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This Article is From Aug 07, 2021

काम वालों को काम चाहिए, नाम वालों को नाम चाहिए है

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 07, 2021 00:21 am IST
    • Published On अगस्त 07, 2021 00:21 am IST
    • Last Updated On अगस्त 07, 2021 00:21 am IST

जब हॉकी को प्रायोजक की ज़रूरत थी, पैसे की ज़रूरत थी तब कोई आगे नहीं आया लेकिन हॉकी के खिलाड़ियों का प्रदर्शन बेहतर हुआ तो सब खिलाड़ियों की मेहनत में अपना हिस्सा जोड़ने पहुंच गए हैं. भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी पदक नहीं जीत सकी लेकिन हारकर भी देश का दिल जीत लिया. प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया कि “देश को गर्वित कर देने वाले पलों के बीच अनेक देशवासियों का ये आग्रह भी सामने आया है कि खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद जी को समर्पित किया जाए. लोगों की भावनाओं को देखते हुए, इसका नाम अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार किया जा रहा है. 
जय हिंद!” इस बात की तारीफ होने लगी और हॉकी को लेकर नवीन पटनायक की तारीफ से सुस्त पड़ा मीडिया ऊर्जावान हो गया. तभी याद दिलाया गया कि मेजर ध्यानचंद के नाम पर तो पहले से पुरस्कार है जिसे 2002 में शुरू किया गया था और 10 लाख रुपया दिया जाता है. ध्यानचंद लाइफ टाइम अचीवमेंट इन स्पोर्टस एंड गेम्स. उसका क्या होगा. कहीं उसका नाम किसी नेता के नाम पर तो नहीं रख दिया जाएगा. 

अगर सरकार यह बताना चाहती है कि कांग्रेस ने सारी योजनाओं के नाम अपने नेताओं के नाम पर ही रखे हैं और वह इसमें सुधार कर रही है तो फिर सरकार यह भी बता सकती है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय नेशनल वेलफेयर फंड क्या है. मार्च 1982 से यह योजना है इसका नाम भी किसी खिलाड़ी पर हो सकता था लेकिन सितंबर 2017 में इसे दीनदयाल उपाध्याय नेशनल वेलफेयर फंड कर दिया गया. क्या सोचकर इसका नाम दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखा गया? वैसे इसी साल 18 मार्च को सरकार संसद में कह चुकी है कि मंत्रालय इसका आंकड़ा नहीं रखता है कि पदक जीतने वाले कितने खिलाड़ियों की आर्थिक स्थिति खराब है और वे अलग-अलग बीमारियों के शिकार हैं. इसलिए यह नहीं कहा जाना चाहिए कि राजीव गांधी का नाम हटाकर पुरानी गलती में सुधार हो रहा है और एक खिलाड़ी के साथ न्याय हो रहा है. मेजर ध्यानचंद को लेकर किसी पुरस्कार के नाम की मांग नहीं हो रही है. उन्हें भारत रत्न दिए जाने की मांग दशकों से हो रही है. नाम बदलकर हेडलाइन बड़ी की जा रही है. नाम बदलने के पीछे अजीब अजीब तर्क दिए जा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि इसके पीछे खिलाड़ी के योगदान की ही चिन्ता है वर्ना अहमदाबाद के खेल स्टेडियम का नाम गुजरात के ही किसी क्रिकेट खिलाड़ी के नाम पर हो सकता था.

इस साल फरवरी में जब अहमदाबाद में नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम का नाम रखा गया तब काफी विवाद हुआ. नरेंद्र मोदी स्टेडियम के एक छोर का नाम रिलायंस एंड है और दूसरे छोर का नाम अदाणी एंड है. 2018-19 के आर्थिक सर्वे में लिखा है कि पिछले एक दशक में जो सबसे अधिक कर देने वाले दाता रहे हैं उनके नाम पर इमारत, स्कूल, सड़क, एयरपोर्ट का नाम रखा जाना चाहिए. सरकार ही बता सकती है कि कितने ऐसे टैक्सपेयर के नाम पर सड़कों का नामकरण हुआ है. लोग जानना चाहते थे कि प्रधानमंत्री मोदी का अपने नाम पर स्टेडियम का नाम रखना सही है तो मायावती का अपनी मूर्ति बना लेना कैसे गलत था, जिसका विरोध बीजेपी करती थी. गुजरात से कितने ही क्रिकेट खिलाड़ी हुए. महाराजा रणजीत सिंह जी, जिनके नाम पर रणजी ट्राफ़ी खेला जाता है और दलीप सिंह जी का संबंध गुजरात से रहा है. सैय्यद मुश्ताक अली कितने मशहूर खिलाड़ी रहे जो गुजरात के लिए खेले. सलीम दुर्रानी, वीनू मांकड, नरी कांट्रेक्टर से लेकर यूसुफ पठान, इरफान पठान और पार्थिव पटेल के नाम पर. इरफान पठान ने ट्वीट भी किया है कि उम्मीद है आगे से खेल के स्टेडियम का नाम खिलाड़ी पर ही होगा. 

दिल्ली में भी फिरोज़ शाह कोटला मैदान का नाम अरुण जेटली स्टेडियम रखा गया है. तो यह न समझें कि सरकार खेल से जुड़ी संस्थाओं और पुरस्कारों के नाम खिलाड़ियों पर रखना चाहती है. उसे राजीव गांधी पसंद नहीं हो सकते हैं लेकिन दीनदयाल काफी पसंद हैं. खेल ही नहीं कई योजनाओं के नाम बीजेपी के नेताओं के नाम पर हैं. अटल पेंशन योजना के अलावा श्यामा प्रसाद मुखर्जी अर्बन मिशन भी एक योजना का नाम है. जिसका बजट 2020 में 600 करोड़ से 372 करोड़ कर दिया गया. कोई योजना आडवानी जी के नाम पर भी हो सकती थी.

