अब तक आपने पढ़ा कि कैसे श्रीनगर के डाउन टाउन स्थित मकबूल डार (काल्पनिक नाम) के घर देर रात 'मेहमान' आते हैं, रुकते हैं, खाना खाते हैं और फिर चले जाते हैं लेकिन किसी को कानोकान खबर तक नहीं होती. गली के बाहर मुस्तैद सुरक्षाबलों को भी नहीं पता चलता कि किसी के घर कोई आया और चला गया. अब आगे...
दृश्य दो
सुबह क़रीब नौ बजे का वक्त. कश्मीर में सुबह देर से होती है. रात की मेजबानी के बाद नींद की खुमारी में डूबा डार का परिवार अभी ठीक से जगा भी नहीं था. तभी गली में फौज़ी बूटों की गड़गड़ाहट के साथ दरवाज़े पर ज़ोर ज़ोर से दस्तक हुई. डार के दिल की धड़कन चौगुनी हो गई. भागे भागे दरवाज़े पर आए. दरवाज़ा खोला तो सामने वर्दी में पांच लोग खड़े थे. वे सभी डार को लगभग धकियाते हुए घर के अंदर ले गए. सख़्त लहज़े में पूछा कि रात में घर में कौन आया था. डार की घिग्गी बंद चुकी थी लेकिन फिर भी उसने हिम्मत कर बोला कोई नहीं जनाब. इतना सुनते ही एक ने डार को ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया. झूठ बोलते हो. रात को तुम्हारे घर दहशतगर्द आए थे. नहीं जनाब. अल्लाह पाक की कसम. फिर एक और ज़ोरदार तमाचा.
भाग-1 : जनाब हमें आपके हाथों मरना मंज़ूर पर उनके हाथों नहीं...
तब तक पांच में से तीन जवान घर की तलाशी में जुट गए थे. एक ने किचन का भी रुख किया. बड़ी मात्रा में अंडे के छिलके, जूठे बर्तन को इस बात का सबूत माना गया कि रात में परिवार से ज़्यादा लोगों के लिए खाना बना था. और ये भी कि अचानक आए मेहमानों की वजह से रसोई फिर से चढ़ी थी. इतना ही नहीं. रात आए मेहमानों के पहनावे आदि से लेकर कई और तरह से क्रॉस क्वेश्चन किए गए. सख़्त होते रवैये के बीच डार ने आखिरकार मान लिया कि कल रात उसके घर पांच 'मेहमान' आए थे. उन सबने खाना खाया और रात को यहीं ठहरे. अल सुबह निकल लिए. इतनी ख़ातिरदारी क्यों की. इस सवाल के जवाब में डार ने कहा, क्या करें जनाब उनके पास गन थी. नहीं करते तो मारे जाते.
इसके बाद डार के परिवार की महिलाओं और बच्चों को छोड़ सभी को खुफिया एजेंसी के दफ्तर में ले जाया गया. वहां उन्हें हर तरह से समझाया गया कि कैसे उनके घर के बारे में ये पुख़्ता जानकारी है कि दहशतगर्द रात को यहां सेल्टर लेते हैं. डार के घर ऐसे 'मेहमानों' के आने की सूचना खुफिया एजेंसियों को कई बार मिल चुकी थी. लिहाज़ा उन्होंने इस बात की तस्दीक करने के लिए इस बार जो रास्ता चुना वो सबसे ज़्यादा भरोसेमंद है. रास्ता ये था कि पांच सुरक्षाकर्मियों के एक दल ने मुजाहिद का रूप धरा. फेरन पहन और असला लेकर ठीक उसी तरह से डार के घर पहुंचे जैसे दहशतगर्द पहुंचते थे. उन पांच में से तीन कश्मीरी थे जिन्होंने डार के साथ कश्मीरी में बातचीत का ज़िम्मा संभाला था. बाक़ी दो ऊपर के स्तर के अधिकारी थे जो स्थानीय नहीं थे और बातचीत करते तो भेद खुल जाता. लेकिन ज़िम्मेदार अधिकारी के तौर पर उनकी मौजूदगी ज़रूरी थी ताकि सूचना की सत्यता को ठीक तरह से जाना जा सके. आतंकवादियों के पनाह लेने वाले घरों की तस्दीक के लिए ये तरीक़ा सबसे सटीक बन गया था. असली आतंकवादी के घर में होने की सूरत में दबिश डालने पर को लैटेरल डैमेज का ख़तरा रहता है. यानी आतंकवादियों के साथ-साथ घर में मौजूद लोगों के जान जाने का खतरा भी.
कुल मिला का डार का उदाहरण बताता है कि आतंकवादी किस तरह गन का ख़ौफ दिखा कर न सिर्फ घरों में जगह बनाते हैं बल्कि उन्हें अपनी ढाल के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं. डार को सुरक्षाकर्मियों की बंदूकों का भी खौफ़ है लेकिन उसे ये भी पता होता है कि सुरक्षकर्मियों के पास गन विद लॉ है जबकि आतंकवादी किसी कानून से नहीं बंधे. इसलिए आतंकवादियों के आने की सूचना देने से डरते हैं क्योंकि हर वक्त सुरक्षाकर्मी उसकी सुरक्षा में नहीं लगे रह सकते. मुखबिर बता कर आतंकवादियों की कौन सी गोली कब जान ले ले पता नहीं. डार जैसे कश्मीरियों के मन से दहशतगर्दों के ख़ौफ को निकालना है कि तो दहशतगर्दों को उसके घर तक पहुंचने से रोकना होगा.
(कश्मीर के अनुभव के आधार पर लिखित)
(उमाशंकर सिंह एनडीटीवी इंडिया में एडिटर इंटरनेशनल अफेयर्स हैं.)
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This Article is From May 05, 2017
कश्मीरियों के मन से दहशतगर्दों का ख़ौफ निकालना है तो...
Umashankar Singh
- ब्लॉग,
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Updated:मई 05, 2017 16:49 pm IST
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Published On मई 05, 2017 16:49 pm IST
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Last Updated On मई 05, 2017 16:49 pm IST
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