समरूपता लाने के नियमों पर राज्य कैसे और कितना सहमत होंगे...?

2. राज्यों की बुलंदी से क्रियान्वयन में अड़चन – अंग्रेजों द्वारा भारत को एक समान क्रिमिनल लॉ दिया गया, परन्तु बाद की सरकारें समान सिविल लॉ पर भी सहमति नहीं जुटा पाईं. केंद्र सरकार को सेंट्रल / इंटीग्रेटेड जीएसटी और राज्य सरकारों को स्टेट जीएसटी से जुड़ा कानून बनाना होगा, तभी जीएसटी 1 अप्रैल, 2017 से लागू हो पाएगा. जीएसटी के मूल प्रस्तावों में विवाद सुलझाने की व्यवस्था मतदान पर आधारित थी, जिसमें दो-तिहाई मत राज्यों तथा एक-तिहाई मत केंद्र के पास था. विवाद सुलझाने की नई व्यवस्था में राज्यों की बुलंदी से जीएसटी पर यदि और समझौते करने पड़े तो यह अप्रासंगिक हो सकता है.

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यह भी पढ़ें : संघवाद के लिए बड़ी राजनीतिक चुनौती है जीएसटी...
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3. विसंगत ढांचे से छोटे उत्पादकों की अड़चन - कारोबारियों को तीन-स्तरीय टैक्स प्रणाली के तहत सीजीएसटी (सेंट्रल), एसजीएसटी (स्टेट) एवं आईजीएसटी (इंटीग्रेटेड) राज्यों में अलग-अलग पंजीकरण कराते हुए कई तरह के रिटर्न भरने होंगे, जिनसे उनकी कम्प्लायन्स कॉस्ट काफी बढ़ सकती है. राज्यों में वैट पर छूट सीमा पांच से 10 लाख है, लेकिन एक्साइज़ की छूट बहुत ज्यादा है. इसके मद्देनज़र मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने 40 लाख रुपये की जीएसटी छूट सीमा सुझाई थी, परन्तु राज्यों के दबाव से जीएसटी पर 10 लाख रुपये की छूट सीमा पर सहमति बनी है. छोटे उत्पादक इंस्पेक्टर राज के दायरे में आने की आशंका से जीएसटी के क्रियान्वयन में बड़ी अड़चन पैदा कर सकते हैं.

4. राज्यों को पांच साल तक क्षतिपूर्ति की वित्तीय अड़चन - मूल विधेयक की योजना के अनुसार राज्यों को नुकसान के लिए तीन साल तक 100 फीसदी, चौथे साल 75 फीसदी और पांचवें साल 50 फीसदी नुकसान की भरपाई केंद्र सरकार को करनी थी, परन्तु संशोधित प्रारूप में केंद्र सरकार पांच साल तक राज्यों को 100 फीसदी नुकसान की भरपाई के लिए तैयार हो गई है. राज्यों को जीएसटी की आय के हस्तांतरण को समेकित निधि से बाहर रखने पर भी केंद्र राजी हो गया है.

5. उत्पादक और अन्य राज्यों के विरोधाभास की अड़चन - जीएसटी के मूल विधेयक में मैन्युफैक्चरिंग राज्यों को फायदा पहुंचाने के मकसद से राज्यों के बीच होने वाले व्यापार पर एक फीसदी की दर से अतिरिक्त टैक्स लगाने का प्रस्ताव अब संशोधित विधेयक में हटा लिया गया है. भविष्य में उत्पादक राज्यों द्वारा संभावित हानि के नाम पर अनर्गल भरपाई की बेजा मांगों से बड़ी अड़चन आ सकती है.

6. अनूठे टैक्स प्रावधानों से छोटे व्यापारियों की अड़चन - जीएसटी के तहत अगर कोई कंपनी अपनी किसी अन्य इकाई को माल या सेवा प्रदान करेगी, तो पहले इस पर टैक्स देना पड़ेगा और वापसी के लिए बाद में दावा करना होगा. प्रस्तावित नियमों के अनुसार अगर सप्लायर ने सरकार को टैक्स नहीं चुकाया है, तो उस सेवा या कच्चे माल का इस्तेमाल करने वाला निर्माता टैक्स क्रेडिट को क्लेम नहीं कर सकेगा. जीएसटी के तहत फ्री में की गई बिक्री या सेवा को भी कर योग्य माना जाएगा, जिससे कंपनियों की बिक्री पर असर पड़ेगा. नए प्रावधानों का यदि व्यापारिक संगठनों ने विरोध किया, तो भी जीएसटी के क्रियान्वयन में बड़ी अड़चनें आ सकती हैं.

7. क्रियान्वयन हेतु राज्यों में ज़रूरी ढांचे के अभाव की अड़चन - 'जीएसटी नेटवर्क संस्था' केंद्र तथा राज्यों के डाटाबेस को आपस में जोड़ेगी तथा दावों के अनुसार जीएसटी लागू करने के लिए प्रौद्योगिकी ढांचा तैयार है. आज की स्थिति में राज्यों के टैक्स विभागों में ही आपस में समायोजन नहीं है, फिर अंतरराज्यीय समन्वय कैसे स्थापित होगा...? जीएसटी के क्रियान्वयन के लिए न सिर्फ टैक्स विभागों को एकीकृत करना पड़ेगा, वरन् अनावश्यक कर्मचारियों की छंटनी भी करनी पड़ सकती है, जिस पर कर्मचारी संगठन अड़चन डाल सकते हैं.

8. महंगाई और चुनावी राजनीति की अड़चन - राज्यों को अनुत्पादक सब्सिडी देश में महंगाई बढ़ाने के साथ केंद्र के वित्तीय प्रबंधन को भी कमज़ोर करेगा. जीडीपी में दो फीसदी बढ़ोतरी के दावों पर संशय है, लेकिन इससे शुरुआती दौर में महंगाई अवश्य बढ़ेगी. उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा के चुनावी मौसम और फिर 2019 के आसन्न आम चुनावों के दौर में राजनीति से प्रेरित सरकारें जीएसटी को कैसे वरीयता दे पाएंगी...?

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9. सरकारों द्वारा नए टैक्स और सेस की अड़चन - जीएसटी यानी गुड्स (वस्तु) एंड सर्विसेज़ (सेवा) टैक्स, जिसे केंद्र और राज्यों में लागू 20 से अधिक अप्रत्यक्ष करों के एवज में लगाया जाना है. इसके बावजूद आमदनी बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सेस इत्यादि के नाम पर सेस लगाकर जीएसटी की एकीकृत व्यवस्था के लिए अड़चन पैदा कर सकते हैं.

10. 'एक देश एक टैक्स' को लागू करने की अड़चन - जीएसटी की मूल भावना है - समान टैक्स व्यवस्था से राज्यों में टैक्स प्रशासन को सरल बनाते हुए देश को एक कॉमन मार्किट में तब्दील करना, जिससे उत्पादन, कारोबार और सेवा क्षेत्र समेत सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का विकास हो. डा. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि देश का भविष्य संविधान के प्रावधानों की बजाय सरकारों के चरित्र पर निर्भर करेगा. जीएसटी पर संवैधानिक शक्ति के बावजूद राजनीति की अड़चन और तिकड़म देश में वित्तीय अनुशासन लाने की बजाय, कहीं आर्थिक अराजकता ही न पैदा कर दें...?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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