दिल्ली में Foreign service training institute का नाम सुषमा स्वराज के नाम पर रखा गया है. IDSA यानी Institute for Defence Studies and Analyses का नाम मनोहर परिर्कर के नाम पर रखा गया है. IDSA का नाम क्या जनरल मानेक शॉ के नाम पर रखा जा सकता है?

तो कुलमिलाकर कहना है कि हेडलाइन हो जाना अलग बात है, लेकिन जिन खिलाड़ियों ने अपने एक एक सपनों को जोड़ा, कहां-कहां से निकलकर खेल के मैदान तक पहुंची हैं उनकी इस कामयाबी के बहाने खेल का शुभचिंतक होने की नौटंकी नहीं करनी चाहिए. ओडिशा ने नामों की नौटंकी से खुद को अलग रखा. जब राज्य में हॉकी का ढांचा विकसित किया गया तो हाकी के दो बड़े स्टेडियम का नाम बीजू पटनायक या अपनी पार्टी के नाम पर नहीं रखा. राउरकेला में बिरसा मुंडा इंटरनेशनल स्टेडियम बन रहा है तो भुवनेश्वर के स्टेडियम का नाम कलिंग स्टेडियम है. नवीन पटनायक हॉकी स्टेडियम नहीं है. आज हॉकी को पैसा की ज़रूरत है. इस तरह के बुनियादी ढांचे की ज़रूरत है न कि हेडलाइन छपकर गायब होने की ज़रूरत है.

हार हो या जीत हो कम से कम आज का दिन पूरी तरह से उनका ही होना चाहिए था जिन महिला खिलाड़ियों ने एक सपना देखा. जिसके करीब पहुंच कर उनका सपना बिखर गया. हम उनके दुख में थोड़ी देर के लिए शामिल तो हुए लेकिन उसके तुरंत बाद वही शुरू हो गया पुरस्कार का नाम बदलना तो पुरस्कार की राशि देना. 

जिस तरह से पुरस्कारों के नाम बदलने का खेल चल रहा है उसी तरह कई तरह के अभियान, यात्राएं और आंदोलन का भी खेल चल रहा है. जैसे इस साल मार्च से ही कैच द रेन अभियान चल रहा है तो पिछले महीने निपुण भारत एक अभियान शुरू हुआ है. इन अभियानों की रफ्तार आलोचकों से कहीं ज्यादा तेज़ है. अभी से ही पेज बन कर तैयार है. इसमें सवाल है कि क्या आप चाहते हैं कि प्रधानमंत्री 15 अगस्त के अपने भाषण में कोरोना योद्धाओं की तारीफ करें तो यहां क्लिक करें. दूसरी लहर के बाद कोई भी समझेगा कि प्रधानमंत्री सामान्य रूप से कोरोना योद्धा और इस दौर में मारे गए लोगों की चर्चा करेंगे ही, लेकिन इसके लिए भी यहां पर लोगों से क्लिक करने के लिए कहा जा रहा है. 

एक समय में कितने तरह के अभियान चल रहे हैं आपको अंदाज़ा नहीं है. कुछ अभियान केवल नारों के हैं तो इस तरह के भी हैं कि प्रधानमंत्री क्या बोलें इसके लिए क्लिक करें. टापिक भी सरकार सुझा रही है कि आपको लगता है इस पर बोलें तो क्लिक करें. एक अभियान पूरा नहीं होता कि उसी से एक और अभियान निकल आता है. जैसे तालाबंदी के समय पिछले साल एक योजना शुरू हुई. प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना. एक साल से अधिक समय से चल चुकी इस योजना से एक नया अभियान निकला है, अन्न महोत्सव. उसी तरह प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना 2019 में लांच हुई थी अब इसकी किश्त जारी होती है तो प्रधानमंत्री बटन दबाकर जारी करते हैं. एक पोस्टर बता रहा है कि 9 अगस्त को प्रधानमंत्री 9 वीं किश्त जारी करेंगे. अब किश्त जारी करना भी एक ईवेंट है. वैसे बंगाल चुनाव में वादा किया गया था कि वहां के 72 लाख किसानों को सभी आठ किस्त और एक एडवांस देंगे. यानी उन्हें 18000 रुपये मिलेंगे. क्या 9 अगस्त को प्रधानमंत्री को बंगाल याद रहेगा?

वैसे जिनके खाते में पैसा जाएगा वो खुद से देख लेंगे कि इस सम्मान के योग्य हैं या नहीं. कृषि मंत्री ने बताया है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत 3000 करोड़ की राशि ऐसे लोगों के खाते में चली गई है जो इसके पात्र नहीं है. उनसे वसूली हो रही है. तो पैसा मिलते ही खर्च मत कर दीजिएगा. सरकार सब कर रही है लेकिन किसानों की मांग को लेकर चर्चा और बातचीत के नाम पर समाधान नहीं कर सकी. नवंबर के महीने से किसान दिल्ली की सीमा पर हैं और अब 22 जुलाई से जंतर मंतर पर किसान संसद का आयोजन कर रहे हैं. आज विपक्षी सांसदों ने किसान संसद में हिस्सा लिया.

रिजर्व बैंक आर्थिक विकास की सुनहरी भविष्यवाणियां कर रहा है लेकिन लोग इस दौर के भयावह आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. ऐसे लोगों की तकलीफ आर्थिक तरक्की की खुशफहमियों में शामिल करना चाहिए ताकि पता चले कि एक आदमी उम्मीदों के आंकड़ों को कैसे ढो रहा है.

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