अमेरिका की एक बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी है WAYFAIR (वे-फेयर). इस कंपनी के कर्मचारियों को पता चला कि इसे डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन से दो लाख डॉलर का बिज़नेस आर्डर मिला है. ट्रंप प्रशासन उन शिविरों के लिए बिस्तर वगैरह ख़रीद रहा था, जिन्हें क़ैद कर रखा गया है. अमेरिकी मीडिया में ख़बरें आ रही हैं कि बच्चों के साथ अमानवीय बर्ताव हो रहा है. जगह की साफ-सफाई नहीं है और उन्हें बासी खाना दिया जाता है. कंपनी के कर्मचारियों को जब इस बिज़नेस करार की ख़बर लगी, तो 500 कर्मचारियों ने अपने बॉस को पत्र लिखा कि यह अनैतिक है और कंपनी इस बिज़नेस से होने वाले मुनाफे को दान करे. कर्मचारियों ने काम करने की जगह छोड़ दी और बाहर आ गए. वॉकआउट किया, बल्कि दुनिया को बताने के लिए एक ट्विटर हैंडल भी बना लिया. कंपनी को अपने कर्मचारियों की बात माननी पड़ी और फैसला हुआ कि एक लाख डॉलर रेड क्रॉस को दान दिया जाएगा, जो बच्चों के लिए काम कर रही है. कर्मचारियों ने नारे भी लगाए कि बच्चों के लिए ये शिविर यातना शिविर हैं, इन्हें बंद किया जाए.
यह एक किस्म का सत्याग्रह है, जो कंपनी पर नैतिक होने का दबाव डालता है. यह विरोध कामगारों की तरफ से आया है. अमेरिका में ट्रंप की इमिग्रेशन नीति के ख़िलाफ आंदोलन चल रहा है. आंदोलन करने वाले उपभोक्ताओं से भी अपील कर रहे हैं कि वे उन कंपनियों के उत्पाद न ख़रीदें, जो ट्रंप प्रशासन से ऑर्डर लेकर मुनाफा कमा रही हैं और मैक्सिको के माइग्रेंट को यातना शिविर में रखा जा रहा है. अमेज़ॉन, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल के कर्मचारियों ने भी इस तरह की अमानवीय नीति का विरोध किया है.
वे-फेयर के कर्मचारियों ने एक साथ दो मकसद हासिल किए हैं. उन्होंने अपनी कंपनी की बिज़नेस नीति और सरकार की नीति का भी विरोध किया है. ऐसी उम्मीद भारतीय कंपनियों और कर्मचारियों से बिल्कुल नहीं करनी चाहिए. लोकतांत्रिकता कोई फॉर्मूला नहीं है. हर दिन इसके लिए नई जगह बनानी पड़ती है. ट्रंप प्रशासन अपनी नीतियों पर कायम है, लेकिन इस तरह की सक्रियता से लोकतांत्रिकता बची रहती है. प्राइवेट कंपनी में काम करने का यह मतलब नहीं होना चाहिए कि सरकारी नीतियों के प्रति उदासीन रहें. वे-फेयर कंपनी के कर्मचारियों ने नया रास्ता दिखाया है.
भारत के न्यूज़ चैनल खुलेआम सांप्रदायिकता, पुरातनपंथी सोच को बढ़ावा दे रहे हैं, पत्रकारिता के मूल्यों की हत्या कर रहे हैं, लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं. मगर सारी बड़ी कंपनियां अपने विज्ञापनों के लिए उन्हीं चैनलों के लिए मारामारी कर रही हैं. इन कंपनियों से किसी ने नैतिक प्रश्न नहीं किया कि आप जिन चैनलों पर विज्ञापन दे रहे हैं, क्या उसका आधार सिर्फ बिज़नेस करना ही है, लोकतंत्र और पत्रकारिता के मूल्यों के प्रति आपकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है...?
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